आस्था. मां के दो स्वरूपों की हुई पूजा, मंदिरों में उमड़े श्रद्धालु
देसरी : स्थानीय देसरी बाजार के कृष्णा चौक पर सैकड़ों वर्षों से दुर्गा पूजा हो रही है. पहले यहां अश्विन मास में ही सिर्फ दुर्गा पूजा होती थी. प्रत्येक वर्ष माता की मूर्ति मिट्टी से बनती थी और पूजा के बाद दशमी को मूर्ति का विसर्जन कर दिया जाता था. दस वर्ष पहले देसरी थाने के तत्कालीन थाना प्रभारी महेश प्रसाद यादव ने दुर्गा माता के मंदिर का निर्माण एवं पत्थर के मूर्ति बनवाने की माता की शक्ति एवं भक्ति से उनके मन में प्रेरणा आयी.
तो उन्होंने देसरी के लोगों से यह बात कही और उसी दिन से थाना प्रभारी मंदिर निर्माण के लिये प्रयासरत हो गए. देखते ही देखते स्थानीय व्यवसायी एवं अन्य लोग मंदिर के लिए चंदा देने लगे. एक वर्ष में भव्य मंदिर बन कर तैयार हो गया. जिस मंदिर में मां दुर्गा की पत्थर की मूर्ति, विशाल आयोजन कर स्थापित किया गया. स्थापना के दिन से ही दुर्गा माता की पूजा की शुरुआत हुई. जो आज तक चल रही है यहां प्रतिदिन सुबह और शाम को माता की पूजा आरती होती है. आचार्य भोला झा एवं रंजीत झा इस मंदिर में सालों भर पूजा करते हैं. इस मंदिर पर पूजा के आयोजन के लिए एक समिति का गठन किया गया है. जिसका अध्यक्ष रमेश राय तो सचिव देव प्रसाद राय हैं़ इस बार सप्तमी को यहां माता के जागरण कार्यक्रम का आयोजन किया गया है. वहीं मंगलवार को मां के तृतीय व चतुर्थ स्वरूप चंद्रघंटा व कुष्मांडा की पूजा की गयी़
दुर्गा की भक्ति में डूबा लालगंज : लालगंज सदर. शक्ति का अधिष्ठात्री मां दुर्गा की पूजा उपासना का अनुष्ठान शारदीय नवरात्र पिछले शनिवार से शुरू हो चुका है. नवरात्र महापर्व के अवसर पर पूरा लालगंज क्षेत्र भक्तिमय हो चुका है. विदित हो कि नौ दिनों तक चलने वाले नवरात्र अनुष्ठान में मां दुर्गा के नौ रूपों क्रमशः शैलपुत्री, ब्रह्माचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कत्यायनी, कालरात्रि, महागौरी एवं सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है. नवरात्र के चौथे दिन मंगलवार को दुर्गा मां के तृतीय रूप चंद्रघंटना व चौथे स्वरूप कुष्मांडा की पूजा की गयी. मां दुर्गा के चौथा स्वरूप कुष्मांडा अपनी मंद, हल्की हंसी के द्वारा ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इस देवी को कुष्मांडा नाम से अभिहित किया गया है. जब सृष्टि नहीं थी, चारों तरफ अंधकार ही अंधकार था, तब इसी देवी ने अपने ईषत् हास्य से ब्रह्मांड की रचना की थी. इसीलिए इसे सृष्टि की आदिस्वरूपा या आदिशक्ति कहा गया है.
इस देवी की आठ भुजाएं हैं, इसलिए अष्टभुजा कहलाईं. इनके सात हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है. आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जप माला है. इस देवी का वाहन सिंह है और इन्हें कुम्हड़े की बलि प्रिय है. संस्कृति में कुम्हड़े को कुष्मांड कहते हैं इसलिए इस देवी को कुष्मांडा.