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नीतेश के दस्ते ने दिया घटना को अंजाम

माओवादियों ने लकड़मंदा घटना का बदला लिया, उस घटना में बच निकला था जोनल कमांडर रांची : पलामू के विश्रमपुर थाना क्षेत्र के छोटकी कोड़िया में 16 टीसीपी उग्रवादियों की हत्या भाकपा माओवादी नीतेश के दस्ते ने अंजाम दिया है. पुलिस मुख्यालय को मिली खबर के मुताबिक विश्रमपुर इलाके में नीतेश का दस्ता सक्रिय था. […]

माओवादियों ने लकड़मंदा घटना का बदला लिया, उस घटना में बच निकला था जोनल कमांडर

रांची : पलामू के विश्रमपुर थाना क्षेत्र के छोटकी कोड़िया में 16 टीसीपी उग्रवादियों की हत्या भाकपा माओवादी नीतेश के दस्ते ने अंजाम दिया है. पुलिस मुख्यालय को मिली खबर के मुताबिक विश्रमपुर इलाके में नीतेश का दस्ता सक्रिय था. नीतेश भाकपा माओवादी में जोनल कमांडर है.

चतरा के कुंदा थाना क्षेत्र के लकड़मंदा घटना का बदला लेने की जिम्मेदारी संगठन ने नीतेश पर ही छोड़ी थी. इसकी एक वजह यह भी थी कि लकड़मंदा घटना में जब माओवादियों और टीपीसी के उग्रवादियों के बीच मुठभेड़ चल रही थी, तब नीतेश भी वहां था, लेकिन वह टीपीसी के दस्ते के कब्जे में आने से बच गया था. इसके बाद से संगठन ने नीतेश को ही 10 नक्सलियों की मौत का बदला लेने की जिम्मेदारी दी थी.

लकड़मंदा घटना के बाद माओवादियों ने कई बार चतरा के प्रतापपुर इलाके में ही टीपीसी के उग्रवादियों को घेरने की योजना बनायी. हर बार योजना की जानकारी टीपीसी को मिल जाती थी. छोटकी कोड़िया में माओवादियों को मौका मिल गया.

वर्ष 2005 में बनी थी टीपीसी

रांची : उग्रवादी संगठन तृतीय प्रस्तुति कमेटी (टीपीसी) का गठन वर्ष 2005 में हुआ था, लेकिन इसकी पृष्ठभूमि वर्ष 2004 से ही तैयार होने लगी थी. चतरा, लातेहार, हजारीबाग व पलामू में वर्ष 2004-05 में भाकपा माओवादी (21 सितंबर 2004 से पहले एमसीसीआइ) के एक खास जाति के नक्सलियों की लगातार गिरफ्तारी हुई थी.

इस कारण संगठन दो फाड़ होने लगा था. एक जाति के नक्सलियों को लग रहा था कि दूसरी जाति के नक्सली अपना दबदबा बढ़ाने के लिए उन्हें गिरफ्तार करवा रहे हैं. टीपीसी के गठन के वक्त दो बड़े नक्सली नेता अमूल्य सेन और कन्हैया चटर्जी की तसवीर लगाने को लेकर विवाद हुआ था.

अमूल्य सेन की तसवीर पहले लगाने की मांग करनेवाले माओवादियों ने अलग होकर टीपीसी बनायी थी, लेकिन इससे बड़ा एक सच यह भी था कि उस वक्त ब्रजेश, मुकेश और पुरुषोत्तम पर संगठन के पैसे का गबन करने का आरोप था. टीपीसी के गठन के वक्त ये तीनों उग्रवादी संगठन के सर्वोच्च पद पर थे.

पुरुषोत्तम मारा जा चुका है और ब्रजेश और मुकेश अब भी जिंदा है और चतरा-हजारीबाग में सक्रिय है. इन उग्रवादियों के बारे में कहा जाता है कि टीपीसी के गठन के बाद इनकी संपत्ति में इजाफा हुआ है.

अलग होने के बाद खूब हुआ संघर्ष

भाकपा माओवादी से अलग होकर जब टीपीसी बनी, तब इलाके में वर्चस्व को लेकर दोनों संगठन के बीच खूब संघर्ष हुआ. कई लोग मारे गये. दोनों संगठनों के नक्सलियों-उग्रवादियों ने एक-दूसरे की सिर्फ हत्या नहीं की, उनके घरों में आग लगा दी. हालांकि दिनों दिन भाकपा माओवादी कमजोर पड़ता गया, क्योंकि माओवादियों को एक साथ टीपीसी और पुलिस दोनों का मुकाबला करना पड़ रहा था.

चार जिलों में बढ़ता गया टीपीसी का वर्चस्व

हजारीबाग, चतरा, लातेहार और पलामू में धीरे-धीरे माओवादियों की पकड़ कमजोर पड़ती गयी. माओवादियों के कमजोर पड़ने के साथ ही टीपीसी का वर्चस्व बढ़ता गया. हजारीबाग के बड़कागांव से होने वाले अवैध कोयला कारोबार, टंडवा, पिपरवार से कोयले की ट्रांसपोर्टिग, लोहरदगा की बॉक्साइट ढुलाई समेत अन्य धंधों से मिलने वाले लेवी की राशि माओवादियों के बजाये टीपीसी के उग्रवादियों को मिलने लगी.

पुलिस के बदले पहुंचती है टीपीसी

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