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चिकित्सक ही नहीं तो कैसे मिले उपचार

चिंताजनक. 66 में 17 चिकित्सक ही हैं पदस्थापित, डेपुटेशन पर कार्यरत हैं 18 चिकित्सक हाजीपुर : हर रोज हजारों मरीजों का इलाज करने वाला जिले का सदर अस्पताल चिकित्सकों और स्वास्थ्य कर्मियों के अभाव में खुद बीमार हो चला है. आधारभूत संरचना और मैन पावर की कमी के चलते यहां बेहतर इलाज की उम्मीदों पर […]

चिंताजनक. 66 में 17 चिकित्सक ही हैं पदस्थापित, डेपुटेशन पर कार्यरत हैं 18 चिकित्सक

हाजीपुर : हर रोज हजारों मरीजों का इलाज करने वाला जिले का सदर अस्पताल चिकित्सकों और स्वास्थ्य कर्मियों के अभाव में खुद बीमार हो चला है. आधारभूत संरचना और मैन पावर की कमी के चलते यहां बेहतर इलाज की उम्मीदों पर पानी फिर रहा है. जिले भर से यहां हर रोज जुटने वाली मरीजों की भीड़ को इलाज के नाम पर बस जैसे-तैसे निबटाया जा रहा है. अस्पताल में रोगियों के इलाज का आलम यह है कि चिकित्सक किसी भी मरीज पर दो मिनट का भी समय नहीं देते. ओपीडी में लंबी प्रतीक्षा के बाद अपना नंबर आने पर जब परेशान हाल मरीज डॉक्टर के कक्ष में प्रवेश करता है, तो कायदे से उसकी तकलीफ भी नहीं सुनी जाती.
मरीज अपनी बीमारी और परेशानी की पूरी बात बता भी नहीं पाता कि उसे चलता कर दिया जाता है. रोगियों के इलाज में पेश आने वाली दिक्कतों के बारे में पूछे जाने पर अस्पताल के एक चिकित्सक कहते हैं कि अस्पताल में जो व्यवस्था है, उसमें ढंग से इलाज क्या होगा. बस समझिए कि हमलोग मरीजों का डिस्पोजल करते हैं.
कहने को जिला अस्पताल, लेकिन कर्मी अनुमंडल अस्पताल से भी कम : 1972 में वैशाली जिला बनने के बाद इस अनुमंडलीय अस्पताल को जिला अस्पताल का दर्जा तो मिल गया, लेकिन उस हिसाब से न चिकित्सकों और कर्मियों के पद सृजित किये गये न अन्य सुविधाएं बढ़ायी गयीं. सदर अस्पताल में 12 चिकित्सा पदाधिकारी और एक उपाधीक्षक समेत नियमित चिकित्सकों के कुल 13 पद शुरू से स्वीकृत रहे हैं. इधर, हाल के समय में जब अस्पताल को पांच सौ बेड वाला बनाने का सरकार ने निर्णय लिया, तो चिकित्सा पदाधिकारियों के 66 पद स्वीकृत किये गये हैं. इनमें आज की तिथि में 17 चिकित्सक ही पदस्थापित हैं. इनके अलावा लगभग 18 चिकित्सक डेपुटेशन पर हैं. अस्पताल में ए-ग्रेड नर्स के दो सौ पद स्वीकृत किये गये हैं. इनमें महज 28 की तैनाती है. फार्मासिस्ट के स्वीकृत 10 पदों में पांच ही तैनात हैं. ड्रेसर के तीन और ओटी असिस्टेंट के तीन पदों पर कोई भी पदस्थापित नहीं है.
प्रतिनियुक्ति पर टिकी है अस्पताल की व्यवस्था : सदर अस्पताल में प्रतिनियुक्त चिकित्सकों और कर्मियों को यदि यहां से विरमित कर दिया जाये, तो अस्पताल पंगु हो जायेगा. अभी अस्पताल में डेपुटेशन पर लाये गये चिकित्सकों और पारा मेडिकल कर्मियों के सहारे ही यहां की चिकित्सा व्यवस्था टिकी हुई है. इन्हें विरमित होने की सूरत में अस्पताल का ओपीडी, प्रसव, ऑपरेशन से लेकर दवा वितरण तक का काम ठप पड़ जायेगा. ओपीडी के शिशु रोग, नेत्र रोग, चर्म रोग, दंत रोग आदि विभाग में प्रतिनियुक्त चिकित्सकों द्वारा ही मरीजों का इलाज हो पा रहा है. चर्म रोग विभाग तो चिकित्सक के अभाव में लगभग एक साल से बंद पड़ा है.
इस विभाग में प्रतिनियुक्ति पर आये चिकित्सक के वीआरएस लेकर जाने के बाद से यहां ताला लटका है. प्रसूति विभाग में एएनसी लैब, प्रसव ओटी, इमरजेंसी ओटी के सहायक से लेकर बेहोशी के डॉक्टर तक डेपुटेशन पर कार्यरत हैं. नियमित और प्रतिनियुक्त डॉक्टरों को मिलाकर सदर अस्पताल में अभी लगभग 35 चिकित्सक मौजूद हैं, लेकिन मरीजों की तादाद और अस्पताल की आवश्यकता के अनुपात में यह संख्या काफी कम पड़ रही है. अस्पताल में डॉक्टरों और पारा मेडिकल स्टाफ की कमी का खामियाजा यहां आनेवाले मरीजों को भुगतना पड़ रहा है.
क्या कहते हैं अधिकारी
सदर अस्पताल में आवश्यकता के लिहाज से संसाधनों का अभाव है. हमारे पास मैन पावर की कमी है. अस्पताल की जरूरतों के बारे में विभाग को लिखा जा चुका है. फिलहाल जो संसाधन हैं, हम उसी के बूते मरीजों को बेहतर सेवा देने का हर संभव प्रयास कर रहे हैं. अस्पताल में पहले से स्थिति काफी बेहतर हुई है.
डॉ यूपी वर्मा, उपाधीक्षक, सदर अस्पताल

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