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-हरिवंश- बिहार की इस स्थिति के लिए रोजाना राजनेताओं-नौकरशाहों को अखबारनवीश उपदेश देते हैं, पर क्या इस स्थिति से उबरने में जनता की भूमिका नहीं है? महाराष्ट्र में अण्णा हजारे जैसे लोग आज भी हैं, जो लोक शक्ति को जगा कर विकास के सपने साकार कर रहे हैं. सृजन की चुनौती स्वीकार कर. बिहार के […]

-हरिवंश-

बिहार की इस स्थिति के लिए रोजाना राजनेताओं-नौकरशाहों को अखबारनवीश उपदेश देते हैं, पर क्या इस स्थिति से उबरने में जनता की भूमिका नहीं है? महाराष्ट्र में अण्णा हजारे जैसे लोग आज भी हैं, जो लोक शक्ति को जगा कर विकास के सपने साकार कर रहे हैं. सृजन की चुनौती स्वीकार कर. बिहार के समाज में सबसे आसान काम है, आंदोलन, तोड़-फोड़ और संघर्ष, निरुद्देश्य. साथ ही आंदोलनकारी या संघर्ष करनेवाले अपनी लड़ाई के प्रति समर्पित-प्रतिबद्ध भी नहीं होते. आज बिहार में सबसे बड़े साहस का काम है, सृजन की चुनौती स्वीकार करना. दूसरे राज्यों के मुकाबले निरंतर पिछड़ते बिहार को संवारने का संकल्प!

नये बिहार के निर्माण की शुरुआत कहीं से भी हो सकती है. रांची, बिहार के लिए मॉडल बन सकता है. बशर्ते कुछ लोग आगे आयें. बड़े-बड़े कामों के लिए नहीं, छोटे-छोटे और संभव कामों के लिए मसलन –

1. रांची शहर की दीवारों पर नारे लिख कर गंदगी फैलानेवालों को हाथ जोड़ कर रोकों, कोई नेता कर्म की बदौलत महान बनता है. नारों के कारण नहीं. कलकत्ता के 300 वर्ष पूरे होने पर बच्चों-औरतों ने शहर की दीवारों की पुताई की. शहर को निखारा.

2. रांची की मुख्य सड़क सुंदर बनी है. इसे खोदनेवालों को सख्ती से रोकिए. सड़क के किनारे बंदनवार या द्वार बना कर नेताओं का स्वागत करनेवाले राजनीतिक दलों से आग्रह करिए कि आप सृजन का एक काम तो कर नहीं सकते, जो बन रहा है, उसे मत तोड़िए. बिजली, पानी, सड़क के लिए झूठे नारे लगानेवाले इन राजनीतिक दलों से कहिए कि अपने-अपने दलों को तैयार करें कि सड़क पर स्वागत द्वार उनका दल नहीं बनायेगा. राजनीतिक दलों का यह निश्चय ही जनता पर उनका उपकार होगा, क्योंकि बिहार का कोई राजनीतिक दल कुछ सार्थक या सृजनात्मक अपने दल के स्तर पर तो कर नहीं सकता है?

3. बार-बार अखबारों में तसवीरें छपने के बाद भी लोग गैरकानूनी ढंग से बिजली ले रहे हैं. यह बिजली चोरी बंद हो. बड़े साहबों के मोहल्ले में जो ‘मीटर’ कम दर पर फिक्स बनाये गये हैं. उनसे आग्रह हो कि यह काम बंद करिए. इससे हम नागरिकों का ही नुकसान हो रहा है.

4. शहर के सभी स्कूलों का पता कराया जाये कि कौन प्रतिभावान बच्चे (कक्षा 12 तक) अर्थसंकट के कारण नहीं पढ़ रहे हैं. उनकी सूची बना कर, उतने ही लोगों को अखबारों के माध्यम से ढूंढ़ा जाये, तो प्रतिमाह एक-एक बच्चे को 100 से 200 रुपये के बीच मदद करें. सीधे बच्चों को ‘एडॉप्ट’ करें.

5. शहर के चुनिंदे ईमानदार अफसरों-राजनेताओं, डॉक्टरों, सामाजिक कार्यकर्ताओं की टोली बने, जो शहर के खूबसूरत बनाने की योजना बनाये. लोगों को इस योजना में शरीक करें.

6. बिहार में पान-खैनी खाकर थूकने-दीवारों को गंदा करने, घर की गंदगी को सड़क पर डालने की आम प्रवृत्ति है. कौन सी सरकार या व्यवस्था हमारी इस आदत को ठीक करेगी?

7. सरकारी बसों-ट्रेनों में टीटी या कंडक्टर को कुछ पैसा देकर बगैर टिकट यात्रा करने की आदत से हम मुक्त हों.

और भी ऐसे अनेक छोटे-छोटे काम हैं. इन कामों के लिए बड़े पराक्रम-पौरुष की जरूरत नहीं. अगर रांची में यह अभियान रफ्तार पकड़ता है, तो कल पूरे बिहार के लोग रांची से सीखेंगे. फिर जो उद्योग-धंधे या पूंजी या टेक्नोलॉजी पुणे या बेंगलूर जा रही है, उसका एक हिस्सा स्वत: रांची में भी आयेगा. राजनेताओं के लिए नैतिक संकट पैदा होगा. रांची का भी कायापलट हो सकता है. अगर नागरिकों का एक हिस्सा भी इस राह पर चल पड़े, तो प्रशासन-पुलिस के ईमानदार वरिष्ठ लोग स्वत: इस अभियान से जुड़ जायेंगे. सृजन की यह चुनौती स्वीकारना ही मुक्ति का एकमात्र रास्ता है.

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