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विकास की भेंट चढ़ रहा बचपन

बोकारो: ‘बच्चों के छोटे हाथों को चांद-सितारे छूने दो, चार किताबें पढ़ कर ये भी हम जैसे हो जायेंगे’ उर्दू शायर निदा फाजली की ये पंक्तियां बच्चों की अबोधता, भोलेपन के बचे रहने के लिए वयस्कों के संसार से उसे दूर रखने की बात करती है. तकनीक के संसार में सुगमता और विकल्प की सुविधा […]

बोकारो: ‘बच्चों के छोटे हाथों को चांद-सितारे छूने दो, चार किताबें पढ़ कर ये भी हम जैसे हो जायेंगे’ उर्दू शायर निदा फाजली की ये पंक्तियां बच्चों की अबोधता, भोलेपन के बचे रहने के लिए वयस्कों के संसार से उसे दूर रखने की बात करती है. तकनीक के संसार में सुगमता और विकल्प की सुविधा ने सभी वर्ग को अपनी ओर खींचा है. अपनी जरूरतों के कारण बच्चे भी इस ओर खिंचे चले आये हैं. पतंगबाजी, कंचों, कबड्डी, आइस-पाइस से दूर मोबाइल, टीवी, वीडियो गेम्स में खोते बच्चों के संसार पर तकनीक की काली छाया से निदा फाजली की चिंता को करीब से समझा जा सकता है.
अप्रासंगिक होते खेल : कभी गरमी की छुट्टियों में परंपरागत खेल कंचा, पतंगबाजी, लूडो, सांप-सीढ़ी, अष्टा चंगा, आइस-पाइस का बच्चों की दुनिया में खासा महत्व था, लेकिन अब इसकी जगह रिंग टॉयज और वीडियो गेम्स भा रहे है. मोबाइल-कंप्यूटर-वीडियो गेम्स के दौर में ये खेल अपनी प्रासंगिकता खोते जा रहे हैं. बच्चे मोबाइल एवं टेलीविजन की दुनिया में खोते जा रहे हैं. अधिकांश बच्चों के शरीर पर पसीना की बूंदें अब नहीं दिखतीं, क्योंकि वे घरों में ही कैद होकर रह गये हैं.
शारीरिक श्रम का मौका नहीं : व्हॉटस ऐप के फोटो मैसेज का आदान-प्रदान, मोबाइल की स्क्रीन पर रेसिंग रोड, टेंपल रन, मोटर साइकिल रेस बच्चों को शारीरिक श्रम करने का मौका ही नहीं दे रही है. रही-सही कसर टीवी पूरी कर दे रहा है. कभी कॉमिक्स की दुनिया में मोटू-पतलू के चित्र एवं संवाद पढ़ने को बच्चे लालायित रहते थे, लेकिन अब टीवी स्क्रीन पर चलते फिरते मोटू-पतलू हिलने का मौका ही नहीं दे रहे हैं.
बदलते समय में खेल का स्वरूप भी बदला है. आज के बच्चे कंप्यूटर को ज्यादा महत्व दे रहे हैं. इसकी खास वजह है कि वे इस गेम्स से खुद को खेल के साथ-साथ पढ़ाई से जोड़ते हैं. पुराने खेलों में उन्हें न तो पढ़ाई का कोई आधार दिखता है और न ही भविष्य दिखता है. यही कारण है कि पुराने खेल पीछे छूट रहे हैं. हालांकि बच्चों के स्वास्थ्य पर कहीं न कहीं इसका प्रतिकूल प्रभाव जरूर पड़ा है.
डॉ जीके सिंह, वरीय मनोचिकित्सक, बोकारो

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