सुपौल : कोसी इलाके की अर्थव्यवस्था खेती पर निर्भर है. यहां की लगभग 80 फीसदी आबादी की रोजी-रोटी खेती व पशुपालन से चलती है. सिंचाई व्यवस्था के कमजोर होने के कारण यहां कृषि पैदावार मानसून आधारित है. कोसी इलाके में स्टेट बोरिंग की व्यवस्था ना के बराबर है. साथ ही नहरों की स्थिति भी अच्छी नहीं है. कई नदियां बरसाती बन गयी हैं. अधिकांश कुएं भी बेकार साबित हो रहा है. ऐसे में किसानों के पास पटवन के लिए मानसून के अलावा निजी बोरिंग ही एक मात्र विकल्प है, जो काफी खर्चीला है. डीजल व कृषि यंत्रों की बढ़ती कीमतें किसानों की कमर तोड़ रहे हैं. वहीं इस वर्ष असमय औसत से अधिक हुई बारिश ने एक बार फिर किसानों को भारी परेशानी में डाल दिया है. जिस कारण किसान अपनी किस्मत पर रो रहे हैं. बाढ़ व सुखाड़ यहां के लोगों की नियति बन गई है. कोसी सहित अन्य सहायक नदियों की उफान ने हजारों एकड़ की खेती व घर-गृहस्थी को अपनी चपेट में ले लिया.
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दुर्भाग्य: मौसम की मार ने किसानों की बढ़ायी चिंता , रोजी-रोटी की बनी समस्या
सुपौल : कोसी इलाके की अर्थव्यवस्था खेती पर निर्भर है. यहां की लगभग 80 फीसदी आबादी की रोजी-रोटी खेती व पशुपालन से चलती है. सिंचाई व्यवस्था के कमजोर होने के कारण यहां कृषि पैदावार मानसून आधारित है. कोसी इलाके में स्टेट बोरिंग की व्यवस्था ना के बराबर है. साथ ही नहरों की स्थिति भी अच्छी […]
समस्या पर बोले किसान : किसान बलदेव यादव ने बताया कि सूबे में 2009 व 2010 में भी सूखे के हालात पैदा हुए थे. वर्ष 2008 व 2012 में भी कम बारिश के कारण खेती पर असर पड़ा था. बाढ़ व बेमौसम बारिश के पानी की उपलब्धता को सहेजना सीख लें तो ऐसे संकट का सामना किया जा सकता है.
किसान संजय कुमार ने कहा कि कुछ दिनों से कमजोर बारिश होने से किसान उत्पादन को लेकर चिंतित थे. हालांकि पिछले साल की तरह इस साल भी आलू की फसल कुछ कम लगने की आशंका है. इसका कारण आलू बीज की कीमत में ज्यादा बढ़ोतरी है.
रघुनंदन यादव ने बताया कि पिछले साल किसानों को अच्छे किस्म के आलू का बीज 9 से 10 रुपये तक मिल गया था. जबकि आलू का बीज लगभग 25 से 30 रुपये तक मिल रहा है. बीते साल की तुलना में इस वर्ष मानसून अभी जल्दी आया है, तो किसान भी खेत की तैयारी में लग गए हैं. खेतों में अधिक पानी लग जाने से आलू की फसल में परेशानी होगी.
साजन कुमार ने कहा कि वर्षा फसलों के लिए अभिशाप बन गई है. आसमान से बरसते यह पानी की बूंदे किसानों के आंखों के आंसू बन गए है. दरअसल रबी फसल के बुआई का समय आ चुका है. बीते दिनों हुई बारिश ने इस बार खेतों को पूरी तरह से तहस नहस कर दिया.
रवींद्र कुमार यादव ने बताया कि इस वर्ष किसानों के साथ मौसम ने दगा दे दिया. जिस कारण जहां खरीफ फसलों का उत्पादन बेहतर नहीं रहा. साथ ही रबी फसल के ससमय बुआई पर भी ग्रहण लगा हुआ है.
किसान छोटे लाल यादव का कहना है कि किसानों द्वारा गेहूं, आलू सहित अन्य फसलों की बुआई के लिए अक्तूबर माह तक खेतों की जुताई प्रारंभ कर दिया जाता था. खेतों में पानी रहने के कारण अब तक खेतों की जुताई नहीं की जा सकी है.
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