नयी दिल्ली: “वेकअप सिड” और “माई नेम इज खान” जैसे फिल्मों के माध्यम से विभिन्न राजनीतिक समूहों पर निशाना साधने वाले करण जौहर एक फिल्म निर्माता के तौर पर खुद को कमजोर और सीमित दायरे में बंधा हुआ महसूस करते हैं.
1998 में “कुछ कुछ होता है” से अपने निर्देशकीय पारी की शुरुआत करने वाले जौहर ने बताया कि अपनी पहली फिल्म से ही वह कानूनी मामलों से जूझ रहे हैं और उसी समय से वह राजनीतिक पार्टियों और समूहों से मुकाबला कर रहे हैं. यहां तक कि एक बार मेरा पुतला जलाया गया था. उन्होंने बताया कि राजनीति या इससे जुड़े किसी मुद्दे पर मैं अपना विचार व्यक्त करने या बयान देने से बचता हूं. देश के नागरिक होने के कारण मैं खुद को सीमित दायरे में बंधा हुआ पाता हूं.
“सेलिब्रेटिंग 100 ईयरस ऑफ इंडियन सिनेमा – द रोड अहेड” विषय पर अपना विचार साझा करने के लिए जौहर राजधानी में थे. यह कार्यक्रम शताब्दी फिल्म महोत्सव पर आयोजित की गयी है. उन्होंने कहा कि फिल्म प्रदर्शन, प्रदर्शन से पहले और यहां तक कि प्रदर्शन के बाद भी हम लोग कमजोर महसूस करते हैं. हालांकि मेरा मानना है कि निर्माता को डर महसूस नहीं करना चाहिए. 40 वर्षीय निर्माता की “माई नेम इज खान” फिल्म का शिवसेना ने विरोध किया था और महाराष्ट्र में इस फिल्म को देर से प्रदर्शित किया गया था.