गोरौल : भाद्रपद अमावस्या यानी कुशी अमावस्या गुरुवार के दिन है. इस तिथि को सनातम धर्म में कुश उच्चाटन अर्थात कुश उखाड़ने की परंपरा है. शतपथ ब्राह्मण के अलावा शास्त्रो में भी इसका वर्णन मिलता है. शास्त्रों के अनुसार इस तिथि को चंद्रमा का तेज कुश की जड़ों में समा जाता है. इससे उसकी ऊर्जा बढ़ जाती है और पूरे वर्ष कुश सभी हिंदू कर्मों के लिए उपयुक्त माना गया है. इसलिए ज्ञानी व्यक्ति इस विशेष तिथि को ही कुश उखाड़ कर रखते हैं तथा सालों भर होनेवाले शादी, श्राद्ध, जेनऊ में पूजा-पाठ के अलावा सभी कार्यों में इस कुश का उपयोग करते हैं. बिना कुश के किसी भी तरह की क्रिया करना संभव नहीं है.
शास्त्रों के अनुसार कुश राक्षसों को नष्ट करनेवाला होता है. इसका अर्थ हुआ कि आसुरी प्रवृत्ति को नष्ट करने की शक्ति कुश में विद्यमान है. कुश से बना आसन यानी सभी आसनों में सर्वोत्तम है. कुश के आसन पर बैठ कर पूजा-पाठ करने से मन शांत रहता है और पूजा के दौरान आसुरी शक्ति पूजा स्थल से भाग जाते हैं. भाद्र पद की अमावस्या को चंद्रमा की तेज को अपने में समेट कर रखनेवाले कुश में पूरे वर्ष अमृत की शक्ति होती है. इस संबंध में आचार्य और सनातम धर्म ग्रंथों के जानकार बताते हैं कि कुश यानी कु का अर्थ होता है पृथ्वी और स का अर्थ होता है समन करने वाला इसका अर्थ हुआ कुश पृथ्वी पर तमाम कुप्रभावों को समाप्त करता है. कुश आसन ऊर्जा का संवाहक होता है. इसलिये किसी भी प्रकार की क्रिया जब कुश के बने आसन पर बैठ कर संपन्न की जाती है, तो उसकी कर्ता में नहित रखने में कुश सहायक सिद्ध होता है. इसलिए प्राचीन काल से ही भाद्र पद अमावस्या यानी कुशी अमावस्या को कुश उखाड़ कर संग्रह करने का विधान आज भी है. इस तिथि के अलावा पूरे वर्ष अन्य तिथियों को कुश उखाड़ना वर्जित है.