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ऐसे चल रही है झारखंड में आदिवासी विकास की योजनाएं

-शकील अख्तर- -चाईबासा: 1.48 करोड़ से लगाये गये पेड़ गायब -राज्य के आंगनबाड़ी केंद्रों का हाल बुरा -राज्य में सिंचाई योजनाओं का भी है बुरा हाल -12 आदिवासी परिवारों का गाय नहीं दी गयी रांचीः सरकार आदिवासियों के विकास के लिए विभिन्न प्रकार की योजनाएं चलाती है. इसके लिए राज्य में 15 मेसो क्षेत्र है. […]

-शकील अख्तर-

-चाईबासा: 1.48 करोड़ से लगाये गये पेड़ गायब

-राज्य के आंगनबाड़ी केंद्रों का हाल बुरा

-राज्य में सिंचाई योजनाओं का भी है बुरा हाल

-12 आदिवासी परिवारों का गाय नहीं दी गयी

रांचीः सरकार आदिवासियों के विकास के लिए विभिन्न प्रकार की योजनाएं चलाती है. इसके लिए राज्य में 15 मेसो क्षेत्र है. वर्ष 2009 से इन मेसो क्षेत्रों को आइटीडीए के नाम से जाना जाता है. इसका काम आदिवासियों के विकास के लिए बनायी गयी विकास योजनाओं को क्रियान्वित करना है. प्रधान महालेखाकार ने इन मेसो क्षेत्रों में चलायी जा रही सिंचाई से शिक्षा तक की योजनाओं की जांच पड़ताल की. इसमें कोई ऐसी योजना नहीं मिली जिसमें किसी तरह की गड़बड़ी नहीं हो.

आंगनबाड़ी केंद्र योजना

राज्य के आदिवासी बहुल क्षेत्रों में कुपोषण से निबटने के लिए 193 आंगनबाड़ी केंद्र बनाने की योजना शुरू की गयी. इन आंगनबाड़ी केंद्रों को रांची, गुमला, चाइबासा और साहेबगंज जिले में बनाने का काम शुरू किया गया. इनमें से अब तक 158 केंद्र अधूरे हैं. इन योजनाओं को मई 2011 तक पूरा करना था. चाईबासा में 16 आंगनबाड़ी का काम एनआरइपी को और 34 का काम विशेष प्रमंडल को दिया गया था. एनआरइपी ने 16 में से 12 आंगनबाड़ी केंद्रों का काम शुरू किया और जून 2012 में बंद दिया, जबकि इन आंगनबाड़ी केंद्रों को मार्च 2012 तक पूरा करना था. विशेष प्रमंडल ने तो 34 में से 21 का काम शुरू ही नहीं किया. इस प्रकार इस योजना के क्रियान्वयन की दिशा में उदासीन रवैया अपनाया गया.

आवासीय विद्यालयों की स्थिति

कल्याण विभाग द्वारा चलाये जा रहे आवासीय विद्यालयों (एसटी) के 15-35 प्रतिशत तक छात्र मैट्रिक की परीक्षा में फेल हो रहे हैं. धमधमिया और करमा पहाड़ आवासीय विद्यालय के हॉस्टल में बेड की कमी है. यहां छात्र जमीन पर सोते हैं. सखुआपानी और झोबीपाट हाइ स्कूल में पीने के पानी की व्यवस्था नहीं है. कंडापाट,चापा टोली, घाघरा, सखुआपानी और झोबीपाट हाइ स्कूल में बिजली की व्यवस्था नहीं है., फिर भी 16.70 लाख रुपये की लागत पर इन पांचों स्कूलों को एक-एक टीवी और एक-एक कंप्यूटर खरीद कर दिया गया है. सत्र 2007-08 में 17 स्कूलों की कक्षा एक में कुल 327 छात्रों का नामांकन हुआ था. इनमें से शैक्षणिक सत्र11-12 में कक्षा पांच तक 193 छात्र ही पहुंचे.

सिंचाई योजनाओं की स्थिति

मेसो क्षेत्र सिमडेगा,चाईबासा , चक्रधरपुर और साहेबगंज में सिंचाई योजनाओं की जांच में 54 प्रतिशत योजनाएं अधूरी पायी गयीं. इनमें से कुछ योजनाएं स्वयंसेवी संस्थाओं को दी गयी थीं, जबकि कुछ योजनाओं को खुद आइटीडीए को ही करना था. योजनाओं को एक साल में पूरा करना था, पर अब तक अधूरी हैं. जांच दल ने माइक्रो लिफ्ट इरिगेशन, घरेलू कुआं, सिंचाई कुआं, कच्च बांध, वाटर हारवेस्टिंगटैंक की योजनाओं का भौतिक सत्यापन किया. इसमें माइक्रो लिफ्ट इरिगेशन की 171 में से 125, कुआं की 250 में से 107, वाटर हार्वेस्टिंगटैंक की 56 में से 28 योजनाएं अधूरी पायी गयीं. मेसो और स्वयंसेवी संस्था (एराउज और सोशल वेलफेयर एजुकेशन) में से किसी ने अपना काम पूरा नहीं किया था.

गो पालन योजना की स्थिति

रांची जिले के आदिवासियों की आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए उन्हें डेयरी से जोड़ने की योजना बनायी गयी. इसके तहत चुने गये हर आदिवासी परिवार को मुफ्त में दो-दो गाय दी जानी थी. शेड बनाना था और गायों का बीमा भी करना था. रांची में योजना के लिए 100 आदिवासी परिवारों का चयन हुआ. योजना को जिला डेयरी विकास अधिकारी के माध्यम से क्रियान्वित किया गया. चुने गये 100 में 12 आदिवासी परिवारों को गाय नहीं दी गयीं. शेष 88 आदिवासी परिवारों को दो की जगह एक गाय ही दी गयी. इनके लिए न शेड बनाये गये और न ही बीमा कराया गया. दवा की व्यवस्था भी नहीं की गयी. इनमें से 54 गायें मर गयीं.

फलदार पेड़ की योजना

चाईबासा और चक्रधरपुर मेसो क्षेत्र में आदिवासियों की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए फलदार पेड़ लगाने की योजना बनायी गयी थी. इसके लिए चार स्वयंसेवी संस्थाओं को चुना गया. इनमें दिशा, समेकित जन विकास केंद्र, सिंहभूम ग्रामोद्योग विकास संस्थान,सृजन महिला विकास केंद्र का नाम शामिल है. फलदार पेड़ लगाने के लिए संस्थाओं को 1.94 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया. जांच में 1.48 करोड़ रु से लगाये गये आम के पेड़ नहीं पाये गये.

रेशम कीट पालन योजना

गुमला में आदिवासियों के आर्थिक उत्थान के लिए रेशम कीट पालने की योजना बनायी गयी. सबसे पहले शहतूत पौधे लगाने थे. यह काम 1.70 करोड़ से की जानी थी. सरकार ने इसकी जिम्मेवारी ‘एराउज’ नामक एनजीओ को दी. योजना के तहत 1.15 करोड़ रुपये की लागत पर कुल 180 एकड़ जमीन में शहतूत के पौधे लगाये गये. इसमें से 120 एकड़ में लगे पौधे बचे ही नहीं.

आर्थिक स्थिति में सुधार

संविधान की धारा 275(1) के तहत मिली राशि के आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए 286 आदिवासी परिवारों को बकरी पालन का प्रशिक्षण देने और हर परिवार को मुफ्त में पांच-पांच बकरियां देने की योजना चलायी गयी . 88 परिवारों को दो- दो गाय देने की योजना बनायी गयी. आम और शहतूत के पेड़ लगाने की योजना क्रियान्वित की गयी. इनमें से कोई योजना पूरी नहीं हुई.

बकरी पालन की स्थिति

सिमडेगा में बकरी पालन योजना के तहत प्रशिक्षण देने और बकरियां बांटने का काम एराउज और निदान नामक दो स्वयंसेवी संस्थाओं को दिया गया. इसके लिए उन्हें 1.27 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया. जिले से 685 आदिवासी परिवारों में से एराउज को 315 और निदान को 370 परिवारों को प्रशिक्षण और बकरियां देने का काम दिया गया. एराउज ने 315 में से 125 परिवारों को बकरियां नहीं दीं. निदान ने 370 में 161 परिवारों को बकरियां नहीं दीं, जबकि बकरियों के लिए शेड बना दिये गये थे.

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