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कलोदी मरांडी का है उदाहरण, यूं करता है समाज मदद

बीआइटी सिंदरी की केमिकल इंजीनियरिंग की छात्रा कलोदी मरांडी एक गरीब परिवार से आती हैं लेकिन उनमें पढ़ाई का जुनून इस कदर है कि परेशानियां उसका हौसला नहीं तोड़ पाती हैं. कलोदी एक मेधावी छात्रा है जिसके कारण दाखिलाबीआइटी सिंदरीमें तो हो गया है, लेकिन आर्थिक समस्या उनके आड़े आ रही थी. कलोदी को तीसरे […]

बीआइटी सिंदरी की केमिकल इंजीनियरिंग की छात्रा कलोदी मरांडी एक गरीब परिवार से आती हैं लेकिन उनमें पढ़ाई का जुनून इस कदर है कि परेशानियां उसका हौसला नहीं तोड़ पाती हैं. कलोदी एक मेधावी छात्रा है जिसके कारण दाखिलाबीआइटी सिंदरीमें तो हो गया है, लेकिन आर्थिक समस्या उनके आड़े आ रही थी. कलोदी को तीसरे सेमेस्टर में नामांकन के लिए उसे कुल 51 हजार रूपये की जरूरत थी. कॉलेज प्रबंधन से फीस माफी के लिए कलोदी ने आग्रह किया है लेकिन कुछ ठोस आश्वासन नहीं मिला. कॉलेज प्रबंधन की ओर से उसे स्कॉलरशिप के पैसे से फीस भरने की सलाह दी गयी है. लेकिन कलोदी ने बताया कि उसे स्कॉलरशिप के रूप में फूटी कौड़ी भी नहीं मिली है. उसका कहना है कि माता – पिता इतना खर्च वहन नहीं कर सकते. मेरे बाकी के भाई – बहन भी पढ़ाई कर रहे हैं.

कलोदी की परेशानी को जब मीडिया ने जगह दी तो दूसरे दिन से ही समाज के संवेदनशील लोगों और आइएसएम (आइआइटी ) धनबाद के छात्रों ने कलोदी की फीस का इंतजाम कर दिया. सरकारी स्तर पर भी मामला संज्ञान में ले लिया गया है. ये पहली बार नहीं है जब समाज कलोदी के लिए सामने आया है. 2016 में कलोदी मरांडी ने विपरीत परिस्थितियों में बीआइटी सिंदरी, इंजीनियरिंग की परीक्षा में सफलता पायी थी. उसके जीवन की कहानी काफी प्रेरणादायक है. 18 वर्ष की कलोदी के जीवन की कहानी जामताड़ा जिले के कुंडहित ब्लॉक के सुपसिया गांव से शुरू होती है. उसका पूरा परिवार गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करता है. कलोदी की मां पत्तल बना कर बेचने का व पिता दूध बेचने का काम करते हैं. कलोदी ने अपनी आरंभिक पढ़ाई कुंडहित में ही उत्क्रमित उच्च विद्यालय तपतपिया से की है. उसके बाद 12वीं तक की पढ़ाई नवोदय स्कूल जामताड़ा से की. उत्क्रमित स्कूल से जुड़े उनके शिक्षक सोमनाथ मंडल बताते हैं कि कलोदी में पढ़ाई को लेकर लगन शुरू से ही थी. जब सभी बच्चे खेलते थे, उस समय भी कलोदी अपना ज्यादातर समय पढ़ाई में देती थी.

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12वीं के बाद इंजीनियरिंग की तैयारी दादर नगर हवेली में दक्षिणा फाउंडेशन में की. उसकी मेधा को देखते हुए दक्षिणा फाउंडेशन ने पढ़ाई, रहने-खाने के लिए कोई पैसा नहीं लिया. कोचिंग के दौरान कलोदी ने आइआइटी की परीक्षा दो बार दी. कुछ ही नंबरों की कमी के कारण कलोदी आइआइटी की परीक्षा में सफल नहीं हो पायी. आइआइटी में सफल नहीं होने पर कलोदी टूट-सी गयी. उसी समय उसे सुपर 30 के आनंद कुमार का साथ मिला. 4 महीने तक कलोदी हॉस्टल में रही बाद में आनंद कुमार के घर में. सुपर 30 में एडमिशन के समय ही आनंद कुमार ने वादा किया था की अगर कोचिंग क्लास के दौरान उसका प्रदर्शन बढ़िया रहेगा, तो आगे कोचिंग की पढ़ाई वे उसे अपने घर से करायेंगे.
कोचिंग की तैयारी के बाद कलोदी बीआइटी सिंदरी में सफल हो गयी और उसे केमिकल इंजीनियरिंग ब्रांच मिला. बीआइटी में एडमिशन लेने के लिए भी कलोदी के पास पैसे नहीं थे. एडमिशन दिलाने के लिए कलोदी के पिता ने 15 हजार रुपये में अपनी दोनों गायों को भी बेच दिया, लेकिन एडमिशन लेने के लिए इतने रुपये काफी नहीं थे. जब बीआइटी के छात्रों को इसकी जानकारी मिली तो वे कलोदी के एडमिशन के लिए आपस में चंदा करने लगे. बात बीआईटी प्रबंधन के संज्ञान में बात आयी और कलोदी का नामांकन बीआइटी में हो गया.

इसके साथ साथ क्लीन बीआइटी कमेटी ने एक फंड बनाने का निर्णय किया और 15 अगस्त को एक बैंक अकाउंट भी खोल दिया जिसमें बीआइटी और आमजन से सहयोग लेकर कलोदी और उसके जैसे जरूरतमंद छात्रों की मदद की जा सके. कलोदी के आगे बढ़ने की कहानी ना सिर्फ उसके लगन और आगे बढ़ने की जिद की दास्तां है बल्कि परिवार-समाज में मेधा को लेकर संवेदना की भी कहानी है.

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