सुपौल : मशरफ की मौत के मामले में छातापुर पीएचसी, छातापुर पुलिस और सदर अस्पताल प्रशासन की कार्य प्रणाली सवालों के घेरे में है. लोग पूछ रहे हैं कि आखिर छातापुर पीएचसी के चिकित्सक ने जब अज्ञात घोषित जख्मी मशरथ को सदर अस्पताल रेफर किया तो उन्होंने सदर अस्पताल प्रशासन से उपचार की व्यवस्था के संबंध में क्यों नहीं बात की. वहीं छातापुर थानाध्यक्ष ने अज्ञात घोषित मशरफ को पुलिस अभिरक्षा में उपचार के लिए क्यों नहीं भेजा.
स्थानीय लोगों का मानना है कि अगर अज्ञात मशरफ के साथ कोई चौकीदार भी होता तो उसका समुचित उपचार हो सकता था. वहीं सबसे बड़ा और अहम सवाल यह है कि 22 लाख की आबादी के स्वास्थ्य का जिम्मा संभालने वाला सदर अस्पताल प्रबंधन के पास जख्मी के उपचार की क्या कोई सुविधा नहीं थी.आखिर मशरथ को रोगी कल्याण समिति के मद से राशि खर्च कर बड़े अस्पताल में उपचार के लिए क्यों नहीं रेफर किया गया.
उजागर हुई छातापुर पुलिस की लापरवाही : बस चालक व कर्मियों द्वारा पीएचसी के बाहर छोड़ दिये जाने के बाद जख्मी अधेड़ को देख कर पीएचसी के गार्ड हरि नारायण यादव ने तत्काल कुछ लोगों के सहयोग से चिकित्सक तक पहुंचाया. ड्यूटी पर तैनात चिकित्सक द्वारा मशरफ राम का प्राथमिक उपचार कर उसकी गंभीर स्थिति को देखते हुए तत्काल छातापुर थानाध्यक्ष को सूचित किया गया. चिकित्सक की सूचना पर पहुंची पुलिस ने जख्मी का मुआयना किया और उसे चिकित्सक के भरोसे छोड़ कर चलते बने.
उसके बाद मशरफ राम की पल-पल होती गंभीर स्थिति को देख कर चिकित्सक ने उसे बेहतर इलाज के लिए सदर अस्पताल भेज दिया. जानकारी के अनुसार छातापुर से जख्मी अधेड़ को एंबुलेंस से सदर अस्पताल लाया गया था.लेकिन साथ आये लोग जख्मी को सदर अस्पताल में भगवान भरोसे छोड़ कर चले गये. अब सवाल उठता है कि आखिर छातापुर पुलिस अज्ञात जख्मी को पुलिस अभिरक्षा में उपचार के लिए क्यों नहीं सदर अस्पताल तक भेजना उचित समझा.