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बड़ी लाइन की सुविधा अब तक नहीं

परेशानी. भेड़-बकरी की तरह सफर करने को विवश हैं जिले के लोग जिले के 22 लाख की आबादी आज भी आधुनिक रेल सेवा से पूरी तरह वंचित है. बड़ी रेल लाइन नहीं बनने से स्थानीय यात्रियों को आज भी दूरगामी ट्रेनों का सफर करने के लिए सहरसा जाना पड़ता है. सुपौल : आजादी के तकरीबन […]

परेशानी. भेड़-बकरी की तरह सफर करने को विवश हैं जिले के लोग

जिले के 22 लाख की आबादी आज भी आधुनिक रेल सेवा से पूरी तरह वंचित है. बड़ी रेल लाइन नहीं बनने से स्थानीय यात्रियों को आज भी दूरगामी ट्रेनों का सफर करने के लिए सहरसा जाना पड़ता है.
सुपौल : आजादी के तकरीबन सात दशक बीत जाने के बावजूद जिले वासियों को बड़ी रेल लाइन की ट्रेन पर सफर करने का सपना साकार नहीं हो सका है. नतीजा है कि छोटी लाइन की ट्रेनों के सहारे ही जिले वासियों को आवागमन करना पड़ रहा है. सहरसा-फारबिसगंज रेलखंड में अब भी अंग्रेजों के जमाने के छोटी लाइन पर चलने वाली ट्रेन का संचालन किया जाता है. जिसमें यात्रा करना काफी कठिनाई भरा साबित होता है. आदम जमाने के इन बोगियों में बिजली, पानी आदि जैसी कोई भी सुविधा उपलब्ध नहीं है.
वहीं मात्र छह जोड़ी ट्रेनों का इस रेल खंड में परिचालन किया जा रहा है. इन ट्रेनों में भेड़ बकरियों के तरह लोग लद कर यात्रा करने के लिए विवश हैं. इस रेलखंड में सुरक्षा का भी कोई इंतजाम नहीं है. वहीं ट्रेनों की गति का औसत मात्र 12 से 15 किलोमीटर प्रति घंटा है. यही वजह है कि सहरसा से सुपौल की महज 28 किलोमीटर की दूरी तय करने में इन ट्रेनों को दो घंटे से अधिक समय लग जाता है. लोग इस बात को लेकर खासे नाराज हैं कि जहां देश में बुलेट व सेमी बुलेट ट्रेन के परिचालन की बात की जा रही है.
वहीं जिले के 22 लाख की आबादी आज भी आधुनिक रेल सेवा से पूरी तरह वंचित है. बड़ी रेल लाइन नहीं बनने से स्थानीय यात्रियों को आज भी दूरगामी ट्रेनों का सफर करने के लिये सहरसा जाना पड़ता है. जहां से वे बड़ी रेल लाइन की ट्रेनों की सुविधा प्राप्त कर पाते हैं. बड़ी रेल लाइन का निर्माण नहीं होने से जिले का व्यवसाय व आर्थिक उन्नति भी बाधित हो रहा है. जिसके कारण लोगों में नाराजगी देखी जा रही है. वहीं स्टेशन पर यात्री सुविधा का घोर अभाव रहने के कारण यात्रियों को ट्रेन पकड़ने के लिए इंतजार के दौरान काफी कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है.
13 वर्ष के बाद भी नहीं हुआ अमान परिवर्तन : सहरसा-फारबिसगंज रेलखंड में अमान परिवर्तन की स्वीकृति मिलने के बाद वर्ष 2003 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा जिले के निर्मली अनुमंडल मुख्यालय में रेल महासेतु एवं बड़ी रेल लाइन निर्माण कार्य का शिलान्यास किया गया था.
केंद्र सरकार के इस ऐतिहासिक पहल से लोगों में काफी हर्ष का माहौल व्याप्त था. साथ ही लोगों में इस बात की उम्मीदें भी जगी थी कि अब शीघ्र ही उन्हें बड़ी रेल लाइन की ट्रेन पर सफर करने का अवसर प्राप्त होगा. लेकिन विडंबना देखिये आमान परिवर्तन के नाम पर सहरसा-फारबिसगंज रेलखंड पर 20 जनवरी 2012 को मेगा ब्लॉक कर सहरसा और थरबिटिया के बीच ही ट्रेन का परिचालन किया जा रहा है. इस रेलखंड में वर्तमान में पांच-पांच डिब्बों की ट्रेन दौड़ायी जा रही है. जो यात्री और इलाके की आबादी के अनुपात में काफी कम है.
वहीं सहरसा-थरबिटिया रेलखंड पर चलने वाली ट्रेनों के एक भी डिब्बे में साफ-सफाई और रोशनी का कोई प्रबंध नहीं है. रेलवे के अधिकारी व जनप्रतिनिधियों की उदासीनता का नतीजा है कि शिलान्यास के 13 वर्ष बीत जाने के बावजूद अमान परिवर्तन का कार्य पूरा नहीं हो सका.
यात्री सुविधाओं का है घोर अभाव
मेगा ब्लॉक की घोषणा होते ही रेल प्रशासन सहरसा-फारबिसगंज रेलखंड के प्रति पूरी तरह लापरवाह बना है. सुपौल रेलवे स्टेशन पर यात्री सुविधा का घोर अभाव बना हुआ है. सबसे बड़ी बात यह है कि मुक्कमल साफ-सफाई नहीं होने के कारण रेलवे स्टेशन पर एक पल भी खड़ा होना मुश्किल साबित होता है. स्टेशन पर शुद्ध पेयजल की व्यवस्था नदारत है.
स्टेशन के उत्तरी और दक्षिणी छोड़ पर लगा चापाकल महीनों से खराब है. अंग्रेज के जमाने में निर्मित पानी टंकी साफ-सफाई के अभाव में दूषित जल की आपूर्ति कर रहा है. जो पीने योग्य बिल्कुल नहीं है. यात्री अपनी प्यास बुझाने के लिए बोतल बंद पानी खरीदने के लिए विवश हैं. वहीं बोतलबंद पानी क्रय करने में अक्षम लोगों को पानी के लिए स्टेशन चौक स्थित विभिन्न होटल व दुकानों का चक्कर लगाना पड़ता है.
ट्रेनों में बोगी कम रहने और रोशनी नहीं रहने की शिकायत यात्री करते हैं.
यात्रियों की इस समस्या से वरीय अधिकारियों को अवगत कराया गया है. बड़ी रेल लाइन की सुविधा उपलब्ध होने के बाद ही इस रेलखंड की स्थिति में सुधार होने की संभावना है. खराब पड़े दोनों चापाकल को दुरुस्त करने का निर्देश दिया गया है.
प्रदीप कुमार भारती, स्टेशन मास्टर

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