रवि दत्त बाजपेयी
भारत को एक राष्ट्र बनाये रखने के यज्ञ में पंजाब रेजिमेंट के लेफ्टिनेंट कर्नल संकल्प कुमार शुक्ला ने अपनी प्राणों की आहूति दे दी. भारत माता के एक जांबाज सपूत ने अपने संकल्प को पूरा करते हुए अपनी जान न्योछावर कर दी. शहीद के परिवार ने जिस संकल्प को खोया है उसकी पूर्ति संभव नहीं है, लेकिन शहीद के उस संकल्प को अपने बीच में जिंदा रखना ही उनके प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी.
शहीद की अंतिम यात्र में बड़ी संख्या में रांची के आम लोग जुड़ गये, इसमें बहुतेरे ऐसे भी थे जो उन्हें पहले से नहीं जानते थे. आज यह बात सब जान गये हैं कि संकल्प ऐसी मिट्टी का बना था, जिसमें सिर्फ समर्पण और कर्तव्य निष्ठा ही समाहित है. 10 साल पहले सन 2004 में जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर में हुए एक आतंकी हमले में संकल्प बुरी तरह जख्मी हुए थे, तब उनके पेट में 40 टांके लगे थे. इस प्राणघातक हमले के बाद भी संकल्प दोबारा जम्मू-कश्मीर में अपनी नियुक्ति से पीछे नहीं हटे. पिछले शुक्र वार को उरी में भारतीय सेना के शिविर पर हुए आतंकी हमले में बहादुरी से लड़ते हुए शहीद हो गये.
हमारी आम धारणा है कि एक रोजगार के रूप में जब कोई व्यक्ति सेना में भर्ती होता है तो उसे लड़ने और मरने के लिए तैयार रहना चाहिए. सैनिक का कर्तव्य पथ तो वैसे भी बहुत विकट है, लेकिन जम्मू-कश्मीर में नियुक्त भारतीय सैनिक तो एक ऐसे छापामार युद्ध से जूझ रहा है जहां युद्ध के स्थापित नियम केवल भारतीय सेना पर ही लागू हैं, उनके दुश्मनों पर नहीं.
सैनिक भी इनसान होता है, जो पारिवारिक-सामाजिक रिश्तों की डोर से बंधा होता है, संकल्प सिर्फ एक सैनिक ही नहीं, एक बेटा, पति, पिता, भाई, दोस्त और भी बहुत कुछ था. एक परिवार ने अपना क्या कुछ खोया है यह केवल वह परिवार ही जान सकता है. शहीद संकल्प कुमार की अंतिम विदाई में सम्मिलित हजारों अन्य की तरह मैं भी उनकी शहादत से पहले उनसे अपरिचित था, लेकिन अंतिम संस्कार के समय लगा कि कोई अपना आत्मीय चला गया. शहीद संकल्प कुमार के जज्बे को नमन. आइए शहीद के उस संकल्प को हम भी अपनायें.