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बोकारो में भी एक चेतन भगत

बोकारो: इस दुनिया में कुछ भी वैसा नहीं है जैसा दिखता है. हर यथार्थ के पीछे एक अनसुलझी सच्चई है. कोई चीज जैसी दिखती है वैसी है क्या? ऐसा तो नहीं कि कोई एक बड़ा सच हर बार किसी खुलासे से दूर रह जा रहा है? कंप्यूटर, माउस और सॉफ्टवेयर में उलङो रहने वाले सिर्फ […]

बोकारो: इस दुनिया में कुछ भी वैसा नहीं है जैसा दिखता है. हर यथार्थ के पीछे एक अनसुलझी सच्चई है. कोई चीज जैसी दिखती है वैसी है क्या? ऐसा तो नहीं कि कोई एक बड़ा सच हर बार किसी खुलासे से दूर रह जा रहा है? कंप्यूटर, माउस और सॉफ्टवेयर में उलङो रहने वाले सिर्फ 26 साल के शैलेश कुमार झा (सन्नी शांडिल्य) की बात या फिर उसकी सोच पर आज इसलिए चर्चा की जा रही है, क्योंकि उसकी सोच ने आज एक कहानी (नोबेल) की शक्ल ले ली है, बाजार में इसकी लिखी कहानी ‘नव एंड द नाइंथ यूनिर्वस’ की काफी पूछ हो रही है.

शैलेश जो कि कहानियों की दुनिया में नव के नाम से जाना-जाने के लिए अपनी सारी ऊर्जा बेपरवाह तरीके से झोंके जा रहा है, बोकारो का ही एक साधारण सा छात्र है. द पेंटीकॉस्टल एसेंबली, बोकारो से उसने अपनी 12वीं तक की पढ़ाई पूरी की. एक एवरेज लड़का कभी ऐसा कर पायेगा स्कूल प्रबंधन ने कभी ऐसा नहीं सोचा था.

मैथ लेकर पढ़ाई करने वालों के जैसे ही शैलेश की भी इंजीनियर बनने की तमन्ना थी. चेन्नई से इंजीनियरिंग करने के बाद नोएडा के आइबीएम कंपनी में वो सीनियर सिस्टम इंजीनियर के पद पर काम कर रहा है. पर बचपन की कई बातें और भाषा पर अपनी पकड़ को उसने अपने फुरसत के पलों में खूब तराशा. ब्लॉग से अपना सफर शुरू की. ब्लॉग पर रिस्पॉन्स मिलने के बाद अपनी जेहन में चल रही बीस साल की एक कहानी को कागजों पर उकेरने का बीड़ा उठाया. थक कर काम कर लौटने के बाद आराम करने के साथ हर दिन शैलेश ने अपनी कल्पनाओं और जेहन में चल रहे सवालों को खूब सींचा. ताज्जुब इस बात से होती है कि बुक रिलीज से चंद दिनों पहले ही उसके रूम मेट को पता चला कि शैलेश नोबेल लिख रहा है.

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