ग्राम न्यायालय. सुप्रीम कोर्ट का सुझाव नहीं हुआ कारगर
Advertisement
धरातल पर नहीं दिख रहा असर
ग्राम न्यायालय. सुप्रीम कोर्ट का सुझाव नहीं हुआ कारगर हाजीपुर : देश के न्यायालयों में लंबित वादों की संख्या को देखते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने देश में ग्राम न्यायालयों की स्थापना के सुझाव दिया था और उसके बाद कई राज्यों ने ग्राम न्यायालय की स्थापना भी की थी. राज्य सरकार ने ग्राम न्यायालय की अवधारणा […]
हाजीपुर : देश के न्यायालयों में लंबित वादों की संख्या को देखते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने देश में ग्राम न्यायालयों की स्थापना के सुझाव दिया था और उसके बाद कई राज्यों ने ग्राम न्यायालय की स्थापना भी की थी. राज्य सरकार ने ग्राम न्यायालय की अवधारणा को लागू करने के लिए त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के साथ ग्राम कचहरियों के भी चुनाव कराया और राज्य सरकार ने ग्राम कचहरियों के सरपंच और पंच का चुनाव कराया और ग्राम कचहरियों की सलाह के लिए न्यायमित्र के रूप में अधिवक्ता एवं न्यायालय के कार्यों के निष्पादन के लिए सचिव की नियुक्ति की, लेकिन धरातल पर इसके असर नहीं दिख रहा है.
क्या थी परिकल्पना : ग्राम कचहरियों की स्थापना के पीछे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज के साथ ही ग्राम न्यायालय की अवधारणा को साकार करने की परिकल्पना थी. गांव का विवाद गांव में ही निबट जाये, वह भी बिना देर किये और बगैर किसी खर्च के इसी सोच को लेकर राज्य सरकार ने पूरी तरह सधान संपन्न ग्राम कचहरियों की स्थापना की और इसके संचालन पर सरकार ने करोड़ों रुपये खर्च किये.
ग्राम कचहरियों की यह अवधारणा थी कि छोटे-छोटे विवाद को गांव में ही बैठ कर समाप्त कर दिये जाएं.
क्या किया राज्य सरकार ने : राज्य सरकार ने ग्राम न्यायालयों की स्थापना करने के बजाय भारत की पुरातन न्याय व्यवस्था ग्राम कचहरी को ही शक्ति संपन्न बनाते हुए उसे कई मामलों पर संज्ञान लेने और सुनवाई का अधिकार दिया. इसके साथ ही ग्राम कचहरियों को विधिक सलाह देने के लिए विधि स्नातकों की न्याय मित्र के रुप में नियुक्ति की तथा लेखन कार्य के लिये न्याय सचिव की भी नियुक्ति की लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात.
क्या हुआ अब तक : राज्य सरकार ने ग्राम कचहरियों के सरपंच और पंच का चुनाव कराया, लेकिन जिन लोगों ने उन्हें निर्वाचित किया था उनलोगों ने निर्वाच के बाद अपने प्रतिनिधियों पर ही विश्वास नहीं किया. शायद ही ऐसी कोई ग्राम कचहरी हो, जहां लोगों ने अपने विवाद के समाधान के लिए लोगों ने ग्राम कचहरियों की शरण ली हो. अधिकतर ग्राम कचहरियों के पास पिछले पांच वर्षों में एक भी मामले निष्पादित नहीं किये गये.
यानी लोगों ने अपने प्रतिनिधियों पर विश्वास जताने के बदले पुलिस और न्यायिक व्यवस्था पर विश्वास जताया.
हाल जिले की 288 ग्राम कचहरियों का
क्या था उच्चतम न्यायालय का आदेश
उच्चतम न्यायालय ने अपने एक आदेश में केंद्र सरकार से कहा था कि वह जगह-जगह ग्राम न्यायालयों की स्थापना करे, जो गांव के छोटे-छोटे विवाद को वहीं निष्पादित कर दे ताकि जिला और राज्य न्यायालय में महत्वपूर्ण मामलों के निष्पादन में अपना समय और शक्ति लगा सके. जिससे देश में लंबित वादों की संख्या में कमी आ सके.
क्या था उद्देश्य
गांव के छोटे-छोटे विवाद को गांव के स्तर पर हल कर समाज में सामाजिक सौहार्द कायम रखने एवं न्यायालयों में विवादों की संख्या कम करने के उद्देश्य से सरकार ने ग्राम कचहरियों के चुनाव कराने के साथ ही उनके लिए एक ग्राम कचहरी सचिव और विधिक सलाह के लिए न्यायमित्रों की नियुक्ति की थी. लेकिन, ग्राम कचहरियों के पांच साल के कार्यकाल में ग्राम कचहरियों के कार्यों के विश्लेषण से स्पष्ट है कि यह न तो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सपनों को साकार करने में सफल हुई और न ही उच्चतम न्यायालय के निर्देशों के पालन में.
Prabhat Khabar App :
देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए
Advertisement