-विवेक चंद्र-
रांचीः झारखंड में मंत्री के साथ-साथ उनके पुत्र भी राज चला रहे हैं. ऐसे मंत्री पुत्रों की संख्या दो से अधिक भी हो सकती है. अधिकारियों से ऐसे मंत्री पुत्र सीधे बात करते हैं, ट्रांसफर-पोस्टिंग तय करते हैं, ठेका दिलाने में मदद भी करते हैं. इसके एवज में वे अपना हिस्सा भी तय कर लेते हैं. कई मंत्री पुत्र पिता की ओर से निर्णय भी सुनाते हैं. विभाग कैसे चलेगा, यह भी बताते हैं.
राज्य के एक बड़े अफसर अपनी पसंदीदा जगह पर पोस्टिंग चाह रहे थे. अफसर आरोपी भी हैं. विभागीय कार्यवाही के लिए प्रपत्र-क भी गठित हो चुका है. जिले में विभाग के प्रमुख की पोस्टिंग का मामला था. अफसर ने मंत्री के दरबार में संपर्क साधा. मंत्री के एक नजदीकी सूत्र ने अफसर को सलाह दी कि साहब के बेटे से संपर्क साधे. काम हो जायेगा. अफसर ने मंत्री पुत्र को फोन लगाया. मंत्री पुत्र ने अफसर को तलब किया. विभाग की परेशानी बतायी, काम का टास्क भी दिया. अफसर की पोस्टिंग वहीं, पर हो गयी, जहां वे चाह रहे थे. वे अभी भी काम कर रहे हैं.
यह तो झारखंड की शासन व्यवस्था का एक उदाहरण है. कई विभाग ऐसे हैं, जहां मंत्री पुत्रों का खौफ है. मंत्री पुत्र ही क्षेत्र का जिम्मा संभाल रहे हैं. अपने पिता के क्षेत्र में मनपसंद अधिकारियों की पोस्टिंग करा रहे हैं. मंत्री के विभाग में फाइल अटक रही है, तो सत्ता के गलियारे के लोग पुत्रों से ही संपर्क साध रहे हैं.
मंत्री का भारी भरकम विभाग है. इनके पास कई महत्वपूर्ण विभाग है. सूचना के मुताबिक, मंत्री पुत्र के दबाव में ट्रांसफर-पोस्टिंग की सूची में फेरबदल हुआ. अपने चहेते को मनपंसद जगह पर पोस्टिंग करायी. इसमें खेल भी चला.
संताल से एक मंत्री का बेटा करता है ठेका मैनेज
एक मंत्री संताल परगना से आते हैं. मंत्री के पुत्र की भी कंस्ट्रक्शन कंपनी है. खुद ठेका करते हैं. मंत्री पुत्र फिलहाल अपने पिता के विभाग में ठेका मैनेज कर रहे हैं. इंजीनियरों के बीच इनका फरमान चलता है. ठेकेदार भी इनके पास ही दौड़ते हैं. मंत्री पुत्र टेंडर मैनेज करने में भागीदारी होती है.
पुत्र के मौखिक आदेश पर फाइलों पर चलती है पिता की कलम
विभागीय समीक्षा में बैठ रहे हैं
राज्य के एक मंत्री के पुत्र तो सरकारी अधिकारियों के साथ बैठक भी करते हैं. यह भी कह सकते हैं कि उनका विभाग बेटे के हाथ में है. मंत्री के योगदान देने से पहले वह सचिवालय में आकर निर्देश देकर गये. मंत्री कहां बैठेंगे, कब मिलेंगे, काम कैसे होगा, सब बता कर गये थे. मंत्री महोदय ने पहली बैठक की, तो पुत्र भी मौजूद थे. अधिकारियों को निर्देश दे रहे थे. इस विभाग में पत्ता भी मंत्री पुत्र के बिना नहीं हिलता है. पुत्र के मौखिक आदेश पर पिता की कलम. विभागीय समीक्षा में पुत्र अधिकारियों पर बरसते हैं. मंत्री से किसी मुद्दे पर बात करनी हो, तो उनके बेटे से बात करने की सलाह विभागीय अधिकारी देते हैं. यही नहीं, फाइलों की अद्यतन स्थिति भी पुत्र ही बताता है. कांके स्थित विभाग के एक कार्यालय में अधिकारी की कुरसी पर बैठ कर अधिकारियों को हटाने और कार्रवाई करने की बात भी कह रहे थे.
आरोपी अफसर की भी करा दी मनपसंद जगह पर पोस्टिंग
आयोग की जिम्मेवारी के लिए लगा रहे हैं जोर
हाल में ही एक आयोग के अध्यक्ष को भंग किया गया है. इसमें जगह के लिए घटक दलों में लॉबिंग चल रही है. राज्य के दो मंत्री में जोर-आजमाइस है. दोनों मंत्री अपने-अपने बेटे को इस आयोग का अध्यक्ष बनाना चाहते हैं. राष्ट्रपति शासन में एक मंत्री पुत्र का नाम राजभवन तक भी गया था. लेकिन राजभवन से सहमति नहीं मिली थी.
मंत्री के दामाद भी सत्ता के गलियारे में