बोकारो: कभी मजदूर एकता की मिसाल बना सेक्टर- 04 का मजदूर मैदान, वर्तमान में अपने नाम के मतलब को तलाश रहा है. मजदूर मैदान में अब मजदूरों से संबंधित कोई सम्मेलन नहीं हो रहा है. मैदान का प्रयोग सिर्फ व्यावसायिक कारणों से किया जा रहा है. एक मई को मजदूर दिवस है. हर ओर मजदूरों के अधिकार की चर्चा हो रही है. मजदूर दिवस के इतिहास का बखान हो रहा है. ऐसे में मजदूर मैदान की स्थिति की चर्चा समसामयिक है.
मजदूर मैदान से मजदूर गायब हो गये हैं, बच गया है सिर्फ मैदान.
ऐसे बना मजदूर मैदान : 80 के दशक में मजदूर मांग पूर्ति व विरोध के लिए एडीएम भवन के पास एकत्रित होते थे. ऐसे में ट्रैफिक समस्या उत्पन्न होती थी. तत्कालीन एमडी आर रामकृष्णन ने विरोध प्रदर्शन के लिए सेक्टर 04 में खाली स्थान को चयनित किया. मजदूर नेता भी इसका समर्थन किया. प्रबंधन ने बाकायदा मंच व शेड की व्यवस्था कर दी. सौंदर्यीकरण के लिए प्रबंधन ने मैदान की घेराबंदी कर दी. इसके बाद विरोध प्रदर्शन का यह क्षेत्र मैदान का आकार लेने लगा. मैदान मजदूरों की कई ऐतिहासिक सभा का गवाह बना.
आज मेला, कल मेला… सिर्फ मेला
मजदूर मैदान समय के साथ अपनी पहचान को खोने लगा. मैदान में अब सिर्फ मेला का आयोजन होता है. मेला का दौर नवंबर से शुरू होकर मार्च तक चलता है. स्वदेशी जागरण मंच की ओर से आयोजित स्वदेशी मेला सबसे ज्यादा सात दिन तक रहता है. इसके अलावा क्राफ्ट मेला, पुस्तक मेला, व्यापार मेला व शिक्षा मेला महत्वपूर्ण हैं. दुर्गापूजा व काली पूजा में मैदान भक्तिमय बन जाता है. पूजा के दौरान मीना बाजार लगता है. साल के छह महीने मैदान किसी न किसी मेला का गवाह बनता है.
सिर्फ नाम का मजदूर मैदान
मजदूर मैदान नयी पहचान बनाने की ओर अग्रसर है. 1994 से मैदान में हर साल सखा सहयोग सुरक्षा समिति की ओर से चित्रकला प्रतियोगिता होती है. इसमें विभिन्न स्कूल के विद्यार्थी हिस्सा लेते हैं. कंपीटीशन महज 60 बच्चों से शुरू हुई थी. 2015 में प्रतिभागी बच्चों की संख्या 17,660 हो गयी. मैदान में समय-समय पर बड़े-बड़े धार्मिक कार्यक्रम भी होते रहते हैं. बाबा रामदेव, आशा राम बापू, विहंगम योग के संत स्वतंत्र देव व संत विज्ञान देव सहित कई बड़े धर्मगुरु की सभा यहां हो चुकी है. मतलब, अब यह मैदान अब केवल नाम का मजदूर मैदान है.
कर्पूरी ठाकुर, लालू यादव, शिबू सोरेन, नरेंद्र सिंह तोमर…
मैदान राजनीतिक दलों का अखाड़ा के रूप में भी चर्चा में रहा. 1987 में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर, 1995 में तत्कालीन बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव, 2015 में वर्तमान इस्पात मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, बोकारो के पूर्व विधायक समरेश सिंह मजदूर मैदान में सभा को संबोधित कर चुके हैं. दिशोम गुरु शिबू सोरेन हर साल यहां बच्चों की चित्रकला प्रतियोगिता में हिस्सा लेने आते हैं. इसके अलावा 2010 में झामुमो नेता दुर्गा सोरेन का प्रथम पुण्यतिथि समारोह का आयोजन यहीं किया गया था.
…और बन गया मजदूर मैदान
बोकारो के दो बार विधायक रह चुके अकलू राम महतो बताते हैं : उस समय रामाकृष्णन बीएसएल के एमडी हुआ करते थे. मैंने मैदान का नाम गांधी मैदान करने संबंधी पत्र प्रबंधन को लिखा था, क्योंकि उस समय तक चौक पर गांधी जी की प्रतिमा स्थापित हो चुकी थी. अकलू राम महतो ने बताया : उस समय एटक के गया सिंह ने मैदान में मजदूरों की सभा की. श्री सिंह ने ही मैदान को मजदूर मैदान कहना शुरू किया. उसके बाद धीरे-धीरे सभी इस मैदान को मजदूर मैदान से ही पुकारने लगे. तभी से इसका नाम मजदूर मैदान पड़ गया.
सिर्फ कॉमर्शियल इस्तेमाल के लिए है मजदूर मैदान
जय झारखंड मजदूर समाज के महामंत्री बीके चौधरी बताते हैं : 2009 में विस्थापित नेता फूलचंद महतो ने प्रबंधन के खिलाफ विरोध जताने के लिए हल जोतो कार्यक्रम आयोजित किया. रोकने के लिए पुलिस को बल का भी प्रयोग करना पड़ा था. कहते हैं : अब तो सिर्फ नाम का ही मजदूर मैदान रह गया है. मैदान का मजदूर से कुछ लेना देना नहीं है. मजदूर भी पहले की तुलना में कम हो गये हैं. प्रबंधन मैदान को कॉमर्शियल इस्तेमाल कर रहा है. आये दिन कोई ना कोई मेला मैदान की शोभा बढ़ाती है.
स्टील उत्पादन हो नहीं रहा, प्रबंधन किराया वसूल रहा है
क्रांतिकारी इस्पात मजदूर संघ के महामंत्री राजेंद्र प्रसाद सिंह बताते हैं : 80 के दशक में मजदूर विरोध प्रदर्शन सेक्टर -04 स्थित गांधी चौक के पास होता था. यातायात में होने वाली परेशानी के कारण तत्कालीन एमडी ने सेक्टर 04 में मैदान की कल्पना की थी. शुरुआत में मैदान में कई संगठनों का सम्मेलन भी हुआ. वर्तमान में मैदान में मजदूर हित के अलावा हर काम होता है. आये दिन किसी न किसी संगठन की ओर से मेला आयोजित होता है. प्रबंधन स्टील उत्पादन के स्थान पर मैदान से किराया वसूल रहा है.