वैशाली : हिंदू मुसलिम एकता का प्रतीक स्थल है मिराजी की दरगाह. वैशाली गढ़ से 300 मीटर दक्षिण-पश्चिम में एक विशाल स्तूप है, जिसकी ऊंचाई सामान्य सतह से 30 फुट है और व्यास 145 है. इसके ऊपर महान सूफी संत काजी मीरन सुतारी का कब्र है, जो स्थानीय लोगों में मीराजी की दरगाह के नाम से प्रसिद्ध है. इस मजार की बगल में एक हिंदू संत का भी समाधि स्थल है, जहां हिंदू धर्म के लोग पूजा-अर्चना करते है. यहां प्रतिवर्ष चैत सप्तमी से तीन दिनों का मेला लगता है,
जो बावन मेला के नाम से प्रसिद्ध है. इस मेले में हिंदू-मुसलिम दोनों इकट्ठे होते हैं और साथ मिल कर मजार पर चादर चढ़ाते है तथा हिंदू संत की समाधि की पूजा-अर्चना करते हैं. यह स्थान हिंदू मुसलिम एकता का अनूठा उदाहरण है. एक ही स्थल पर हिंदू एवं मुसलिम समुदाय के लोग जिस धार्मिक सहिष्णुता एवं भाईचारे के साथ मिलकर खुशियां के साथ त्योहार मनाते हैं, वह अद्भूत है. सबसे पहले हरिकटोरा मठ के महंत खाकी बाबा के द्वारा पहली चादर सप्तमी के दिन चढ़ाई जाती थी.
इसके बाद तीन दिनों तक दोनों समुदायों के लोगों द्वारा चादर चढ़ाने का सिलसिला चलता रहता है. उसी परंपरा की अनुरूप बुधवार को भी सप्तमी के दिन हरिकटोरा मठ की चादर मजार पर चढ़ायी गयी. दूसरी ओर प्रखंड मुख्यालय स्थित हनुमान मंदिर से गाजे-बाजे के साथ महावीर झंडा निकाला गया, जो वैशाली ब्लॉक चौक, नया टोला, गोला चौक, हरिकटोरा मठ होते हुए मिराजी का दरगाह पहुंचा, वहां समाधि स्थल पर स्थापित कर पूजा-अर्चना की गयी.
वैशाली ने जहां पूरी दुनिया को अहिंसा शांति एवं विश्व बंधुत्व का संदेश दिया. वहीं अपनी इसी संस्कृति के अनुरूप हिंदू-मुसलिम एकता की भी मिसाल कायम कर रही है मीराजी की दरगाह. आज भी हिंदू पुजारी केदार चौबे एवं रहमान साह के खानदान के लोग इस स्थल पर अाराधना करते हैं. लोगों की ऐसी धारणा है कि यहां सच्चे दिल से मन्नतें मांगने पर मनोवांछित फल प्राप्त हो जाती है.