आजसू सुप्रीमो सुदेश कुमार महतो ने पहली बार संसदीय चुनाव में उम्मीदवार बन कर राजनीतिक सरगरमी बढ़ा दी है. श्री महतो का चुनाव लड़ना नये राजनीतिक समीकरण का भी संकेत दे रहा है. आजसू प्रमुख ने रांची से दावं लगा कर दूर की गोटी चली है. आजसू की नयी भूमिका से प्रदेश के राजनीतिक समीकरण भी बदलेंगे. पार्टी ने राज्य कीनौ सीटों पर उम्मीदवार दिये हैं. श्री महतो से प्रभात खबर ने वर्तमान राजनीतिक हालात और चुनावी समीकरण समझने के साथ-साथ रांची से दावं लगाने का गणित भी समझने का प्रयास किया. पेश है बातचीत के प्रमुख अंश :
लोकसभा चुनाव में पार्टी की क्या संभावना देखते हैं ?
आजसू पार्टी विशेष राज्य का दरजा के मुद्दे को लेकर जनता के सामने है. यह मुद्दा राज्य के भविष्य से जुड़ा है. अत: हमारा विश्वास है कि जनता राज्य के व्यापक हित में निर्णय लेकर आजसू के पक्ष में मतदान करेगी. मुङो विश्वास है कि जनता के सहयोग से हम बेहतर प्रदर्शन करेंगे. हमें अपने संघर्ष और विकास के नजरिये पर पूरा भरोसा है. हाल के दिनों में पार्टी के प्रति युवाओं, महिलाओं और आम अवाम में जो आकर्षण और विश्वास पैदा हुआ है, वह उसी का परिणाम है.
राष्ट्रीय दलों की दलील है कि क्षेत्रीय दल चुनाव में प्रभावी नहीं होंगे. आप जनता के बीच किन मुद्दों को लेकर जायेंगे?
लोकसभा में तेलंगाना गठन के समय जो कुछ भी हुआ, उससे आप सभी अवगत हैं. भाजपा और कांग्रेस ने मिल कर तेलंगाना के गठन के साथ-साथ सीमांध्र को 10,000 करोड़ रुपये का पैकेज स्वीकृत कराया. इन राष्ट्रीय दलों ने झारखंड को विशेष राज्य के दरजे के लिए ऐसा ही गंठबंधन क्यों नहीं किया? ये बातें स्पष्ट करती हैं कि सभी राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय दलों ने राज्य की जनता से राज्य के विकास का वादा करने के बाद धोखा किया है. इसके विपरीत सदन में प्रतिनिधित्व नहीं होने के बावजूद आजसू ने 15 नवंबर को बिरसा जयंती के अवसर पर दिल्ली के जंतर-मंतर पर प्रभावी प्रदर्शन किया. आजसू जनता की भावनाओं एवं अधिकारों को लेकर देश की राजधानी की सड़कों पर उतरी. आजसू ने बहरागोड़ा से बरही तक 300 किमी तक मानव श्रृंखला बनायी. इससे स्पष्ट है कि आजसू राज्य के अधिकारों के लिए संघर्ष कर रही है. वहीं राज्य की जनता के वोट पाकर राष्ट्रीय दल एवं क्षेत्रीय दल राज्य के हितों की उपेक्षा कर रहे हैं. यही फैक्टर है, जो आजसू को अन्य राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय दलों से अलग करता है.
जनता आप पर ही भरोसा क्यों करे. वादे और आश्वासन तो जनता वर्षो से सुनती आ रही है?
इस संबंध में मैं इतना ही कहना चाहूंगा कि जनता किसी के झूठे वादे एवं भाषणों पर भरोसा न करे. वह सबके काम देखे, उसके मुद्दों को समङो. नेताओं की नीयत जाने और इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि विगत 10 वर्षो में किसी राजनीतिक दल ने विकास के कार्य बड़े शिद्दत से किये हैं. इसके साथ ही जनता को यह भी देखना चाहिए कि राजनीतिक दल ने जन सरोकार के मुद्दे पर जनता का प्रभावी नेतृत्व किया है, किस राजनीतिक दल ने राज्य के व्यापक हितों के लिए संघर्ष किया है.
राज्य गठन के बाद आप पहली बार संसदीय चुनाव लड़ रहे हैं. ऐसी क्या परिस्थिति बनी?
यह एक महत्वपूर्ण सवाल है. 10 वर्षो में आजसू की शासन में सहभागिता रही है. हमने यह महसूस किया है कि राज्य सरकार अपने संसाधनों से राज्य का विकास नहीं कर सकती. चाहे शिक्षा के क्षेत्र में गुणात्मक सुधार का सवाल हो या स्वास्थ्य के क्षेत्र में स्वास्थ्य सुविधा का या दूर-दराज के गांवों तक विस्तार का. ये सभी ऐसे विषय हैं, जिसमें कई निर्णय केंद्र सरकार के स्तर पर लिये जाते है. आजसू यह मानती है कि इन क्षेत्रों में अपेक्षित सुधार के लिए केंद्र सरकार के निर्णय को प्रभावी ढंग से लागू कराने के लिए यह जरूरी है कि राज्य से जुझारू लोग जीत कर लोकसभा में जायें. राज्य का प्रतिनिधित्व ऐसे लोग करें, जो जनता के बीच से आते हैं और जिनके पास संघर्ष का इतिहास हो.
रांची के परंपरागत प्रतिद्वंद्वियों के बीच आपकी पार्टी कहां खड़ी है?
30 वर्षो में रांची लोकसभा क्षेत्र के निर्वाचित जनप्रतिनिधियों ने वैसा कुछ नहीं किया है, जिसके आधार पर वे पुन: जनता में वोट मांगने जायें. वहीं दूसरी ओर रांची लोकसभा क्षेत्र के दो विधानसभा क्षेत्रों में आजसू के विधायक हैं. अगर विकास की परिभाषा किसी को समझानी है, तो वह सिल्ली जाकर देखे. आपका सवाल का जवाब छिपा है कि इन परंपरागत प्रतिद्वंद्वियों के परिप्रेक्ष्य में आजसू कहां खड़ी है. आजसू जनता की उम्मीदों का प्रतीक है. आजसू ने इस चुनाव में जनता को परंपरागत उम्मीदवारों से बाहर जाकर एक विकल्प दिया है.
चर्चा यह भी है कि आपने एक दल विशेष के प्रत्याशी की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है?
हमने किसी की उम्मीदों पर पानी नहीं फेरा है. हमने तो जनता की उम्मीदों को और बढ़ाया है. चुनाव के बाद यह साबित हो जायेगा कि जनता ने आजसू के पक्ष में मतदान करके विकास की राजनीति के साथ खड़ा होने का निर्णय लिया है.
आपके राजनीतिक कदम से विेषक एनडीए से विरक्ति और यूपीए की ओर झुकाव का भी संकेत मान रहे हैं. सच्चई क्या है?
किसी से आसक्ति एवं विरक्ति का मामला नहीं है. यह मेरे लिए कोई मुद्दा नहीं है. मुङो आसक्ति है, तो सिर्फ राज्य के विकास से और मुङो किसी से विरक्ति है, तो वैसे लोगों से, जो इतने दिनों तक जनता के साथ झूठे वादे कर चुनाव जीत कर विधानसभा एवं लोकसभा पहुंचते रहे हैं. इस काल खंड में जनता की हालत को बद से बदतर बनाने की प्रक्रिया में या तो सहभागी रहे या मूकदर्शक बन कर खड़े रहे. मैं तो इतना ही कहूंगा कि जो परिणाम नहीं दे सकता, उन्हें औरों के लिए स्थान खाली कर देना चाहिए. मैं भी अगर परिणाम नहीं दूंगा, तो फिर जनता के सामने दोबारा वोट मांगने नहीं आऊंगा.
गंठबंधन की राजनीति का दौर चल रहा है. आपके सांसद दिल्ली पहुंचे, तो किस पक्ष में खड़ होंगे?
आजसू पार्टी उन तमाम ताकतों के साथ खड़ी रहेगी, जिस पर भरोसा होगा कि ये झारखंड की जनता के अधिकारों के प्रति संवेदनशील हैं. हम यह स्पष्ट करना चाहेंगे कि आजसू को वोट देकर जनता ऐसे जनप्रतिनिधि को चुन रही होगी,जो सदन में जनता के अधिकारों के लिए संघर्ष करेगा, झारखंड को उसका अधिकार दिलायेगा. अपने निजी स्वार्थो के लिए दिल्ली की राजनीतिक मंडियों में आजसू राज्य के हितों की सौदेबाजी नहीं करेगी.