रांची: डोमेसाइल के मुद्दे पर मांडर विधायक बंधु तिर्की और झारखंड दिशोम पार्टी के अध्यक्ष सालखन मुरमू एक मंच पर आ गये हैं. दोनों नेताओं ने मंगलवार को संयुक्त रूप से संवाददाता सम्मेलन में कहा कि डोमेसाइल कोई जिन्न या हौवा नहीं है जैसा कि इसे प्रचारित किया जा रहा है. यह संविधान का मामला है. यह सभी राज्यों में लागू है. झारखंड में भी इसे लागू करना होगा. डोमेसाइल को परिभाषित करने के संबंध में झारखंड हाइकोर्ट के 27 नवंबर 2002 का जजमेंट को माना जाये.
जजमेंट में कहा गया है कि डोमेसाइल को परिभाषित करने के लिए भाषा, संस्कृति, कस्टम (रीति रिवाज) को आधार माना जा सकता है. जिन राज्यों में डोमेसाइल लागू है, वहां भी यहीं आधार है. इसका मतलब यह नहीं है कि हम गैर झारखंडी को भगाने की बात कर रहे हैं, पर स्थानीय जनता का हक उसे प्राथमिकता के आधार पर मिलना चाहिए.
उन्होंने कहा कि झारखंड में आदिवासी आबादी 50} से घट कर 25} पर आ गयी है, इसके लिए दोषी कौन है? जिस तरह बाहरी आबादी की बाढ़ आयी है, कहीं और नहीं. इसे रोकना ही होगा. दोनों ने कहा कि 25 अगस्त को होनेवाली बैठक में आगामी रणनीति पर विचार किया जायेगा. सालखन व बंधु ने कहा कि झारखंड में नौ जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषाओं को जाननेवालों को नौकरियों में प्राथमिकता देना होगा. तृतीय व चतुर्थ वर्ग की नौकरियों को 90 प्रतिशत ग्रामीण जनता के लिए प्रखंडवार आरक्षण के आधार पर सुरक्षित रखना होगा. इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन व गीताश्री उरांव के बयान का हम स्वागत करते हैं. दोनों को इस पर गंभीरता से पहल करनी चाहिए. सालखन व बंधु ने कहा कि सर्वदलीय बैठक का कोई मतलब नहीं है, क्योंकि इसमें ज्यादातर नेता वे हैं, जो झारखंड को नहीं जानते हैं.