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दामोदर की जीवन रेखा को चाहिए जीवन दान

बाढ़ जैसी भीषण प्राकृतिक आपदा को नियंत्रित करते हुए जीवन को रोशन करने के मकसद से 66 साल पहले 7 जुलाई, 1948 को अस्तित्व में आयी आजाद भारत की प्रथम बहु-उद्देशीय नदी परियोजना दामोदर घाटी निगम (डीवीसी) की जीवन रेखा आज जीवन दान के लिए तरस रही है. 27 मार्च, 1948 को डीवीसी का गठन […]

बाढ़ जैसी भीषण प्राकृतिक आपदा को नियंत्रित करते हुए जीवन को रोशन करने के मकसद से 66 साल पहले 7 जुलाई, 1948 को अस्तित्व में आयी आजाद भारत की प्रथम बहु-उद्देशीय नदी परियोजना दामोदर घाटी निगम (डीवीसी) की जीवन रेखा आज जीवन दान के लिए तरस रही है.

27 मार्च, 1948 को डीवीसी का गठन भारत के संसद की ओर से डीवीसी एक्ट 1948 पारित कर किया गया, जिसे तत्कालीन गवर्नर जनरल की सहमति मिली और जिसमें तत्कालीन अविभाजित बिहार (अब झारखंड), पश्चिम बंगाल और केंद्र का संयुक्त रूप से स्वामित्व है. अस्तित्व संकट से जूझ रहे डीवीसी के मामले में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बनीं केंद्र की नयी सरकार से भागीरथ प्रयास की उम्मीद भी जगी है. पूरे हालात पर प्रकाश डालती प्रभात खबर की यह विशेष रिपोर्ट.

धनबाद: दामोदर वैली कॉरपोरेशन (डीवीसी) के प्रभारी अध्यक्ष पद से अरूप राय चौधरी के इस्तीफे के बाद नरेंद्र मोदी की नेतृत्ववाली केंद्र की नयी एनडीए सरकार ने ऊर्जा मंत्रलय में अतिरिक्त सचिव राजीव नयन चौबे को कार्यवाहक अध्यक्ष बनाया है़ ऊर्जा मंत्रलय ने स्थायी व नये अध्यक्ष को लेकर चयन की प्रक्रिया शुरू कर दी है. नियमित अध्यक्ष के चयन तक चौबे इस पद पर रहेंगे. चौबे के सामने अस्तित्व संकट से जूझ रहे डीवीसी के लंबित प्रोजेक्टों को पूरा कराने, सुप्रीम कोर्ट में लंबित ऐश पौंड निबटारा, विभिन्न प्रतिष्ठानों पर करीब 80 अरब बकाये की उगाही के साथ पूर्व प्रभारी अध्यक्ष के फैसलों से कर्मियों में उपजी हताशा के बादल को छांट कर विश्वास बहाली की चुनौतियां हैं.

ऊर्जा मंत्रलय में कई विभागों के अलावा डीवीसी से संबंधित मामले देखते रहे चौबे से उम्मीदें तो हैं, मगर डीवीसी का मर्ज इस कदर बढ़ चुका है कि केंद्र सरकार के गंभीर कदम से ही कुछ रास्ता निकल सकता है.

पुनरुद्धार के लिए पुनर्गठन जरूरी

ताप विद्युत (थर्मल पावर) इकाइयों की 5710 मेगावाट तथा जल विद्युत (हाइडल पावर) इकाइयों की 147.2 मेगावाट के साथ कुल उत्पादन क्षमता 5957.2 मेगावाट पर डीवीसी को 1075 करोड़ रुपये की आनेवाली लागत के एवज में सिर्फ 825 करोड़ रुपये की ही उगाही हो पाती है. इस तरह करीब 250 करोड़ रुपये मासिक घाटे के अलावा कर्ज की हालत यह है कि सिर्फ मासिक सूद 200 करोड़ रुपया हो गया है. इन संकटों से जूझ रहे डीवीसी को लेकर ऊर्जा क्षेत्र में यह धारणा प्रबल हो गयी है कि इसका पुनरुद्धार इसके पुनर्गठन के बिना संभव नहीं. ऐसे में डीवीसी में कार्यरत करीब 11,000 मानव श्रम को अपना भविष्य अंधकार में पड़ता नजर आ रहा है, तो अकारण नहीं.

संकट के नये मुकाम

साल 1992 के बाद चले आर्थिक सुधार के अभियान में ढांचागत सुधार जो भी हुआ हो, पर सार्वजनिक प्रतिष्ठानों के लिए तो यह दु:स्वप्न साबित हुआ. नीतिगत सीमाएं जो भी रही हों, पर एक के बाद एक निगम के अध्यक्षों के कार्यकाल में तंत्र की नाकामी उजागर होती गयी. इसी कड़ी में डीवीसी के विखंडन आदि के हालिया प्रकरण ने नवंबर में प्रभारी अध्यक्ष के रूप में आये अरूप रायचौधरी के कदमों ने पूरे माहौल को गरमा दिया. रायचौधरी ने निगम के समक्ष पहले से मौजूद चुनौतियों और सीमाओं से लड़ने की बजाय संकट के नये मुकाम खोले. इस अध्यक्ष के कार्यकाल ने सबके सामने डीवीसी को समूचेपन में देखने की बाध्यता पैदा कर दी.

कांटा कहां गड़ा

पश्चिम बंगाल के कटवा में एनटीपीसी के 1320 मेगावाट का प्लांट जमीन के मामले को ले अंटक गया. बंगाल सरकार ने किसी भी तरह के सहयोग से इनकार कर दिया. ऐसी ही स्थिति में भारत सरकार ने एनटीपीसी के सीएमडी अरूप रायचौधरी को डीवीसी के चेयरमैन का प्रभार दे दिया था. इसके साथ प्रच्छन्न शर्त थी कि वे बंगाल सरकार के साथ मामले को निबटा लेंगे, तो उन्हें डीवीसी का पूर्णकालिक अध्यक्ष बना दिया जायेगा. निवर्तमान प्रभारी अध्यक्ष से पूर्व यहां आरएन सेन अध्यक्ष (नियमित) थे. वे भी एनटीपीसी से ही लाये गये थे. सेन एनटीपीसी में चौधरी के मातहत रह चुके थे. चौधरी से पूर्व सेन ने कटवा प्रोजेक्ट को ले कुछ होमवर्क भी किया था. इसी स्थिति में बंगाल सरकार का रुख प्रदर्शित हुआ कि वह डीवीसी से ट्रांसमिशन, डिस्ट्रीब्यूशन बंगाल के जिम्मे दे दे तो वह प्रोजेक्ट के लिए जमीन संबंधी मामले हल करने में सहयोग करेगा.

84 अरब का बकाया

एक अनुमान के मुताबिक डीवीसी का कुल बकाया करीब 84 अरब तक पहुंच गया है. सिर्फ चार राज्यों झारखंड, पश्चिम बंगाल, नयी दिल्ली एवं मध्य प्रदेश पर ही कुल 8368.91 करोड़ रुपये का बकाया है. झारखंड राज्य बिजली बोर्ड पर 31 मार्च, 2013 तक का 4370.4 करोड़ तथा मार्च 2014 तक 7170.4 करोड़ रुपये का बकाया है. नयी दिल्ली की बीएसइएस यमुना पॉवर लिमिटेड पर 480.10 करोड़, मध्यप्रदेश के मध्यप्रदेश पावर मैनेजमेंट कंपनी लिमिटेड (एमपीएमसीएल) पर 418.41 करोड़ और पश्चिम बंगाल पर 300 करोड़ रुपये बकाया. डीवीसी प्रबंधन की मानें, तो बकाया भुगतान से आर्थिक संकट दूर हो सकता है.

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