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उद्यान विभाग के पौधे में नहीं आया फल

एक वर्ष में पपीते की खेती पर खर्च कर दिये ढाई लाख रुपये देसरी. उद्यान विभाग की नर्सरी से पपीते का पौधा लेकर जंदाहा प्रखंड के खोपी गांव निवासी चंदन कुमार एवं कुंदन कुमार ने अपने खेतों में लगाया था. दोनों भाइयों ने कड़ी मेहनत कर तेज धूप में भी लगातार सिंचाई कर पौधे को […]

एक वर्ष में पपीते की खेती पर खर्च कर दिये ढाई लाख रुपये
देसरी. उद्यान विभाग की नर्सरी से पपीते का पौधा लेकर जंदाहा प्रखंड के खोपी गांव निवासी चंदन कुमार एवं कुंदन कुमार ने अपने खेतों में लगाया था. दोनों भाइयों ने कड़ी मेहनत कर तेज धूप में भी लगातार सिंचाई कर पौधे को बचाया. जब पौधे बड़े हो गये तो आस जगी कि जल्दी ही फल लगेंगे और मेहनत सफल होगी.
पौधे तो बड़े जरूर हो गये पर अधिकतर में फल आया ही नहीं. कुछ में फल आया भी तो वह अपुष्ट. अजीब तरह का पपीते का फल देख किसानों पर पहाड़ टूट पड़ा. वह सोच रखा था पपीता फलेगा तो उसे बेच कर लागत निकल जायगा. जिनसे पैसे लेकर खेती की थी उन्हें वापस कर देंगे. परिवार चलायेंगे, बच्चों को निजी विद्यालय में पढ़ायेंगे. पर अब उनके सारे सपने चकनाचूर हो गये.
रेड लेडी किस्म का था पौधा : संतोष कुमार सिंह बताते हैं कि उद्यान विभाग के अंधराबड़ कृषि फॉर्म से जुलाई 2015 में पपीते का पौधा लेकर एक हेक्टेयर में लगाया था. विभाग से पपीते का पौधा रेड लेडी किस्म बता कर दिया गया था. इसे खेतों में लगाने के एक वर्ष के बाद अधिकतर पौधा फला ही नहीं. कुछ पौधे में फल आया भी तो अजब-गजब का फल है.
एक वर्ष में उन्होंने पपीते की खेती में 2 से ढाई लाख रुपये खर्च कर दिया. लेकिन गलत किस्म का पौधा देने के कारण आज इनकी सारी लागत डूब चुकी है.
ऊपर से साहूकारों का पैसा लौटाने का अलग से दबाब झेल रहे हैं. चंदन कुमार ने जिला उद्यान पदाधिकारी को सारी जानकारी देते हुए पौधे का भौतिक सत्यापन करवाने का अनुरोध किया है. किसानों ने जांच कर मुआवजा देने तथा पौधे का किस्म बदलने वालों पर कार्रवाई करने की मांग भी की है.

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