गोरौल : आइएसओ 9001-2008 प्रमाणित राजकीय प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र गोरौल संसाधनों की कमी का दंश झेल रहा है. यह अस्पताल एनएच-77 सड़क के सटे होने कारण दुर्घटनाग्रस्त लोगों के लिए संजीवनी के समान है. यह अस्पताल कई प्रखंडों के लोगों को चिकित्सा सुविधा उपलब्ध करा रहा है.
इस छह बेड के अस्पताल में आठ बेड लगा कर इलाज किया जा रहा है. बड़ी संख्या में पहुंचने वाले मरीजों को देखने के लिए यहां हर समय केवल एक चिकित्सक ही रहते हैं. किसी के छुट्टी पर चले जाने के बाद दूसरे चिकित्सक को दिन-रात मरीजों को देखना पड़ता है. यहां कोई सर्जन नहीं है और महिला चिकित्सक भी नहीं हैं.
केवल तीन चिकित्सकों का ही सहारा : अस्पताल में पांच चिकित्सकों के पद सृजित हैं, जिनमें तीन एमबीबीएस सहित उच्च डिग्रीधारी अनुभवी चिकित्सकों की पदस्थापना की गयी है, जबकि दो पद अभी खाली हैं. आयुष चिकित्सक भी एक पदस्थापित हैं. तीन चिकित्सकों को अनुबंध पर रखना है, जो अभी खाली है. नर्स का एक पद ही सृजित तथा पदस्थापित होने के कारण जरूरत के मुताबिक उप स्वास्थ्य केंद्रों पर पदस्थापित नर्सों का सहारा लेना पड़ता है.
नहीं हैं महिला चिकित्सक और सर्जन : ए ग्रेड नर्स का पद सृजित नहीं होने के कारण यहां ए ग्रेड नर्स नहीं हैं. परिधापक का एक पद और महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता के दो पदों में दोनों खाली चल रहे हैं. फार्मासिस्ट के दो पद हैं, जिसमें एक खाली है. सबसे आश्चर्य की बात तो यह है कि आइएसओ प्रमाणित इस अस्पताल में महिला चिकित्सक और सर्जन एक भी नहीं हैं. कुल मिलाकर कहा जाये तो किसी रोग के विशेषज्ञ यहां नहीं हैं.
अल्ट्रासाउंड की सुविधा नहीं : कुछ जांच व एक्स-रे की सुविधा तो उपलब्ध है, लेकिन अल्ट्रासाउंड की सुविधा नहीं होने के कारण मरीजों को बाहर से अल्ट्रासाउंड कराना पड़ता है. बताया गया है कि इंडोर चिकित्सा के लिए 22 तथा आउटडोर के लिए 44 तरह की दवा उपलब्ध हैं. इस स्थिति में भी प्रतिदिन 150-200 मरीज इलाज कराने यहां आते हैं. सवाल यह उठता है कि बिना महिला चिकित्सकों के रहते प्रसव कैसे कराया जाता है, जबकि एएनएम भी जरूरत के मुताबिक यहां पदस्थापित नहीं हैं.
ऑपरेशन की सुविधा काफी दिनों से बंद : अस्पताल की प्रबंधक रेणु कुमारी ने बताया कि यहां सर्जन चिकित्सक उपलब्ध नहीं रहने के कारण जिले से सर्जन को बुलवा कर महिलाओं का बंध्याकरणऑपरेशन कराया जाता है. यदि यहां पर सर्जन चिकित्सक होते तो प्रतिदिन दो-चार नसबंदी का ऑपरेशन होता और भीड़ नहीं लगती. प्रबंधक ने बताया कि यहां भरती मरीजों को पहले भोजन दिया जाता था, लेकिन भोजन के आपूर्ति बंद हो जाने के कारण मरीजों का भोजन अब बंद है.
उन्होंने बताया कि इस अस्पताल में शौचालय, पेयजल आदि की व्यवस्था है, जबकि चहारदीवारी न होने के कारण आवारा जानवरों का आना-जाना लगा रहता है, जिससे मरीजों में इंफेक्सन का भय बना रहता है.
एंबुलेंस व्यवस्था में भी है कमी : अस्पताल में अभी एक मात्र 102 नंबर की एंबुलेंस है, लेकिन इसका क्षेत्र बड़ा होने के कारण एक एंबुलेंस से काफी परेशानी होती है. एनएच-77 से सटे होने के कारण बराबर दुर्घटनाग्रस्त मरीज यहां आते रहते हैं, जिन्हें समय पर रेफर अस्पतालों में पहुंचाना मुश्किल हो रहा है. कम-से-कम तीन एंबुलेंस की आवश्यकता है.
क्या कहते हैं अधिकारी
सूचना मिली है कि इस अस्पताल को 30 बेड वाली पूर्ण सुविधा से लैस किया जायेगा. यहां नये अस्पताल भवन बनाने के लिए जमीन की मापी भी हो चुकी है, लेकिन अभी तक कार्य शुरू नहीं हुआ है. संसाधनों की कमी के बावजूद हमेशा बेहतर स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने का प्रयास किया जाता है.
रेणु कुमारी
अस्पताल प्रबंधक, गोरौल
क्या कहते हैं अस्पताल प्रभारी
इस आइएसओ अस्पताल में एक ट्रामा सेंटर की आवश्यकता है, जिससे आपातकाल में भी मरीजों को अच्छी सुविधा उपलब्ध करायी जा सके. संसाधन, चिकित्सक, स्वास्थ्य कर्मियों की कमी के कारण काफी परेशानी हो रही है. इसके लिए सिविल सर्जन कार्यालय को लिखा गया है.
डाॅ एसके गुप्ता
प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी