रांची: झारखंड अलग राज्य का उदय इसलिए हुआ कि एकीकृत बिहार में यहां के लोगों की अनदेखी हुई थी. अविभाजित बिहार में झारखंड के लोगों को नौकरी नहीं मिलती थी. आज भी नहीं मिल रही है. अलग राज्य होने का कोई फायदा झारखंडियों को नहीं मिला. राज्य सरकार को स्थानीय नीति प्राथमिकता के साथ बनानी चाहिए.
मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि स्थानीय नीति का फायदा आदिवासियों को नहीं मिलने जा रहा है. आदिवासियों के लिए तो पहले से आरक्षण है, लेकिन राज्य में बड़ी संख्या में मूलवासी भी रहते हैं. इन सदानों को नौकरी में कोई फायदा नहीं हो रहा है. स्थानीयता तय होने का पूरा फायदा सदानों को मिलेगा. सदानों को नौकरी में जगह मिलेगी. दुर्भाग्य है कि सदान विधायक इस बारे में कुछ बोलते ही नहीं हैं.
स्थानीय नीति तय करने के लिए सदान विधायकों को आगे आना चाहिए. इसमें कोई संशय की स्थिति उत्पन्न नहीं होनी चाहिए. विधायकों को समझना चाहिए कि नौकरी नहीं मिलने के कारण ही युवाओं में डिप्रेशन बढ़ रहा है. वे हताश और मायूस हैं. वे सरकार से इस संबंध में जल्द पहल चाहते हैं.
स्थानीय नीति पर राज्य सरकार को सामूहिक फैसला करना चाहिए. संवैधानिक रूप से सबसे बेहतर चीजों को शामिल करते हुए स्थानीय नीति तैयार कर कैबिनेट के समक्ष रखना चाहिए. नीति तैयार करते समय उच्च न्यायालय द्वारा की टिप्पणी को मानक के रूप में रखा जा सकता है. ऐसी नीति बनायी जा सकती है, जिसका पूरा फायदा झारखंडियों को मिले. इसके लिए केवल 1932 के खतियान को ही आधार बनाने की जगह परंपरा, भाषा, संस्कृति आदि के आधार पर भी स्थानीय की परिभाषा तय की जा सकती है. मैं बस यही कहना चाहता हूं कि स्थानीय नीति को पूरी प्राथमिकता के साथ जल्द से जल्द तैयार करना चाहिए.