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बचपन में ही चढ़ा था संगीत का बुखार

बोकारो. मां से रवींद्र संगीत सुन-सुन कर मेरा बचपन गुजरा. मां (चणिका बनर्जी) को देख मैं भी उनकी नकल करने की कोशिश करती. घर में संगीत का माहौल होने से बचपन से ही मेरा भी झुकाव उस ओर हो गया था. हर वक्त दिमाग में कोई धुन गूंजती रहती थी. यह कहना है डीएवी- 06 […]

बोकारो. मां से रवींद्र संगीत सुन-सुन कर मेरा बचपन गुजरा. मां (चणिका बनर्जी) को देख मैं भी उनकी नकल करने की कोशिश करती. घर में संगीत का माहौल होने से बचपन से ही मेरा भी झुकाव उस ओर हो गया था. हर वक्त दिमाग में कोई धुन गूंजती रहती थी.

यह कहना है डीएवी- 06 के संगीत शिक्षिका झुमा बनर्जी का. कहती हैं : दसवीं में म्यूजिक की परीक्षा में पूरे अंक मिलने से हौसला बढ़ा और बाद में मेरा शौक ही मेरा कॅरियर बन गया. श्रीमती बनर्जी 1998 से डीएवी- 06 में संगीत की शिक्षा दे रही हैं. इसके अलावा वे आकाशवाणी रांची में रेडियो आर्टिस्ट का भी काम कर रही हैं. कई भजनों को उन्होंने अपनी आवाज दी है. श्रीमती बनर्जी के अनुसार, किसी भी इनसान में संगीत की समझ शब्दों से पहले उत्पन्न होती है. बच्चों के रोने से लेकर हवा बहने तक में संगीत बसा है.

सीआरपीएफ के स्वच्छता अभियान को आवाज दी

श्रीमती बनर्जी ने बताया कि फरवरी 2015 में सीआरपीएफ की ओर से चलाये जा रहे स्वच्छता अभियान के जागरूकता गीत को उन्होंने अपनी आवाज दी थी. वर्ष 2003 में इन्हें तानसेन अवार्ड से नवाजा गया है. 2008 के यूथ फेस्टिवल में इनके प्रशिक्षण से डीएवी स्कूल नेशनल लेवल तक पहुंचा व स्वागत संगीत में प्रथम, ग्रुप सांग में द्वितीय, भजन में द्वितीय, ग्रुप डांस में द्वितीय व वैदिक नृत्य में प्रथम स्थान मिला. 2007 में रांची में आयोजित एक कार्यक्रम में भी इन्हें एकल नृत्य (क त्थक) प्रतियोगिता में प्रथम स्थान मिला.

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