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भक्ति के सामने झुकी मां वन देवी, मंदिर में रहना किया स्वीकार

भक्ति के सामने झुकी मां वन देवी, मंदिर में रहना किया स्वीकार – ऐतिहासिक धरोहरों में शुमार है हरदी-दुर्गा स्थान – ऐतिहासिक पुरुष वीर लोरिक ने यहीं परास्त किया था बेंगठा चमार को- फोटो-01,02,कैप्सन-निर्माणाधीन मंदिर,प्रतिनिधि, सुपौलदशकों से खुले आसमान के नीचे रहने वाली मां वन देवी ने भक्तों से प्रसन्न होकर आखिरकार मंदिर में रहना […]

भक्ति के सामने झुकी मां वन देवी, मंदिर में रहना किया स्वीकार – ऐतिहासिक धरोहरों में शुमार है हरदी-दुर्गा स्थान – ऐतिहासिक पुरुष वीर लोरिक ने यहीं परास्त किया था बेंगठा चमार को- फोटो-01,02,कैप्सन-निर्माणाधीन मंदिर,प्रतिनिधि, सुपौलदशकों से खुले आसमान के नीचे रहने वाली मां वन देवी ने भक्तों से प्रसन्न होकर आखिरकार मंदिर में रहना स्वीकार कर लिया. जिला मुख्यालय से सटा हरदी-दुर्गा स्थान जिले के ऐतिहासिक धरोहरों में शुमार है. वीर लोरिक मनियार की धरती हरदी दुर्गा स्थान क्षेत्र व आस-पास के लोगों के लिए दशकों से आस्था का केंद्र बना हुआ है. यहां की विशेषता रही है कि यहां स्थापित मां वन दुर्गा की पूजा- आराधना खुले आसमान के नीचे की जाती है. बुजुर्गों व जानकारों का कहना है कि खुले आसमान के नीचे रहनी वाली वन दुर्गा के सिर पर कई बार भक्तों ने छत (मंदिर) बनाने का प्रयास किया. लेकिन कभी सफल नहीं हो सका. जब भी किसी भक्त ने अपनी मुराद पूरी होने पर मां वन देवी के स्थान पर मंदिर निर्माण की कोशिश की. कुछ ना कुछ ऐसी घटना हुई कि भय से यहां मंदिर बनाने की जेहमत नहीं उठायी. लेकिन भक्तों की सुन कर मां वन देवी जन सहयोग से बन रहे मंदिर में रहना स्वीकार कर लिया है. यहीं वजह है कि नेपाल के इंजीनियरों के सहयोग से यहां पांच मंजिला मंदिर के निर्माण की आधारशिला रखी जा चुकी है. मंदिर का एक मंजिल अब तक बन कर तैयार हो गया है.क्या है ऐतिहासिक पृष्ठभूमिप्राचीन काल से खुले स्थान में स्थापित मां वन देवी को लेकर कई तरह की भावनाएं जुड़ी है. बुजुर्गों का मानना है कि महाभारत काल में अज्ञात वास के दौरान पांडवों ने रात्रि प्रवास के दौरान मां वन देवी की स्थापना कर उनकी पूजा-अर्चना की थी. कुछ लोगों का ये भी मानना है कि इसी स्थान पर दो वीर लोरिक मनियार व बेंगठा चमाड़ के बीच कई दिनों तक मल्ल युद्ध चलता रहा था. उसी दौरान वीर लोरिक द्वारा यहां मां वन देवी की स्थापना की गयी थी. तब जा कर लोरिक मनियार ने बेंगठा चमाड़ को युद्व में परास्त किया था. तब से आज तक मां वन देवी के प्रति लोगों के आस्था यहां से जुड़ी हुई है. यही वजह है कि इस स्थान को वीर लोरिक की धरती भी कहते हैं. जिसकी कई गाथा यहां के इतिहासकारों द्वारा लिखित इतिहास के पन्नों में दर्ज है. यही वजह है कि प्रत्येक वर्ष कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर यहां भव्य मेले का आयोजन होता है. जिसमें बेंगठा चमार व लोरिक मनियार की भव्य प्रतिमा स्थापित की जाती है.भक्ति के सामने झुकी मां वन देवीमां वन देवी हरदी दुर्गा स्थान मेला कमेटी के सदस्य जगदीश प्रसाद यादव, ह्रदय नारायण मुखिया, देवेंद्र प्रसाद यादव, जीवन पाठक, अरुण यादव, निर्मल यादव, जितेंद्र कुमार सिंटू, प्रभाष चंद्र यादव, अमल कुमार यादव, शंकर मंडल, राम चंद्र कामत, डोमी यादव, सज्जन मुखिया, प्रशम प्रकाश आदि ने बताया कि स्थानीय लोगों की शुरु से ही यहां मंदिर बनाने की इच्छा रही थी. लेकिन व्यक्तिगत तौर पर कई बार निर्माण के दौरान हुए हादसों के कारण मंदिर नहीं बन सका. व्यक्तिगत तौर पर मंदिर निर्माण में विफल रहने पर कमेटी के सदस्यों ने सामुहिक रूप से मंदिर के निर्माण हेतु निर्णय लिया. जिसके लिए हवन यज्ञ कर मंदिर के निर्माण हेतु मां वन देवी को मनाने के लिए पूजा-पाठ का निर्णया लिया गया. मई 2014 में मां वन देवी को मनाने के लिए भव्य पूजा-पाठ का आयोजन किया गया. उसके उपरांत इस मंदिर के निर्माण की आधारशिला रखी गयी. निर्माण कार्य प्रारंभ होने के बाद एक मंजिल बन कर तैयार भी हो गया है. पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने की मांगजिले के आस्था का केंद्र व अपनी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के लिए विख्यात हरदी-दुर्गा स्थान को पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने की शुरू से मांग उठती रही है. इसके लिए यहां के लोगों द्वारा कई बार प्रयास भी किया गया है. कई बार नेताओं ने यहां आकर इस स्थल को पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने का आश्वासन भी दिया. लेकिन इस स्थान को पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने की प्रक्रिया सरकारी फाइलों में ही दफन हो कर रह गयी.

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