झारखंड में सरकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए मुख्य सचिव आरएस शर्मा की पहल पर नयी व्यवस्था लागू की गयी. सभी भुगतान को आधार से जोड़ने का आदेश दिया गया. उसके बाद पता चला कि कैसे फर्जीवाड़ा चल रहा था. एक व्यक्ति दो-दो, तीन-तीन बार भुगतान ले रहे थे. कई जिलों के उपायुक्तों ने इसे लागू करने में गंभीरता नहीं बरती. अगर सभी उपायुक्त सक्रिय हो जायें, तो गड़बड़ी रुक जायेगी.
रांची: राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (नेशनल सोशल असिस्टेंट प्रोग्राम) के तहत लागू डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी) योजना उपायुक्तों के असहयोग व निष्क्रियता के कारण फंस गयी है. फंड बंटवारे में पारदर्शिता व चोरी रोकनेवाला यह केंद्र प्रायोजित कार्यक्रम देश के चुनिंदा शहरों में शुरू किया गया था. केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश व आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन किरण रेड्डी ने पूर्वी गोदावरी जिले के गोल्लाप्रोलु में छह जनवरी 2013 को इसकी शुरुआत की थी. झारखंड के सभी जिलों में भी यह लागू हुआ. मुख्य सचिव आरएस शर्मा ने एक अप्रैल को प्रभार लेने के बाद यह महसूस किया कि डीबीटी के माध्यम से राज्य के सामाजिक सुरक्षा व बीपीएल परिवारों को वित्तीय लाभ या अनुदान (सब्सिडी) सीधे दिया (ट्रांसफर) जा सकता है. जिन्हें इसकी जरूरत नहीं, इस सिस्टम से उन पर रोक लगायी जा सकती है. सीएजी के कार्यालय में लगाया गया सेंट्रल प्लान स्कीम मॉनिटरिंग सिस्टम (सीपीएसएमएस) डीबीटी के लिए एक कॉमन प्लेटफॉर्म की तरह कार्य करता है. यह माना गया था कि सीपीएसएमएस का उपयोग लाभुकों की सूची बनाने, उनका डिजिटल हस्ताक्षर लेने व आधार संख्या का उपयोग करते हुए उनके बैंक खाते में भुगतान करने में किया जा सकता है. सीपीएसएमएस की वेबसाइट पर डीबीटी से संबंधित निर्देश दिया जा सकता था.
इसी विश्वास के साथ मुख्य सचिव ने डीबीटी लागू करने की सोची. इस सिस्टम के शुरू होने से फरजी लाभुकों पर लगाम लगती, जिनकी वजह से सरकारी खजाने से हर वर्ष सैकड़ों करोड़ रुपये खाली होते रहे हैं. इस मुद्दे पर मुख्य सचिव ने राज्य के सभी 24 उपायुक्तों से वीडियो कांफ्रेंसिंग की. इसके बाद की सरकारी जांच में राज्य भर में सैकड़ों-हजारों फरजी लाभुक होने का खुलासा हुआ. ऐसे लोग मैनुअल सिस्टम के तहत वृद्धावस्था पेंशन जैसे सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम का लाभ उठा रहे थे. इधर फरजी लाभुकों को सूची से हटाने व सही लोगों के नाम उनके आधार संख्या से जोड़ कर उन्हें योजनाओं का लाभ डीबीटी के माध्यम से देना एक बड़ी बाधा साबित हो रही है.
कई उपायुक्तों का प्रदर्शन इतना खराब है कि इसे सुधारने के लिए मुख्य सचिव ने उन्हें अलग-अलग पत्र लिखा (प्रभात खबर के पास इनकी छाया प्रति मौजूद है). उदाहरण के तौर पर यहां चार जिलों के उपायुक्तों को लिखे गये मुख्य सचिव के पत्र का अवलोकन व निर्देश यहां प्रस्तुत है. पत्र में मुख्य सचिव ने पूरे मामले पर असंतोष जताया है. योजना लागू करने के लिए उनके (उपायुक्तों के) सक्रिय रोल की जरूरत बतायी है. यह भी कहा था कि कार्यक्रम को यथाशीघ्र लागू करना सुनिश्चित की जाये. गुमला की उपायुक्त वीणा श्रीवास्तव को लिखी चिट्ठी का उदाहरण लिया जा सकता है. मुख्य सचिव ने उन्हें लिखा था – जैसा कि मैंने कई अवसरों पर आपसे कहा है कि लाभुकों को आधार से जोड़ना फरजी लाभुकों को हटाने में मददगार हो सकता है. दुर्भाग्यवश यह प्रक्रिया बहुत धीमी है. राज्य भर के मात्र 25 फीसदी लाभुकों को ही अब तक आधार से जोड़ा जा सका है. कुछ जिलों में तो यह 10 फीसदी से भी कम है. ऑनलाइन पोर्टल से लिये गये आंकड़े के अनुसार गुमला जिले में विभिन्न योजनाओं से संबद्ध लाभुकों की कुल संख्या 36282 है. वहीं इनमें से सिर्फ 8057 को ही आधार से जोड़ा जा सका है. यह लाभुकों की कुल संख्या का करीब 22.19 फीसदी ही है. श्री शर्मा ने आगे लिखा कि आधार संख्या से फरजी लाभुकों का पता लगाया जा सकेगा. इसलिए इस काम को यथाशीघ्र पूरा करने की जरूरत है. जो जिले ऐसा नहीं कर सकेंगे, उन्हें अनियमितताओं के लिए जिम्मेवार माना जायेगा.
सरायकेला के उपायुक्त कृपानंद झा को मुख्य सचिव ने उनके जिले में फरजी आधार संख्या के बारे लिखा था. जिले में कुल 8510 नकली आधार नंबर बताये गये थे. इसका मतलब यह था कि या तो डाटा बेस में आधार संख्या की इंट्री गलत तरीके से की गयी थी या फिर एक ही आदमी को एक से अधिक तरह की पेंशन का भुगतान हो रहा है. राज्य भर के कुल 2.54 लाख आधार संख्या में से 14118 आधार डुप्लिकेट या नकली हैं. इनमें से सरायकेला में ही 39.63 फीसदी नकली आधार हैं.
इसी तरह के मामले में मुख्य सचिव ने सिमडेगा के डीसी प्रवीण कुमार को भी पत्र लिखा. श्री शर्मा लिखते हैं : डेटा विश्लेषण से बड़ी संख्या में डुप्लीकेट बैंक या पोस्ट ऑफिस एकाउंट होने का तथ्य सामने आया है. डेटा बेस के अध्ययन से पता चलता है कि आपके जिले में डुप्लीकेट बैंक/पोस्ट ऑफिस एकाउंट (2793911.43 प्रतिशत) होने की जानकारी मिलती है. यह स्पष्ट करता है कि सिमडेगा में एक व्यक्ति को एक से अधिक व्यक्ति की पेंशन मिल रही है या फिर एक ही बैंक खाते का इस्तेमाल एक से अधिक पेंशनभोगियों को राशि देने में किया जा रहा है. यह कार्यप्रणाली भ्रष्टों को लाभ पहुंचा रही है. वे लिखते हैं, कई लाभार्थियों को एक एकाउंट से जोड़ने के कई उदाहरण हैं. आपको आश्चर्य होगा कि आपके जिले में एक एकाउंट नंबर में दो बार लाभांवित होनेवाले मामलों की संख्या 1221 है. 106 मामले ऐसे हैं, जहां एक एकाउंट नंबर को छह या ज्यादा बार इस्तेमाल में लाया गया है. उदाहरण के लिए इलाहाबाद बैंक, सिमडेगा के एकाउंट नंबर 21406301659 आपके डेटा बेस में छह बार पाया गया है. इसी प्रकार बैंक ऑफ इंडिया की लचरागढ़ शाखा में एकाउंट नंबर 491910100012480 भी डेटा बेस में छह बार अंकित है. इसका स्पष्ट मतलब है कि छह लोगों की पेंशन एक ही व्यक्ति के खाते में जा रही है.
गढ़वा के उपायुक्त आरपी सिन्हा को लिखे गये पत्र में मुख्य सचिव कहते हैं : डेटा का विेषण बताता है कि वृद्धावस्था पेंशन का लाभ वैसे लोग भी उठा रहे हैं, जो बूढ़े नहीं हैं. कई मामलों में साफ -साफ पता चल रहा है कि वृद्धावस्था पेंशन लेनेवाले इसके मापदंडों को पूरा नहीं करते. दुर्भाग्य से राज्य सरकार द्वारा दी जानेवाली पेंशन में वृद्ध, विकलांग, विधवा और बंधुआ मजदूरों को अलग-अलग श्रेणियों में बांटा नहीं गया है. इसी वजह से योजनाओं का लाभ लेनेवालों की पात्रता का विेषण मुश्किल हो गया है. पत्र में श्री शर्मा गढ़वा के उपायुक्त को बताते हैं कि उनके स्तर से तुरंत सुधार की कार्यवाही की गयी है. श्रम सचिव और श्रमायुक्त को योजना में विसंगति की जांच कर रिपोर्ट तैयार करने और आवश्यक कार्रवाई करने के लिए कहा गया है. मुख्य सचिव ने डीसी गढ़वा को सामाजिक सुरक्षा के डीआइओ, एडी और फील्ड अफसरों को अनियमितता के बारे में बताते हुए जांच कराने का निर्देश दिया है. उन्होंने फरजी तरीके से लाभ प्राप्त कर रहे पेंशनधारियों पर त्वरित कानूनी कार्रवाई करने के लिए कहा है. श्री शर्मा लिखते हैं कि डीआइओ की मदद से डेटा का विश्लेषण करने पर इस तरह की दूसरी अनियमितताएं भी सामने आ सकती हैं.
गोड्डा के उपायुक्त के रवि कुमार को लिखे गये पत्र में मुख्य सचिव ने उनके जिले में भी डेटा विेषण से इसी तरह की गड़बड़ियों का खुलासा किया है. डेटा का विेषण बताता है कि गोड्डा में भी बड़ी संख्या में डुप्लीकेट बैंक और पोस्ट ऑफिस एकाउंट हैं. वहां डुप्लीकेट बैंक एकाउंट के 4424 (10.53 प्रतिशत) मामलों का पता चला है. गोड्डा डीसी को लिखे गये पत्र में मुख्य सचिव कहते हैं : यह स्पष्ट करता है कि आपके जिले में एक व्यक्ति को एक से अधिक व्यक्ति की पेंशन मिल रही है या फिर एक ही बैंक खाते का इस्तेमाल एक से अधिक पेंशनभोगियों को राशि देने में किया जा रहा है. यह कार्यप्रणाली भ्रष्टों को लाभ पहुंचानेवाली है. आपको आश्चर्य होगा कि आपके जिले में एक एकाउंट नंबर में दो बार लाभांवित होनेवाले मामलों की संख्या 2014 है. 126 मामले ऐसे हैं, जहां एक एकाउंट नंबर दो से अधिक बार इस्तेमाल में लाया गया है. 126 मामलों में तो एक एकाउंट नंबर का इस्तेमाल पांच-पांच बार पाया गया है.
गोड्डा के उपायुक्त के रविकुमार से प्रभात खबर ने पूछा कि इस धोखाघड़ी को रोकने के लिए उन्होंने क्या किया. रविकुमार ने कहा : इसमें दो तरह की परेशानियां हैं. पहली समस्या है, एक ही आधार नंबर का कई बार प्रयोग किया जाना. इस तरह की दिक्कत हमारे जिले में नहीं है. दूसरी समस्या बैंकों से संबंधित है. हम योजना लागू करने की कोशिश कर रहे हैं, पर बैंक हमें सहयोग नहीं कर रहे हैं. प्रभात खबर ने मुख्य सचिव की चिट्ठी पर प्रतिक्रिया लेने के लिए दर्जन भर से ज्यादा उपायुक्तों से बात की. के रवि कुमार की तरह लगभग सभी उपायुक्तों की भावना यही है.
डीबीटी लागू करने में राज्य सरकार और बैंक के बीच समन्वयक की भूमिका निभा रहे बैंक ऑफ इंडिया के अधिकारी बीके सिन्हा से यह पूछा गया कि बैंक डीबीटी लागू करने में सहयोग क्यों नहीं कर रहे हैं. श्री सिन्हा ने कहा कि फरजी और डुप्लीकेट लाभार्थियों की पहचान करना परेशानी का काम है. बैंक के लिए फरजी लाभुकों को ढ़ूंढ़ कर उसे हटाना काफी परेशानियां हो रही है.
(लेखक झारखंड स्टेट न्यूज.कॉम के संपादक है)