कोडरमा/रांची: जिले में पत्थर खनन कार्य के दो पहलू सामने हैं. एक औद्योगिक विकास का और दूसरा प्रदूषण से प्रभावित समाज का. चाहे बात डोमचांच की करें या फिर अन्य प्रखंडों की, अधिकतर जगहों पर क्रशर व खनन कार्य से प्रदूषण की मार दिखती है.
आज बढ़ते क्रशर से यह इलाका पूरी तरह प्रदूषित हो रहा है, तो इससे उड़नेवाले धूलकण यहां बीमारी की सौगात बांट रहे हैं.जानकारी के अनुसार चंचाल पहाड़ी के खत्म होने से डोमचांच, काराखुट्ट, डुमरडीहा, तेतरियाडीह, गैरीबाद, पारडीह आदि गांवों का जल स्तर नीचे चला गया है, तो शिवसागर के आसपास धड़ल्ले से चल रहे क्रशर व आधा दर्जन खदानों के कारण 200 फीट तक पानी नहीं है. नवलशाही, पुरनाडीह, निरू पहाड़ी, चमारो, लक्ष्मीपुर आदि में भी यही हाल है.
कुछ वर्ष पूर्व खनन व क्रशर उद्योग पर अध्ययन करनेवाले स्वयंसेवी संस्था समर्पण के सचिव व क्रेज से जुड़े इंद्रमणि साहू कहते हैं कि यहां के तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग एवं राजनीतिक पार्टियों के नुमाइंदों का मानना है कि क्रशर फैक्टरियों का बढ़ना औद्योगिक विकास है. इससे इस क्षेत्र का कायाकल्प हो रहा है.
बड़े-बड़े बिल्डिंग खड़ा होना इसी का परिणाम है. बड़े पैमाने पर मजदूरों को इसमें काम मिलता है, पर इसकी दूसरी तस्वीर ज्यादा भयावह है. लोग कहते हैं कि जिले में न तो पहले जैसी बारिश होती है और न ही खेती. उनकी मानें तो बरियारडीह से लेकर कोडरमा व चंदवारा तक का इलाका आज प्राकृतिक संसाधनों व विकास के मामले में लूट व बदहाली का पर्याय बन गया है. वन व प्रदूषण के सारे कायदे-कानून को ताक पर रख कर जहां क्रशर संचालक क्रशर संचालित कर रहे हैं, वहीं कुछ लोग जंगल-जमीन का भी अतिक्रमण कर रहे हैं. उनके अनुसार जिले में क्रशर का संचालन तीन तरीके से हो रहा है. पहला वैधानिक, दूसरा अवैध तरीके से व तीसरा बल पूर्वक.