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दंगा पीड़ितों को मिलेगा लंबित पेंशन
बोकारो: सरकार के गृह विभाग ने वर्ष 1984 में सिख दंगों में मारे गये लोगों के आश्रितों को लगभग पांच वर्ष के लंबित पेंशन भुगतान का निर्णय लिया है. इसके लिए बोकारो जिला को 16 लाख 80 हजार रूपये आवंटित किये गये हैं. विभाग के अपर सचिव एनएन पांडेय ने बोकारो डीसी को इस संबंध […]
बोकारो: सरकार के गृह विभाग ने वर्ष 1984 में सिख दंगों में मारे गये लोगों के आश्रितों को लगभग पांच वर्ष के लंबित पेंशन भुगतान का निर्णय लिया है. इसके लिए बोकारो जिला को 16 लाख 80 हजार रूपये आवंटित किये गये हैं. विभाग के अपर सचिव एनएन पांडेय ने बोकारो डीसी को इस संबंध में आवश्यक दिशा-निर्देश दिया है. शनिवार को जिला प्रशासन राशि निकासी के लिए आवश्यक कार्रवाई में जुटा रहा.
अन्य मद में खर्च नहीं की जा सकेगी राशि
आवंटित राशि की निकासी एवं व्ययन पदाधिकारी बोकारो डीसी होंगे. बोकारो कोषागार से निकाली गयी राशि का भुगतान चेक व ड्राफ्ट से लाभुकों को किया जायेगा. विभाग ने उक्त राशि को किसी अन्य मद में खर्च नहीं करने का निर्देश दिया है.
दो बार दो-दो साल के लिए रुका था पेंशन
आवंटित राशि एक अप्रैल 2008 से 31 मार्च 2010 तक व एक अप्रैल 2012 से 31 मार्च 2014 के लंबित पेंशन के भुगतान के लिए आवंटित की गयी है. इस प्रकार प्रत्येक लाभुक को 2500 रुपये प्रतिमाह की दर से बकाया पेंशन का भुगतान किया जायेगा.
अपना बेटा खोया था मैंने..
उस दंगे में मेरे बेटे की जान चली गयी थी. इसके एवज में सरकार प्रतिमाह 2500 रुपये बतौर पेंशन हमें देती है, लेकिन बीच में चार वर्षो तक वह भी नहीं मिला. दंगों ने जो दुख हमें दिया है, उसकी भरपाई तो कोई भी कीमत नहीं कर सकती है, लेकिन फिलहाल हमारे जीने का आधार यह पेंशन ही है.
खजान सिंह, चास
पेंशन से ही घर चलता है..
सरकार से जो थेड़-बहुत रुपये हमें पेंशन के तौर पर मिलते हैं, उसी से घर का खर्च चलता है. चार वर्षो तक बिना पेंशन घर चलाने में काफी परेशानी हुई. हालांकि अपनों की मौत का दुख इस पेंशन से दूर नहीं होता, लेकिन बस दिन काटने में थोड़ी सी राहत मिल जाती है.
अमरजीत कौर, चास
सिर्फ आश्वासन मिला..
पेंशन नहीं मिलने से काफी परेशानी होती है. उन दंगों ने जैसे हमारे जीवन में जहर घोल दी. चार वर्षो तक बंद पेंशन को चालू कराने के लिए दफ्तरों के चक्कर काट रही हूं, लेकिन अबतक बस आश्वासन ही मिला. सरकार हमारे दुख को अगर थोड़े-बहुत भी समङो तो मेहरबानी होगी.
सुरेंद्र कौर, चास
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