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प्रभात खबर की 30वीं वर्षगांठ : पत्रकारों का काम सिर्फ समाचार देना नहीं है

धर्म व पत्रकारिता विषय पर भाई श्री का प्रवचन, पत्रकार, कथाकार व कलाकार यानी सत्यम शिवम सुंदरम भाईश्री का हू-ब-हू प्रवचन प्रख्यात कथावाचक व भाई श्री के नाम से विख्यात श्री रमेश भाई ओझा ने मीडिया को ऐसी शक्ति बताया है, जो विचारों को प्रभावित करती है. प्रभात खबर के 30 वर्ष पूरे होने पर […]

धर्म व पत्रकारिता विषय पर भाई श्री का प्रवचन, पत्रकार, कथाकार व कलाकार यानी सत्यम शिवम सुंदरम

भाईश्री का हू-ब-हू प्रवचन

प्रख्यात कथावाचक व भाई श्री के नाम से विख्यात श्री रमेश भाई ओझा ने मीडिया को ऐसी शक्ति बताया है, जो विचारों को प्रभावित करती है. प्रभात खबर के 30 वर्ष पूरे होने पर रांची क्लब में गुरुवार को आयोजित प्रभात उत्सव कार्यक्रम के तहत उन्होंने धर्म व पत्रकारिता विषय पर प्रवचन दिया.

रांची क्लब के सभागार में शहर के प्रबुद्ध लोगों सहित पत्रकारों ने भाई श्री को सुना. बकौल श्री रमेश भाई ओझा- कुछ वर्ष पूर्व प्रवचन के बाद पत्रकार वार्ता हो रही थी. एक पत्रकार ने पूछा कि अभी आप हजारों श्रोता को कथा सुना रहे थे. पर यदि किसी एक व्यक्ति को ही कथा सुनानी पड़े, तो आप किसको चुनेंगे. मैंने कहा कि मैं किसी पत्रकार या शिक्षक को कथा सुनाना पसंद करूंगा. इसलिए क्योंकि पत्रकार को कथा सुनाना पूरे समुदाय को कथा सुनाना है. उसी तरह एक शिक्षक को कथा सुनाना पूरे विद्यालय व भविष्य के विद्यार्थियों को भी कथा सुनाना है.

हम प्रजातंत्र में जी रहे हैं. इसमें विधायिका, कार्यपालिका व न्यायपालिका को तीन स्तंभ माना गया है. इसके साथ-साथ पत्रकारिता की भी लोकतंत्र में अहम भूमिका है. इसको चौथा पिलर या स्तंभ कहा जाता है. प्रभात खबर अपनी स्थापना की 30वीं वर्षगांठ मना रहा है. कोलकाता या दूसरे शहर जाता हूं, तो पूछ लेता हूं कि यहां प्रभात खबर हो, तो ले आओ. चाहे कोई अखबार हो, मीडिया से हमारे दिन की शुरुआत होती है. आम तौर पर प्रिंट मीडिया से.

वहीं ज्यादातर लोग अपने दिन का अंत यानी सोने से पहले का वक्त टीवी देख कर गुजारते हैं. यानी दिन की शुरुआत प्रिंट मीडिया से तथा अंत इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से. कहते हैं आदमी जब जागता है, या जब सोता है, उस वक्त उसके क्या विचार होते हैं, यह महत्वपूर्ण है. शुरू व अंत के बीच के पूरे दिन वह अपने इन्हीं विचारों के विस्तार में जीता है. इस विचार को इंसान जीने लगता है.

इंसान और कुछ नहीं विचारों का पुतला है. विचार धर्म की भी बात है. सृष्टि का सृजन भी विचारों से ही हुआ है. विचार अपने स्थूल रूप में सृजन है. विचार का बड़ा महत्व है. सुबह व रात के दोनों विचारों को प्रभावित करने वाली एक शक्ति है. वह है मीडिया. इसलिए मैं समझता हूं कि किसी व्यक्ति, समाज या राष्ट्र के निर्माण में मीडिया की एक अहम भूमिका है.

भारत की सांस्कृतिक अवधारणा है.. सत्यम शिवम सुंदरम. यह दूरदर्शन कोगन भी है. सत्यम शिवम सुंदरम की अवधारणा को चरितार्थ करने की जिम्मेवारी तीन संस्थाओं पर है. ये तीनों कार हैं. पत्रकार, कथाकार व कलाकार. पत्रकार यानी सत्यम, कथाकार यानी शिवम तथा कलाकार यानी सुंदरम. वैसे चौथी भी एक कार है, सरकार. पर यदि पहले के तीनों कार ठीक चलें, तो सरकार भी ठीक चलेगी. क्योंकि हम प्रजातंत्र में जी रहे हैं.

पहले के तीनों कार यदि अपने कर्तव्यों में चूक कर देते हैं, तो प्रजातंत्र आम आदमी के हित से दूर हो जाता है. बाइ द पिपुल, ऑफ द पिपुल व फॉर द पिपुल की जगह (Buy the people off the people and far the people) हो जाता है. यदि पत्रकारिता सत्य से दूर हो जाये, तो यह सिर्फ एक व्यवसाय रह जाती है. इसलिए अपने घर में कहां खराबी है, वहां हमारा ध्यान जाना चाहिए.

आज कल धर्म का संबंध भी संख्या (फॉलोअर) से हो गया है. धर्म का काम कनवर्ट (बदलना) करना तो है, पर अच्छे इंसान के रूप में. चाहे वह कोई भी धर्म हो. पत्रकारिता का भी एक धर्म है. पुराणों में जो नारद हैं, वह पत्रकार थे. खोजी पत्रकार. फिल्ड में रहने वाले. पत्रकार फिल्ड में रहते हैं. कारगिल, गाजा पट्टी और हर जगह पहुंच कर सही रिपोर्ट करने वाले.

पत्रकार का काम सिर्फ समाचार देना या सनसनी फैलाना नहीं है. सिर्फ सरकुलेशन या व्यूअर्स बढ़ाना मीडिया का काम नहीं है. लोगों की समस्या का अंत कैसे हो, इस पर भी सोचना है. नारद जी जैसा पात्र नहीं होता, तो रामायण नहीं होता. महर्षि वाल्मीकि ने देवश्री नारद की प्रेरणा से रामायण लिखी, जो लोगों के लिए आचार संहिता बनी. वर्तमान समय में ऐसा कौन सा इंसान है, जिसे आदर्श बताया जा सके. सज्जन, गुणवान, चरित्रवान व कर्मयोगी.

बिगड़ी व्यवस्था को देख कर जिसमें हलचल न हो, वह जीवन का आदर्श नहीं हो सकता. आदर्श भी कोई पुरातन काल या बहुत पहले के समय का नहीं. ऐसे में लोग कहते हैं, वह समय अलग था, लोग अलग थे. अब ऐसा कैसे हो सकता है. तो आदर्श वर्तमान समय का होना चाहिए, जिसे आंखों के सामन देख सकें.

नारद फिल्ड के व्यक्ति थे. उन्होंने वाल्मीकि से कहा कि मैं ऐसे आदर्श पुरुष को जानता हूं. वह अयोध्या के राम हैं. नि:स्वार्थ भाव से श्रम के बाद भी परिवर्तन न हो, तो निराशा होती है. हताश होकर आदमी कहता है-मुङो कोई सुन नहीं रहा. मानवता की रक्षा में लगा व पुरुषार्थ करने वाला यदि निराश हो जाये, तो वह अनायास कह उठता है- छोड़ो मरने दो, मुङो क्या. जो पत्रकार हैं, उन्हें राष्ट्र, समाज व मानवता का प्रेमी होना चाहिए. अगर आप प्रेमी हैं, तो पत्रकारिता मिशन हो जाती है.

समाज के निर्माण व मानवता को ऊपर उठाने में मीडिया का योगदान होना चाहिए. निर्भया कांड के बाद मीडिया ने इसकी जबरदस्त रिपोर्टिग की. कड़े कानून बन गये. लेकिन क्या इससे ऐसी घटनाएं बंद हो गयी? बंद छोड़िए, क्या कम हो गयी? नहीं. चरित्रशील समाज के निर्माण में हम संवेदनशील नहीं होंगे, तो यह सब नहीं रुकेगा. आतंकवाद भी हथियार व कानून से खत्म नहीं होगा. इसके लिए चरित्र निर्माण व अध्यात्म का सहारा लेना होगा.

धर्म साध्य है,साधन नहीं. यह अध्यात्म तक पहुंचने की सीढ़ी है. पर आज लोग इसी सीढ़ी पर बैठ कर, ठहर कर एक दूसरे से लड़ रहे हैं. खबर देकर पत्रकारों को कर्तव्यों की इतिश्री नहीं माननी चाहिए. समस्या के समाधान का प्रयास करना चाहिए. रामायण के खोजी पत्रकार हैं हनुमान जी. सीता को खोज निकालने वाले. राम व सीता को एक दूसरे की खैर-खबर देने वाले. राम ने जब पूछा कि जानकी कैसी है?..अब देखिए पत्रकार को थोड़ा कलाकार भी होना चाहिए.

जानकी के सवाल पर हनुमान रोने लगे. इसके बाद ही राम ने लंका पर चढ़ाई कर सीता को सकुशल ले आने का निर्णय ले लिया…तो पत्रकार को अपनी खबरों की प्रस्तुति कुछ ऐसी करनी चाहिए, जिससे इसका सकारात्मक असर हो. पत्रकारिता ऐसी होनी चाहिए, जिससे राष्ट्र एक हो, मजबूत हो. अंध श्रद्धा से लड़ने में भी मीडिया की एक भूमिका होनी चाहिए. और यह है भी. तो पत्रकार, कथाकार व कलाकार तीनों में परस्पर समन्वय व सहयोग होना चाहिए.

ये एक दूसरे के पूरक भी हों. एक दूसरे पर नजर भी रखें. तभी राष्ट्र, समाज व मानवता का कल्याण होगा. रोशनी जहां कम होती है, वहीं अंधेरा होता है. रोशनी को कम करते चले जायें. और कम और कम..अंत में अंधेरा पसर जायेगा. इस रोशनी व प्रकाश को बढ़ाने का काम पत्रकारिता करें. तमसो मा ज्योतिर्गमय.

त्योहारों में ही हमें याद आता है धर्म : नथवाणी

रांची : आज के समय में भगवान के प्रति लोगों में आस्था कम होती जा रही है. समाज बिखरता जा रहा है. संयुक्त परिवार कम होते जा रहे हैं. लोग आत्मकेंद्रित हो गये हैं. इससे उनमें देश के प्रति जज्बा भी कम होता जा रहा है. ये बातें राज्यसभा सांसद परिमल नथवाणी ने कही.

श्री नथवाणी रांची क्लब परिसर में प्रभात खबर की 30वीं वर्षगांठ पर धर्म व पत्रकारिता विषयक कार्यक्रम में बोल रहे थे. उन्होंने कहा कि आज त्योहारों में ही धर्म की याद आती है. यह गलत है. लोगों को हमेशा धर्म से जुड़े रहना चाहिए. धर्म के साथ चलनेवालों का साथ भगवान देते हैं. भगवान के प्रति आदर, निष्ठा रखनेवाले ही आगे बढ़ते हैं.

उन्होंने प्रभात खबर द्वारा उठाये जा रहे मुद्दों की तारीफ करते हुए कहा कि वास्तव में यह आंदोलन ही है. इससे पहले प्रभात खबर के प्रधान संपादक हरिवंश ने विषय प्रवेश कराते हुए स्वागत किया. धन्यवाद ज्ञापन प्रभात खबर के प्रबंध निदेशक केके गोयनका ने किया.

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