बेरमो: बोनस एक्ट में संशोधन का लाभ कोयला उद्योग में कार्यरत ठेका मजदूरों को मिलेगा? इस पर फिर सवाल उठने लगे हैं. इसको लेकर ठेका मजदूरों में चर्चा का बाजार गर्म है. इस बार कोयला उद्योग में कार्यरत 3.27 लाख संगठित मजदूरों को 54 हजार रुपये बोनस मिला. लेकिन लाखों असंगठित मजदूर जो वर्तमान में उत्पादन की रीढ़ माने जाते है, एक बार फिर प्रबंधन के हाथों ठगे गये. उन्हें 54 सौ रुपये भी बोनस नसीब नहीं हुआ.
बोनस को लेकर हुए समझौता में कोल इंडिया प्रबंधन व मजदूर नेताओं ने ठेका मजदूरों के बैंक खाते में सात हजार रुपये भेज देने पर सहमति जतायी थी. पिछले चार साल से सहमति के बाद भी ठेका मजदूरों के बोनस नहीं मिल रहा है.
सरकार ने बोनस एक्ट में किया है संशोधन : केंद्र सरकार ने बोनस एक्ट 1965 में संशोधन किया था. इसके तहत 10 हजार रुपये वेतन की सिलिंग बढ़ाकर 21 हजार रुपये कर दिया गया है. पूर्व में 10 हजार रुपये वेतन पानेवाले को तीन हजार रुपये बोनस मिलता है. अब 21 हजार की सिलिंग करने से मजदूरों को सात हजार रुपये तक बोनस मिलेगा. इस नये प्रस्ताव से ठेका मजदूर भी बोनस के हकदार हो जायेंगे़ अभी कोयला उद्योग में आउटसोर्सिंग कंपनियों द्वारा हाइ पावर कमेटी की अनुशंसा के तहत 13 हजार रुपये तक प्रतिमाह वेतन दिया जा रहा है. ऐसे में उक्त मजदूर बोनस एक्ट के नये प्रस्ताव के तहत 21 हजार सिलिंग के दायरे में आ जायेंगे. इसके बाद ठेका मजदूरों को 55 सौ के बजाय सात हजार रुपये तक सालाना बोनस (एसग्रेसिया) मिल सकता है. लेकिन इसका पालन नहीं हो रहा है.
एरिया के महाप्रबंधकों को दी गयी जिम्मेवारी
ट्रेड यूनियन नेताओं को कोल इंडिया प्रबंधन ने आश्वस्त किया था ठेका मजदूरों को बोनस की राशि मिलेगी. हाइ पावर कमेटी के निर्णयानुसार इसकी जिम्मेवारी सभी कंपनियों के एरिया महाप्रबंधक को दी गयी है. जीएम को ही बोनस की राशि ठेका मजदूरों को दिलाना सुनिश्चित करना था. एटक नेता लखनलाल महतो कहते हैं कि कुछ आउटसोर्सिंग कंपनियों द्वारा बोनस देने की सूचना है लेकिन बोनस की राशि कितनी दी गयी यह पता नहीं.
प्रबंधन के पास ठेका मजदूरों का सही आंकड़ा नहीं
कोयला उद्योग में कार्यरत ठेका मजदूरों की संख्या 2.5 लाख के करीब है. लेकिन कोल इंडिया प्रबंधन के पास ठेका मजदूरों का सही आंकड़ा नहीं है. प्रबंधन का कहना है कि सूचीबद्ध ठेका मजदूरों की संख्या 42 हजार है. जबकि ट्रेड यूनियन के नेता यह संख्या लाखों में बताते हैं. ठेका कंपनियां निविदा पेपर में हाइ पावर कमेटी के अनुशंसा का भी पेपर लगाकर कंपनी से बढ़ा हुआ पैसा लेती हैं. लेकिन मजदूरों को इसका भुगतान नहीं करती हैं.