17.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

लालू को हाइकोर्ट से बेल नहीं

रांची: चारा घोटाले में सजा काट रहे बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री व राजद प्रमुख लालू प्रसाद को झारखंड हाइकोर्ट से बेल नहीं मिली. गुरुवार को जस्टिस आरआर प्रसाद की अदालत ने श्री प्रसाद को जमानत देने से इनकार कर दिया. कहा कि सीबीआइ की ओर से सौंपे गये दस्तावेज को देखने के बाद इस स्टेज […]

रांची: चारा घोटाले में सजा काट रहे बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री व राजद प्रमुख लालू प्रसाद को झारखंड हाइकोर्ट से बेल नहीं मिली. गुरुवार को जस्टिस आरआर प्रसाद की अदालत ने श्री प्रसाद को जमानत देने से इनकार कर दिया. कहा कि सीबीआइ की ओर से सौंपे गये दस्तावेज को देखने के बाद इस स्टेज पर जमानत नहीं दी जा सकती है.

लालू की जमानत याचिका पर सीबीआइ और लालू प्रसाद की ओर से बहस सुनने के बाद अदालत ने बुधवार को अपना फैसला सुरक्षित रखा था.

तथ्यों को नजरअंदाज किया गया : बुधवार को लालू प्रसाद की ओर से पक्ष रखते हुए वरीय अधिवक्ता सुरेंद्र सिंह ने श्री प्रसाद पर लगे आरोपों को निराधार और बेबुनियाद बताया था. कहा गया था कि ट्रॉयल कोर्ट में उनकी ओर से प्रस्तुत किये गये तथ्यों को नजरअंदाज किया गया. श्री प्रसाद को कोर्ट में गवाह की ओर से दिये गये बयान के दस्तावेज भी उपलब्ध नहीं कराये गये थे. यह भी कहा कि उनके मुवक्किल के खिलाफ सीबीआइ ने पशुपालन अधिकारियों से पैसा लेने का आरोप लगाया है. यह आरोप निराधार है, क्योंकि इसका कोई चश्मदीद गवाह नहीं है. निचली अदालत ने श्री प्रसाद को इस आधार पर सजा सुनायी है कि इन्हें वर्ष 1990 में ही फरजी निकासी की जानकारी थी. और इन्होंने इसे दबाने का प्रयास किया, जबकि सच्चई यह है कि श्री प्रसाद को वर्ष 1996 में फरजी निकासी की जानकारी मिली. जब वित्त अधिकारियों व महालेखाकार को अधिकाई निकासी की जानकारी नहीं थी, ऐसे में श्री प्रसाद को कैसे यह जानकारी होती.

गलत तरीके से सेवा विस्तार दिया था
वहीं, सीबीआइ की ओर से अदालत में कहा गया कि लालू प्रसाद को पशुपालन विभाग में हो रही अधिकाई निकासी की जानकारी वर्ष 1990 से थी. सीबीआइ को इसकी जानकारी वर्ष 1993 में हुई थी. तत्कालीन कैबिनेट मंत्री रामजीवन सिंह ने फरजी बाउचर पर की गयी अधिक निकासी की सीबीआइ जांच की अनुशंसा की थी. सीबीआइ की ओर से इनकार करने पर इसकी निगरानी जांच की गयी. यह भी कहा गया कि श्री प्रसाद ने सह अभियुक्त श्याम बिहारी सिन्हा और आरके दास को गलत तरीके से सेवा विस्तार दिया था.

सेवा विस्तार देने में गड़बड़ी नहीं
अदालत में इसका विरोध लालू प्रसाद की ओर से किया गया. कहा गया कि तत्कालीन कैबिनेट मंत्री रामजीवन सिंह ने जिस मामले की जांच निगरानी से करायी थी, वह मेसो स्कीम से जुड़ा था. इसका पशुपालन विभाग से लेना- देना नहीं है. जहां तक श्याम बिहारी सिन्हा के सेवा विस्तार का मामला है, वर्ष 1993 के बाद कई अधिकारियों को सेवा विस्तार दिया गया. कमेटी ने श्री सिन्हा को दो साल की अनुशंसा की थी, लेकिन उन्हें सिर्फ एक साल का सेवा विस्तार दिया गया था.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें