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सबसे गरीब जनता, सबसे अमीर विधायक

-हरिवंश- नौ वर्षों में झारखंड के मंत्रियों और विधायकों का छह बार वेतन बढ़ा. इस बीच झारखंडी जनता की प्रति व्यक्ति आय उस अनुपात में नहीं बढ़ी. इस तरह झारखंड की जनता देश की सबसे गरीब, पर झारखंड के विधायक देश के सबसे अमीर विधायक. गुजरात, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, मध्यप्रदेश वगैरह से भी अधिक तनख्वाह […]

-हरिवंश-

नौ वर्षों में झारखंड के मंत्रियों और विधायकों का छह बार वेतन बढ़ा. इस बीच झारखंडी जनता की प्रति व्यक्ति आय उस अनुपात में नहीं बढ़ी. इस तरह झारखंड की जनता देश की सबसे गरीब, पर झारखंड के विधायक देश के सबसे अमीर विधायक. गुजरात, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, मध्यप्रदेश वगैरह से भी अधिक तनख्वाह और सुविधाएं झारखंड के विधायकों की. राज्य बना, तब झारखंड के मुख्यमंत्री 19000 पाते थे. अब लगभग प्रतिमाह 52000. कुछेक विधायकों, मंत्रियों पर प्राइवेट प्रैक्टिस के आरोप अलग हैं.

कानूनन तो झारखंड के विधायक- मंत्री सबसे अमीर बने ही, झारखंड के कुछेक मंत्रियों ने भ्रष्टाचार में भी वह रिकार्ड बनाया, जो देश में कहीं नहीं है. मंत्री के पीए के पास अगर 13.88 करोड़ का फिक्सड डिपोजिट मिलता है, तो मंत्री की हैसियत का अनुमान सहज ढंग से लगाया जा सकता है?

अगर इन विधायकों या सरकारों ने झारखंड को देश का सबसे संपन्न राज्य बनाया होता, तो उनका नैतिक हक होता कि वे सबसे संपन्न विधायक बनते. पर विधानसभा में इनके बहस का स्तर देखिए. कुछेक लोग जरूर अपवाद हैं. पर सामान्यतया बहस का स्तर कमजोर, अपूर्ण और सतही है. बॉडीगार्ड की संख्या बढ़ाने पर ये बहस करते हैं. एके47 से सुसज्जित जवान सुरक्षा के लिए मिलें, इस पर विधायक चिंतित होते हैं. इनके सवाल पुल, पुलिया और सड़क तक ही सीमित रहते हैं. क्योंकि इनका संबंध दुधारू इंजीनियरों से है. बनते ही पुल, पुलिया गायब हो जाते हैं. सड़कें चोरी हो जाती हैं.

इसकी तह में विधायक या सरकार नहीं जाते. विधानसभा से जारी होनेवाले ड्राफ्टों में भी गलतियां रहती हैं. बजट पेश करने में मर्यादाओं-नियमों का पालन नहीं होता. ये इस्तीफा देने के बाद भी सुविधाएं नहीं लौटाते. विधानसभा में 31 समितियां बनीं. 16 ने रिपोर्ट ही नहीं दी. जिन्होंने रिपोर्ट दी, उनका स्तर और गहराई देखने योग्य है. इससे जांच कमेटी में शरीक विधायकों की अगंभीरता या अज्ञानता भी स्पष्ट होती है.

इस तरह परफारमेंस में सिफर, पर सुविधाओं में सबसे अव्वल. पिछले साल झारखंड में 47 लोगों ने गरीबी से तंग आकर आत्महत्या कर ली. पर छह सालों में मुख्यमंत्री आवास के सौंदर्यीकरण में छह करोड़ खर्च हुए. मंत्रियों, विधायकों, विधानसभा अध्यक्षों के आवास सौंदर्यीकरण पर 12 करोड़ खर्च हुए. पूर्व मुख्यमंत्रियों और पूर्व विधायकों पर 2.29 करोड़ खर्च हुए. देश में पूर्व मुख्यमंत्रियों को कहीं आजीवन सुविधा नहीं है. पर झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्रियों को आजीवन सुविधाएं दी गयीं. सार्वजनिक जीवन में बेशर्मी और अमर्यादा की पराकाष्ठा.
नौ वर्षों में राज्य के युवाओं के लिए क्या हुआ? एक बेहतर शिक्षण संस्थान नहीं खुला. न मेडिकल कॉलेज, न आइआइएम, न केंद्रीय विश्वविद्यालय, न लॉ कॉलेज. याद करिए, 2000 में ही लॉ कॉलेज की स्थापना की घोषणा हुई, पर नौ वर्ष हो गये, एक कॉलेज नहीं खुल सका. यहां के मंत्री दो-दो गाड़ियां रखने को अधिकृत थे, पर छह-आठ गाड़ियों पर कब्जा जमा लिया था. पुलिस की विशेष टुकड़ी, जो नक्सलियों से लड़ने के लिए प्रशिक्षित की गयी, यानी आम आदमी को सुरक्षा देने के लिए, उसे मंत्रियों, विधायकों ने खुद अपनी सुरक्षा में लगा लिया. राष्ट्रीय खेल समय पर नहीं हुआ. इस कारण इस गरीब राज्य पर एक करोड़ का जुर्माना लगा.
जिस विधानसभा से सार्वजनिक जीवन में नैतिक मापदंड, उच्च आदर्श, श्रेष्ठ इफिसियेंसी, राजकाज चलाने का सर्वश्रेष्ठ हुनर निकल कर राज्य के कोने-कोने में पसरना चाहिए था, उस विधानसभा से निजी स्वार्थ, खुद के वेतन और भोग बढ़ाने, खुद की सुरक्षा बढ़ाने के संदेश गये. सार्वजनिक जीवन की सर्वश्रेष्ठ संस्था, अगर श्रेष्ठ मूल्यों का केंद्र नहीं बन सकी, तो झारखंड में यह अव्यवस्था फैलनी ही थी. इतिहासकार कहते हैं कि जहां भी लोगों ने कनविक्सन (प्रतिबद्धता) की जगह कनविनियेंस (सुविधा) को तरजीह दी, उस समाज का भविष्य नहीं बना. अतीत अंधेरे में गुम हो गया.

हमारी पुरानी मान्यता रही है –

महाजनो येन गता स: पंथा:
(जिस रास्ते से महान लोग गये हों, वही रास्ता सही है)
लोकतंत्र के मंदिर विधानसभा से मूल्यों की, श्रेष्ठ आचरण की, पारदर्शी नीतियों की जो नदी निकलनी चाहिए थी, वह नहीं निकली, बल्कि जो प्रदूषित धारा बही, उससे आज झारखंड दुर्गंधमय है. झारखंड में भ्रष्टाचार की जो दुर्गंध ऊपर से नीचे तक पसर गयी है, उससे झारखंड देश में भ्रष्टाचार, कुव्यवस्था और अशासित होने का प्रतीक बन गया है. क्या इन चुनावों में इसकी सफाई होगी?
विधायकों का वेतन (प्रतिमाह)
झारखंड26000 रुपये
गुजरात21000 रुपये
नगालैंड10000 रुपये
मध्यप्रदेश9000 रुपये
कर्नाटक8000 रुपये
हिमाचल 8000 रुपये
गोवा5000 रुपये
राजस्थान5000 रुपये
ओडिशा5000 रुपये
सिक्किम4000 रुपये
पंजाब4000 रुपये
पं बंगाल3000 रुपये
दिल्ली3000 रुपये
मेघालय3000 रुपये
तमिलनाडु 2000 रुपये
छत्तीसगढ 1500 रुपये
केरल 3000 रुपये
हरियाणा 1000 रुपये
झारखंड में अतिरिक्त सुविधाओं का पैकेज
मनोरंजन भत्ता 5000 रुपये प्रतिमाह
निजी सचिव भत्ता 10000 रुपये प्रतिमाह
यात्रा 3 लाख रुपये प्रतिवर्ष
स्थानीय यात्रा 10 रुपये प्रति किमी (विधानसभा क्षेत्र में)
टेलीफोन 1 लाख रुपये प्रतिवर्ष
(स्रोत – पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च)
झारखंड के विधायकों की प्रतिमाह परिलब्धियां हैं, 46000. प्रति वर्ष डेवलपमेंट बजट में 3 करोड का फंड, जो देश में कहीं नहीं है.

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