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आदिवासियों को पहचान नहीं देना चाहती सरकार

रांची: स्कॉटलैंड यार्ड’ (लंदन पुलिस) में 10 साल तक कार्य कर चुके और फिलहाल झारखंड की ‘ट्राइबल ड्रीम्स’ एनजीओ से संबद्ध अंथोनी काचातूरियन ने कहा कि झारखंड के आदिवासियों को मूलभूत सुविधाएं नहीं मिल रही हैं. उनका धर्म कोड तक नही हैं. उन्होंने कहा कि सरकार उन्हें किसी भी तरह का पहचान देना नहीं चाहती. […]

रांची: स्कॉटलैंड यार्ड’ (लंदन पुलिस) में 10 साल तक कार्य कर चुके और फिलहाल झारखंड की ‘ट्राइबल ड्रीम्स’ एनजीओ से संबद्ध अंथोनी काचातूरियन ने कहा कि झारखंड के आदिवासियों को मूलभूत सुविधाएं नहीं मिल रही हैं. उनका धर्म कोड तक नही हैं.

उन्होंने कहा कि सरकार उन्हें किसी भी तरह का पहचान देना नहीं चाहती. उन्हें आसानी से न वोटर कार्ड, न राशन कार्ड, न बीपीएल कार्ड मिलता है. मेसो के तहत हर साल दस करोड़ की राशि आती है. हर एमपी को पांच करोड़ मिलता है.

मनरेगा का असीमित पैसा है, कंपनियों को सीएसआर पर दो फीसदी खर्च करना है, इसके बावजूद उनकी स्थिति में सुधार नहीं आया है. वह चाहते हैं कि आदिवासी जनहित याचिका और सूचना के अधिकार के जानकारियां हासिल करें और अपने हक की लड़ाई लड़े. महारैली में ओड़िशा के धर्मगरु डीडी तिग्गा, नेपाल के किशुन उरांव, खड़ग नारायण उरांव, शरण उरांव, उत्तर प्रदेश के अनिल उरांव, बुधु भगत, विश्वनाथ तिर्की, विद्यासागर केरकेट्टा, इंदु मुंडा, सुशील मिंज, मणिलाल केरकेट्टा, जीतू उरांव, सुमी उरांव, गौतम उरांव, बुधराम उरांव, गौतम उरांव, सुरेश उरांव, शिवचरण उरांव शामिल थे.

आंदोलन का समर्थन
ऑल मुसलिम यूथ एसोसिएशन के अध्यक्ष एस अली व अन्य कार्यकर्ता भी महारैली में शामिल हुए और सरना धर्म कोड, सरना धर्म न्यास बोर्ड के गठन व आदिवासियों को उनका संवैधानिक हक देने की मांग का समर्थन किया. एस अली ने कहा कि झारखंड में आदिवासियों का धार्मिक और मुसलमानों का राजनीतिक शोषण हो रहा है. दोनों समुदाय के लोगों को इन सवालों पर गंभीरता से सोचना होगा और नवनिर्माण में अपनी भागीदारी निभानी होगी. शिक्षा पर हमारे समाज को विशेष ध्यान देना होगा.

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