सुपौल : रिश्वतखोरी का जिले के अधिकारियों के साथ चोली-दामन का संबंध है. यही कारण है कि वर्ष 2006 से जो यह सिलसिला चालू हुआ, उसके बाद आज तक कई अधिकारी घूसखोरी के मामले में रंगे हाथ निगरानी के हत्थे चढ़ चुके हैं. फिर चाहे वो जिले के सबसे बड़े कार्यालय के अधिकारी हो या पुलिस प्रशासन या फिर जन प्रतिनिधि ही.
कोई भी घूसखोरी के इस मामले से अछूते नहीं रह गये हैं. ताजा मामला बुधवार का है. जब डीइओ मो हारूण को निगरानी ने रंगे हाथ 10 हजार घूस लेते गिरफ्तार कर लिया है. जाहिर है इतने पैमाने पर घूसखोरी के मामले में अधिकारी के गिरफ्तारी ने सुपौल के दामन को दागदार किया है. सूत्रों का तो ये भी कहना है कि जिले में निगरानी के द्वारा जितनी गिरफ्तारियां की गयी,
अन्य किसी जिलों में उतनी गिरफ्तारियां नहीं हुई है. लिहाजा यह कहना सच ही होगा कि सुपौल में भ्रष्टाचार की गंगा बह रही है. निगरानी के लगातार कार्रवाई के बाद भी अधिकारी घूस लेना नहीं छोड़ रहे हैं और वो इसे अपना अधिकार मानते हैं. इससे आये दिन कोई न कोई निगरानी के हत्थे चढ़ रहा है.
अब तक के निगरानी के हत्थे चढ़े अधिकारी पर गौर करे, तो यह सिलसिला वर्ष 2006 से शुरू हुई थी. सबसे पहले जनवरी 2006 में इंदिरा आवास के नाम पर व्यापक पैमाने पर अवैध उगाही करने को लेकर डीआरडीए में निगरानी ने छापेमारी किया था. जिसमें उगाही की गयी अवैध राशि के अलावा अधिकारी भी दबोचे गये थे, पथ निर्माण विभाग के कार्यपालक अभियंता केपी सिंह भी रंगे हाथों घुस लेते निगरानी के हत्थे चढ़ा था, पिपरा में पदस्थापित थानाध्यक्ष सत्यनारायण सिंह को निगरानी ने उनके आवास पर 10 हजार घुस लेते रंगे हाथों गिरफ्तार किया था, सदर थाना क्षेत्र के कर्णपुर में पंचायत के मुखिया बद्री प्रसाद ठाकुर को निगरानी ने घुस लेते रंगे हाथों पकड़ा था. फरवरी 2014 में किसनपुर के पंचायत सचिव देव सुंदर लाल दास को निगरानी ने रंगे हाथ घुस लेते गिरफ्तार किया था. दिसंबर 2015 में त्रिवेणीगंज में पदस्थापित बीइओ लालकुंद कुमार को निगरानी ने रिश्वत लेते रंगे हाथ पकड़ा था, दिसंबर 2016 में वीरपुर अनुमंडल कोषागार के लेखापाल राम पुकार राय को निगरानी ने रंगे हाथ घुस लेते गिरफ्तार किया था. जनवरी 2017 को त्रिवेणीगंज के बीडीओ शैलेश कुमार केसरी को रंगे हाथों घुस लेते निगरानी ने धर दबोचा था. अप्रैल 2017 को त्रिवेणीगंज थाने में ही पदस्थापित एएसआइ विमल होरो को सुपौल से घुस लेते रंगे हाथों निगरानी ने पकड़ा था.
निगरानी के द्वारा लगातार घूसखोर पदाधिकारियों के गिरफ्तारी के बाद भी ये सिलसिला कम होने का नाम नहीं हो रहा है. ऐसे में ये कहना सही है कि जिले में भ्रष्टाचार परवान पर है और बिना घूसखोरी के आम जनों का काम मुश्किल प्रतीत होता है.