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उपेक्षित महसूस कर रहे हैं आंदोलनकारी

चतरा : झारखंड आंदोलन में पुलिस की लाठी खाने व जेल जाने वाले आंदोलनकारी उपेक्षित महसूस कर रहे हैं. आंदोलनकारियों का कहना है कि जिस उम्मीद से अलग झारखंड राज्य के लिए लड़ा था, उसका कोई लाभ नहीं मिल रहा है. स्थापना दिवस पर भी सरकार व जिला प्रशासन द्वारा उन्हें याद नहीं किया जाता […]

चतरा : झारखंड आंदोलन में पुलिस की लाठी खाने व जेल जाने वाले आंदोलनकारी उपेक्षित महसूस कर रहे हैं. आंदोलनकारियों का कहना है कि जिस उम्मीद से अलग झारखंड राज्य के लिए लड़ा था, उसका कोई लाभ नहीं मिल रहा है. स्थापना दिवस पर भी सरकार व जिला प्रशासन द्वारा उन्हें याद नहीं किया जाता है. सम्मान भी नहीं मिल रहा है.

वर्ष 1993 में अलग झारखंड राज्य की मांग को लेकर सिमरिया में आंदोलन कर रहे नौ लोगों को पुलिस ने बेरहमी से पीटा था. साथ ही मुकदमा दर्ज कर सभी को जेल में डाल दिया था. आंदोलनकारी कैलाश सिंह ने बताया कि अलग झारखंड राज्य की मांग को लेकर 26 मार्च 1993 को पूर्व विधायक अकलु राम महतो के नेतृत्व में सिमरिया चौक को जाम किया गया.

इस दौरान पुलिस की लाठियां खानी पड़ी. पुलिस ने आंदोलन कर रहे रामेश्वर भोक्ता, एकरामुल हक, गोपाल सिंह, जागेश्वर भोक्ता (अब स्व), भीमसेन उड़िया, मोहन गंझू, पवन कुमार व रामानंद सिंह के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया. पवन व रामानंद सिंह को छोड़ कर सात लोगों को जेल भेज दिया गया. बाबू लाल मरांडी की सरकार ने आंदोलनकारियों पर चल रहे मुकदमा को वापस लिया.

एकरामुल हक ने कहा कि प्रखंड के भी अधिकारी उनकी सुधि नहीं लेते हैं. पवन कुमार ने बताया कि अलग राज्य बनने पर उम्मीद थी कि उन्हें सम्मान मिलेगा. साथ ही भरण-पोषण की भी सुविधा मिलेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ़ स्व जागेश्वर भोक्ता के परिजन दाने-दाने को मोहताज हैं. रामेश्वर भोक्ता ने भी आज तक कुछ नहीं मिलने की बात कही है. इसके अलावा जिले के कई ऐसे आंदोलनकारी हैं, जिनकी सुधि लेने वाला कोई नहीं है. आंदोलनकारी खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं.

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