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”सयाना” है टॉपर घोटाले का किंगपिन ”बच्चा”

इंटर टॉपर घोटाला. पैसा वसूलने में माहिर, मनपसंद केंद्र निर्धारित कराने के लिए लुटाता है पैसा वैन में एक पोर्टेबल जेनेरेटर, कई सेट लैपटॉप और एक प्रिंटर रहता है उपलब्ध हाजीपुर : बिहार मेधा घोटाला का किंगपिन बच्चा राय ‘बच्चा’ नहीं वरन काफी ‘सयाना’ है. इंटरमीडिएट कॉलेज खोल कर कई लोग जब विद्यार्थियों को अपने […]

इंटर टॉपर घोटाला. पैसा वसूलने में माहिर, मनपसंद केंद्र निर्धारित कराने के लिए लुटाता है पैसा

वैन में एक पोर्टेबल जेनेरेटर, कई सेट लैपटॉप और एक प्रिंटर रहता है उपलब्ध
हाजीपुर : बिहार मेधा घोटाला का किंगपिन बच्चा राय ‘बच्चा’ नहीं वरन काफी ‘सयाना’ है. इंटरमीडिएट कॉलेज खोल कर कई लोग जब विद्यार्थियों को अपने कॉलेज तक लाने के लिए इधर-उधर भटक रहे हैं, तब यह बच्चा अपनी एसी कार में बैठ कर बच्चों को ब्लैकमेल करता है. वह भी अकड़ के साथ, तो जरूर कोई बात होगी उसके अंदर. बच्चों एवं अभिभावकों से जबरन पैसा वसूलने वाला ‘बच्चा’ इसके एवज में काफी मेहनत करता है और रुपये लुटाता है.
परीक्षा केंद्र निर्धारित कराने से होती है तैयारी : परीक्षा में अपने विद्यार्थियों की टॉप रैंकिग कराने के लिये सबसे पहले मनपसंद परीक्षा केंद्र निर्धारित कराने के लिए भागदौड़ शुरू होती है. परीक्षा केंद्र निर्धारण में जिला शिक्षा पदाधिकारी कार्यालय के अलावा समिति कार्यालय को भी खुश करना पड़ता है.
मनपसंद केंद्र मिलने के बाद यहां अपने कॉलेज के बच्चों को कदाचार कराने की व्यवस्था करता है. इसके लिए केंद्राधीक्षक को भी खुश करना पड़ता है.
केंद्र पर लगाये जाते हैं विशेषज्ञ : जहां कॉलेज का परीक्षा केंद्र होता है, वहां अपने विद्यार्थियों को चोरी कराने के लिए जिस विषय की परीक्षा हो, उसके विशेषज्ञ को बुलाया जाता है. चूंकि कॉलेज के पास अपने योग्य शिक्षक नहीं हैं, इसलिए उन्हें प्रबंधन हायर करता है. परीक्षा केंद्र पर पहुंच ये विशेषज्ञ प्रश्नों का जवाब तैयार कर उन्हें प्रबंधन को देते हैं और प्रबंधन उसे अपने सभी विद्यार्थियों तक पहुंचाता है.
केंद्र के अधीक्षक से लेकर पानी पिलानेवाला तक होते हैं मैनेज्ड : वीआर कॉलेज का जहां कहीं भी परीक्षा केंद्र होता है, वहां के केंद्राधीक्षक से लेकर वीक्षक और पानी पिलाने वाला सब मैनेज्ड होता है. परीक्षा भवन में प्रश्नपत्र बंटते ही वहां पानी पिलाने वाला सवाल लेकर बाहर खड़े प्रबंधन तक पहुंचाता है और प्रबंधन उसे विषय के विशेषज्ञों को देकर जवाब तैयार कराता है.
मारुति वैन में होती है तैयारी : परीक्षा केंद्र की अगल-बगल में एक मारुति वैन खड़ा होता है, जो प्रबंधन की चलती-फिरती दुकान है. इस वैन में एक पोर्टेबल जेनेरेटर, कई सेट लैपटॉप और एक प्रिंटर उपलब्ध होता है. जैसे ही सवाल बाहर आता है, विषय के विशेषज्ञ वैन में बैठ कर सवाल का जवाब बोलते हैं और कंप्यूटर ऑपरेटर उसे टाइप करता है. जैसे ही जवाब तैयार होता है. प्रिंटर से उसकी उतनी कॉपी निकाली जाती है, जितने उस कॉलेज के विद्यार्थी परीक्षा दे रहे हैं. फिर उसे छात्रों तक पहुंचायी जाती है.
लैपटॉप और प्रिंटर से जल्दी में होता है काम : परीक्षा के दौरान नकल कराने में लैपटॉप और प्रिंटर का इस्तेमाल इसलिए होता है कि इससे सब कुछ जल्दबाजी में निबटाया जा सके. हाथ से उत्तर तैयार करने पर ज्यादा पन्ने लगाने होते हैं जबकि टाइप किये गये उत्तरों के अक्षरों को छोटा-बड़ा कर उसे एक ही पन्ने के दोनों ओर समाहित कर सकने में सहूलियत होती है. एक पन्ने में सारे प्रश्नों का उत्तर तैयार कर प्रबंधन के द्वारा लगाये गये लोग ही अंदर पहुंचा देते हैं और फिर तयशुदा शिक्षक या पानी पिलाने वाले लोग उन्हें सभी संबंधित कमरे तक पहुंचा देते हैं.
बाहर बिल्कुल खामोशी और अंदर चलता खेल : परीक्षा के दौरान वीआर कॉलेज के परीक्षा केंद्रों पर बाहर से बिल्कुल खामोशी छायी रहती है. यहां न तो खिड़कियों पर कोई ताक-झांक करता है और न ही केंद्र के बाहर ही कोई मंडराता है. जब भी कोई वरीय अधिकारियों का दाखिला होता है, तो उन्हें काफी शांति मिलती है और वह संतुष्ट होकर लौट जाते हैं. इधर, सब कुछ अंदर-ही-अंदर खेल चलता रहता है. कमरों की जांच के दौरान सभी का चिट वीक्षक ही समेट लेते हैं और उन्हें तुरंत हटा देते हैं. जांच अधिकारी के लौटते ही छात्रों को पुन: दे दिया जाता है.
कॉपी जांच केंद्र निर्धारित कराने की भागदौड़ : परीक्षा केंद्र से कॉपी के वज्रगृह में जमा होने के बाद भले ही दूसरे कॉलेज के संचालक सो जाते हों, लेकिन वीआर कॉलेज के संचालक जांच केंद्र के निर्धारण के लिए बोर्ड की भाग-दौड़ करते हैं. यह अकारण नहीं है कि वैशाली जिले के सभी परीक्षा केंद्रों की कॉपी कैमूर-भभुआ आदि जिलों में गये, जबकि वीआर कॉलेज की कॉपी पटना में जांची गयी.
कॉपी बदलने का खेल पुराना : परीक्षा में लिखी गयी कॉपी बदलने की परंपरा काफी पुरानी है और इस खेल में परीक्षा केंद्र, वज्रगृह, बोर्ड ऑफिस, कॉपी जांच केंद्र भी शामिल होते हैं. कॉपी कब, कहां और कैसे बदली जायेगी, यह हमेशा एक जैसा नहीं होता. कभी जिले के वज्रगृह, तो कभी जांच केंद्र के वज्रगृह यह सब मोल-जोल पर निर्भर करता है.
सबसे अंत में होता है बोर्ड का खेल : यह खेल सबसे ज्यादा रोमांचक है. परीक्षा में लिखी गयीं कॉपियों पर परीक्षक ने भले ही कुछ भी अंक दिये हों, अंक पत्र पर क्या अंकित होगा, यह बोर्ड और कॉलेज के संचालक तय करते हैं. कई बार यह प्रमाणित हो चुका है कि कॉपी में 8 अंक पानेवाले छात्र के अंकपत्र में 88 अंक दर्ज हैं. परीक्षाफल प्रकाशन के बाद स्क्रूटनी के नाम पर भी अंक बढ़ाने का खेल वर्षों से चलते रहा है, जिसका लाभ पहुंचवाले व्यक्ति उठाते रहे हैं.
अकड़ के साथ वसूलता है पैसे : जिन परीक्षार्थियों के बेहतर परिणाम के लिए वह इतनी भागदौड़ करता है, उनसे वह अकड़ के साथ रुपये भी वसूलता है. वीआर कॉलेज में कोई निर्धारित शुल्क नहीं है, न ही शुल्क के मामले में राज्य सरकार या बोर्ड के अनुदेशों का पालन होता है. यहां से इंटर पास करने के लिए विद्यार्थियों से 5 हजार से लेकर 85 हजार रुपये तक वसूले जाते हैं. जो छात्र अगल-बगल के हैं,
उनसे केवल पांच हजार रुपये वसूले जाते हैं और फिर परीक्षा केंद्र के मैनेजमेंट, कॉपी में पैरवी आदि के नाम पर किस्त में वसूली की जाती है जबकि आयातित छात्रों से एकमुश्त राशि वसूली की जाती है.
अब टॉपर नहीं बनने की लोग मांग रहे दुआ
आयातित छात्रों का होगा टोटा
बिहार मेधा घोटाला की जड़ वीआर कॉलेज समेत तमाम संबद्ध कॉलेजों के मुख्य स्रोत आयातित छात्र हैं यानी इस जिले के बाहर के वैसे छात्र, जो आर्थिक रूप से मजबूत हैं, इन्हीं छात्रों के बल पर ये कॉलेज फल-फूल रहे हैं. यदि इन कॉलेजों से अब तक पास छात्र-छात्राओं के आवासीय पता का सत्यापन किया जाये, तो स्पष्ट होगा कि ये छात्र केवल परीक्षा में सम्मिलित होते हैं. उन्होंने कभी वर्ग कक्षा में भाग नहीं लिया. मेधा घोटाला का परदाफाश होने के बाद अब इन कॉलेजों में आयातित छात्रों का टोटा होगा और इसका असर उसके परिणाम पर भी पड़ेगा.
टॉपर की जलालत के बाद संभलने लगे अभिभावक
कल तक दूसरे के टॉप स्थिति से सीख लेकर अपने बच्चों को टॉपर बनने के लिए प्रेरित करने और इसके लिए जुगाड़ लगानेवाले अभिभावक अब अपने बच्चों के टॉपर नहीं बनने की दुआं मांग रहे हैं.
इस साल बिहार विद्यालय परीक्षा समिति की इंटर कला के वार्षिक परीक्षा की टॉपर रूबी राय की जलालत के बाद अब लोग संभलने लगे हैं. अपने बच्चों की क्षमता जांच कर ही अभिभावक परीक्षा में उसके अंक बढ़ाने की लोग वकालत करने लगे हैं. कई माता-पिता अपने बच्चों के शिक्षक से मिल कर उन्हें प्रथम श्रेणी से ही पास कराने और टॉपर न कराने की बात कर रहे हैं.
मेधावी छात्रों में है हर्ष
मेधा घोटाला का परदाफाश होने से वैसे छात्र-छात्राओं में हर्ष है, जो मेधा के बावजूद पिछड़ जाते हैं. उनमें अब यह आसा जगी है कि सरकार इस घोटाले की जड़ तक पहुंचेगी और इसका समूल नाश करेगी. राज्य में एक बार फिर मेधावी छात्र-छात्राओं का जलवा होगा. कई छात्र-छात्राओं ने कहा कि वे कई टॉपरों से बेहतर होने के बावजूद केवल इसलिये पिछड़ गये कि उनकी पहुंच बिहार विद्यालय परीक्षा समिति तक नहीं थी.
इंटर टॉपर घोटाला : हाजीपुर. इंटर परीक्षा के टॉपर की दुर्गति देख कर बाजार में तरह-तरह की चर्चाओं का बाजार गरम है. कुछ लोग इस घोटाले के खुलासे से खुश है और उन्हें आशा है कि यह समूल नाश होगा और बिहार में बेहतर शैक्षणिक वातावरण का निर्माण होगा.
वहीं, कुछ लोग इसे दिखावा करार दे रहे हैं. अब यह भविष्य के गर्भ में है कि इसका क्या असर होगा और चल रही कार्रवाई किस अंजाम तक पहुंचेगी.

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