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झारखंड: बालू का उठाव बंद होने से काम ठप 20 दिनों से काम नहीं

रांची: का जाने, बालू सिराय गेलेक कि का होले.., 20 दिन से कोनों काम नखे. जेहे पइसा रहे, भड़े में खतम. अब छउवा मने कइसे खाबैं. एहां तो कोनो नई काम करे बोलउला. कइसे काम करबे. कैसे जीइब. (बालू खत्म हो गया या क्या हुआ, नहीं मालूम..20 दिन से कोई काम नहीं है. जो भी […]

रांची: का जाने, बालू सिराय गेलेक कि का होले.., 20 दिन से कोनों काम नखे. जेहे पइसा रहे, भड़े में खतम. अब छउवा मने कइसे खाबैं. एहां तो कोनो नई काम करे बोलउला. कइसे काम करबे. कैसे जीइब. (बालू खत्म हो गया या क्या हुआ, नहीं मालूम..20 दिन से कोई काम नहीं है. जो भी पैसे थे, भाड़े में खत्म हो गये.

अब बच्चे कैसे खायेंगे. यहां तो कोई काम करने नहीं बुलाया. कैसे काम करेंगे, कैसे जीयेंगे. ) इतना कह कर रातू रोड स्थित रिलायंस फ्रेश के सामने काम की तलाश में खड़ी सुनीता की आंखें भर आती हैं. उम्र करीब 40 साल है, रेजा का काम करती है. पर इधर बालू का उठाव बंद होने से काम ठप है. पिछले 20 दिनों में उसे केवल दो दिन ही काम मिला है. पहले प्रतिदिन 200 से 250 रुपये कमा लेती थी. सुनीता के छोटे-छोटे बच्चे हैं. दलादली से 10 रुपये भाड़ा देकर प्रतिदिन काम की तलाश में रातू रोड आती है. पर, उसे काम के लिए कोई नहीं ले जाता. थोड़े-बहुत लोग आते भी हैं, तो इक्के-दुक्के मजदूर को काम के लिए ले जाते हैं, पर सुनीता का नंबर कभी नहीं आता. स्थिति यह है कि वह अब 150 रुपये में भी काम करने को तैयार है. बस कहीं काम मिल जाये, ताकि बच्चों का पेट भर सके.

इसी तरह रीठा टोली से रीता देवी आती है. वह भी परेशान है. कहती है, जब से बालू की दिक्कत हुई है, वह रातू रोड आती है और दो घंटे तक बैठी रहती है, पर कोई काम नहीं मिल रहा है. अब ठेकेदार भी काम करने के लिए नहीं बुलाते हैं. यह कहानी केवल सुनीता और रीता की नहीं है. रांची में रातू रोड, हरमू, हरमू रोड, बाजार टांड, लालपुर, बिरसा चौक में प्रतिदिन आठ बजे से 10 बजे तक काम की तलाश में जुटे हर कुली, रेजा और राज मिस्त्री की है. रांची में एक दिन में करीब पांच से छह हजार मजदूर काम की तलाश में सुबह विभिन्न स्थानों पर जमा होते है. पर पिछले 20 दिनों से यदा-कदा ही उन्हें काम मिल पा रहा है.

इनकी भी कहानी कुछ ऐसी ही
– सहदेव मिस्त्री मांडर से आते हैं. कहते हैं : राज मिस्त्री के रूप में न जाने कितनी इमारतें अपने हाथों से गढ़ दी हैं. पर कभी ऐसा भी दिन आयेगा, नहीं सोचा था. 350 रुपये डेली की कमाई होती थी. जिंदगी मजे से चल रही थी. जब भी आते काम मिल ही जाता था. पर 20 दिनों में तो कमर ही टूट गयी है. कोई नहीं मिल रहा है कि चलो घर बनाना है.

– बोबिन मिस्त्री भी मांडर से 30 रुपये भाड़ा देकर रातू रोड आते हैं. पर पिछले 20 दिनों में केवल दो दिन ही काम मिला है. वह कहते हैं : इतना पैसा तो भाड़ा देने में ही खत्म हो गया. सरकार जाने क्या कर रही है. मजदूरों की चिंता नहीं, केवल अपनी चिंता में मगA है.

पहले 2500 अब 7500 रु
सितंबर माह में एक ट्रक बालू की कीमत 2200 से 2500 रुपये तक थी. रांची में बालू घाटों की नीलामी हो चुकी है. इधर बालू ट्रक को पकड़ने का खेल आरंभ हो गया. बताया गया कि रांची में द मिल्स स्टोर मुंबई और महावीर इंफ्रा को बालू घाट का ठेका मिला है. इन्होंने जिला प्रशासन से बालू की आपूर्ति पर रोक लगाने की मांग की. इस वजह से धर-पकड़ आरंभ हो गयी. 10 नवंबर से बालू की कीमत छह हजार रुपये से बढ़ कर 7500 रुपये प्रति ट्रक हो गयी. वर्तमान में लोग दस हजार रुपये तक देने को तैयार हैं.

सरकार नहीं बना सकी नीति
झारखंड निर्माण के बाद बाबूलाल मरांडी की सरकार ने बालू घाटों को मुफ्त कर दिया था. सारा अधिकार ग्राम सभा को दे दिया था. ग्राम सभा से कहा गया था कि बालू घाट से बालू सप्लाई करने के बाद जो कमाई होगी, उससे गांव का विकास करें. अब तक इसी व्यवस्था से बालू की आपूर्ति हो रही थी. इसी बीच अगस्त 2012 में तत्कालीन सरकार ने बालू घाटों की नीलामी कराने का फैसला लिया. तर्क दिया गया कि सुप्रीम कोर्ट ने बालू घाटों के लिए पर्यावरण स्वीकृति का आदेश दिया है. नीलामी की प्रक्रिया आरंभ ही की गयी थी कि सरकार को खबर मिली की स्थानीय लोगों की जगह दबंग लोग बालू घाट का ठेका ले रहे हैं.

तब सरकार ने नीलामी रद्द कर पूर्व की व्यवस्था बहाल कर दी. इधर वर्तमान सरकार ने पुन: बालू घाटों की नीलामी कराने का आदेश दिया. सितंबर, अक्तूबर में नीलामी की प्रक्रिया आरंभ हुई. इसमें मुंबई की तीन कंपनियां सभी स्थानों में बालू घाटों का ठेका ले रही थी. इससे विवाद बढ़ा और सरकार को बालू घाट की नीलामी पर रोक लगानी पड़ी. पर रोक लगाने के बाद सरकार ने यह व्यवस्था नहीं की कि बालू की आपूर्ति कैसे होगी. इधर जिला प्रशासन और जिला खनन पदाधिकारी बालू की ढुलाई को अवैध करार देते हुए ट्रक पकड़ने लगे. नतीजा बालू की किल्लत हो गयी. बालू ट्रक एसोसिएशन के लोग अनशन पर बैठ गये हैं. दूसरी ओर सरकार मौन है.

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