रांची: इंस्टीटय़ूट फॉर ह्यूमन डेवलपमेंट, नयी दिल्ली के निदेशक प्रो अलख शर्मा का मानना है कि बिहार की तुलना में झारखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक गरीबी है. 2011-12 के ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स के आंकड़ों के आधार पर झारखंड के गांवों में रहनेवाले 41 प्रतिशत लोग गरीब हैं, जबकि बिहार में 24 प्रतिशत आबादी ही गरीब है. झारखंड में प्रति व्यक्ति आय, बिहार की तुलना में दोगुना से अधिक है, पर यहां गरीबी ज्यादा है. इसका मुख्य कारण राजनीतिक अस्थिरता और विकास का लाभ ग्रामीणों तक नहीं पहुंचना है.
प्रभात खबर संवाददाता से बातचीत के क्रम में उन्होंने कहा कि बिहार की समेकित विकास दर 11 प्रतिशत है, जबकि झारखंड में यह आठ प्रतिशत से अधिक है. जब तक विकास का फायदा लाभुकों को नहीं मिलेगा, तब तक सामाजिक विषमता और विपन्नता बनी रहेगी. प्रो शर्मा के अनुसार दिल्ली, तमिलनाडु, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक में 65 प्रतिशत विदेशी पूंजी का निवेश हुआ है. इन मामलों में झारखंड काफी पीछे है. झारखंड की राजधानी रांची, जमशेदपुर, धनबाद और बोकारो में कंसंट्रेटेड विकास दर अधिक है. सड़क, बिजली, पानी जैसी बुनियादी सुविधाएं विकसित होने पर गांव-टोले भी बदलेंगे.
आनेवाले दिनों में देश की विकास दर स्थिर रहेगी : प्रो शर्मा का आकलन है कि भारत की विकास दर आनेवाले दिनों में पांच से सात प्रतिशत के बीच रहेगी. अर्थव्यवस्था सुधरेगी, जिससे विकास को गति मिल पायेगी. गुजरात, दिल्ली, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, ओड़िशा में विकास काफी तेजी से हो रहा है. झारखंड में क्राइसिस गवर्नेस के बीच आठ प्रतिशत की विकास की दर हासिल हो रही है.
गरीबी की जमीनी हकीकत कुछ और : प्रो शर्मा ने कहा कि देश में एब्सोल्यूट पॉवर्टी (गरीबी) कम नहीं हो रही है. हालांकि सरकारी योजनाओं का लाभ गरीबों तक पहुंच रहा है. आज भी भारत में गरीबों की आय 1.25 डॉलर से कम है. जबकि विकसित देश में यह दो डॉलर है. गरीबी रेखा का आकलन सही तरीके से नहीं हो रहा है. चीन, वियतनाम में एब्सोल्यूट पॉवर्टी बिल्कुल समाप्त हो गयी है. इसलिए ये देश तरक्की कर रहे हैं. भारत में वित्तीय असमानता भी अधिक है. संगठित और असंगठित क्षेत्र के कर्मियों के वेतनमान में काफी अंतर होना भी इसका एक कारण है. 1960-61 की तुलना में आज गैर खेतिहर किसानों की संख्या एक तिहाई से सात गुना अधिक बढ़ गयी है. शिक्षित बेरोजगारों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है.