रांची: रांची नगर निगम में नक्शा पास करने का काम आरआरडीए के कुछ कर्मचारी कर रहे हैं. ये वे कर्मचारी हैं जो काम तो आरआरडीए में करते हैं परंतु दिन के 12 बजते ही नगर निगम में दाखिल हो जाते हैं. दो-तीन घंटा निगम में रहने के बाद ये वापस आरआरडीए पहुंच जाते हैं.
ये कर्मचारी निगम में जमा नक्शे के कागजात की जांच करते हैं. उसमें खोज खोज कर खामियां निकालते हैं और फिर तीन बजे तक आरआरडीए पहुंच जाते हैं. यहां से इनका फोन घुमाने का सिलसिला शुरू होता है. बिल्डरों व भवन मालिकों को ये बताते हैं कि नक्शा में क्या-क्या कमी है. अगर नक्शा पास कराना चाहते हैं तो एक बार आकर मिल लीजिए. इन कर्मचारियों में से एक पर तो निगम अधिकारी इतने मेहरबान हैं कि ये नक्शों की फाइल को बैग में डाल कर अपने घर भी ले जाते हैं. इस कर्मचारी से नक्शा घोटाला के संबंध में सीबीआइ के अधिकारी भी पूछताछ कर चुके हैं.
घूस का रेट बढ़ाने के लिए बदला गया नियम
नक्शा पास करने के लिए घूस का रेट बढ़ाने के लिए नियमों में फेर-बदल किया गया है. नक्शों को निगम में जमा करने से लेकर स्वीकृत किये जाने तक के सभी नियमों को परिवर्तित कर दिया गया है. इसके अलावा नक्शा स्वीकृत करने के लिए समय सीमा की बाध्यता भी समाप्त कर दी गयी है. पूर्व में रांची नगर निगम से नक्शा पास करने के लिए 60 दिनों की समयावधि निर्धारित थी. अब नगर निगम जब तक चाहे, नक्शे की फाइल पेंडिंग रख सकता है.
हमेशा से फिक्स रही है घूस की रकम
रेसिडेंशियल अपार्टमेंट का नक्शा स्वीकृत कराने के लिए फीस 30 रुपये प्रति वर्गमीटर निर्धारित है. वहीं व्यावसायिक उपयोग के भवन का नक्शा स्वीकृत करने की फीस 60 रुपये प्रतिवर्गमीटर निर्धारित है. रांची नगर निगम में रेसिडेंशियल अपार्टमेंट का नक्शा जमा कराने के बाद निर्धारित फीस के अलावा 18 से 22 रुपये अतिरिक्त देने की मांग की जा रही है. वहीं, पूर्ण व्यावसायिक इमारत के नक्शे के साथ निर्धारित फीस के अलावा 26 से 30 रुपये अतिरिक्त की दर से डिमांड की जा रही है. पूर्व में घूस की दर रेंसिडेंशियल के लिए 14 से 16 रुपये और व्यावसायिक के लिए 20 से 22 रुपये तक वसूली जाती थी.
हर माह एक करोड़ से अधिक की अवैध वसूली
रांची नगर निगम में नक्शा पास कराने के इस प्रक्रिया में हर माह एक करोड़ रुपये से अधिक वसूली की जाती है. निगम द्वारा यह राशि बहुमंजिली इमारतों का नक्शा पास करने में ली जाती है. नाम नहीं छापने की शर्त पर एक बिल्डर कहते हैं कि बिना चढ़ावा के तो यहां फाइल एक टेबल से दूसरे टेबल पर जा ही नहीं सकती. जिस प्रोजेक्ट में हमलोगों को 50-60 लाख का फायदा होता है उसमें हम अपनी मरजी से ही कुछ चढ़ावा दे देते हैं.