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खुद की आंखों से देख पायेगा दुनिया

बोकारो: ताकि कोई यह न कह दे कि अंधे माता-पिता अपनी बेटी को पढ़ा नहीं सके. अपने सपने को बताते मोहन कुमार चौरसिया की आंखें भर आती है. जोशी कॉलोनी-लकड़ाखंदा निवासी श्री कुमार के परिवार के चार में से तीन सदस्य देखने में असमर्थ हैं. सिर्फ बड़ी बेटी सृष्टि ही दुनिया देख सकती है. एक […]

बोकारो: ताकि कोई यह न कह दे कि अंधे माता-पिता अपनी बेटी को पढ़ा नहीं सके. अपने सपने को बताते मोहन कुमार चौरसिया की आंखें भर आती है. जोशी कॉलोनी-लकड़ाखंदा निवासी श्री कुमार के परिवार के चार में से तीन सदस्य देखने में असमर्थ हैं. सिर्फ बड़ी बेटी सृष्टि ही दुनिया देख सकती है. एक छोटा-से जनरल स्टोर से श्री कुमार पूरे घर का पेट भरते हैं. इस काम में इनकी मदद सृष्टि करती है.

2003 में हेमंती देवी (जन्म से देखने में असमर्थ) के साथ शादी होने के बाद जब 2007 में बड़ी बेटी ने जन्म लिया, तो लगा कि जिंदगी के सारे गम दूर हो गये. 2009 में जब छोटी बेटी दृष्टि का जन्म हुआ तो दुख ने वापस परिवार की तरफ मुंह मोड़ लिया. दृष्टि भी जन्म से नहीं देख सकती है. सुबह जागने से लेकर सोने तक आठ वर्षीय सृष्टि के छोटे कंधों पर जिम्मेदारी का बोझ रहता है. श्री कुमार ने बताया : वह आठ वर्ष के थे, जब खेल में उन्हें आंख में चोट लग गयी थी.

दायीं आंख बेकार हो गयी, बायीं से हल्का दिखता है. हैल्पिंग हैंड्स चास-बोकारो ने मदद का हाथ बढ़ाया. संस्था के संस्थापक गोपाल मुरारका ने बीजीएच के डॉक्टर संजय चौधरी की मदद से सभी सदस्यों की नेत्र जांच करायी. डॉक्टर की टीम ने श्री कुमार की आंख की स्थिति देख इलाज नहीं कराने की सलाह दी, जबकि पत्नी व छोटी बेटी का ऑपरेशन करवाने को कहा. 17 जनवरी व 23 मार्च को छोटी बेटी की दोनों आंख का ऑपरेशन हुआ, जबकि मां का एक आंख का इलाज हो गया है. दूसरी आंख का इलाज हैल्पिंग हैंडस की मदद से अगले महीने होगा. श्री कुमार का परिवार एक कमरे के घर में रहता है.

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