सुपौल : कुसहा त्रसदी के सात वर्ष बीत जाने के बाद भी कोसी क्षेत्र के लोग उस विनाशकारी मंजर को पूरी तरह भुला नहीं पाये हैं. 18 अगस्त, 2008 को कुसहा के समीप कोसी तटबंध टूटने के बाद ऐसी तबाही मची कि देखते ही देखते हजारों घर कोसी की तेज धारा में बह गये. सैकड़ों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी, तो कोसी मैया सड़क, पुल-पुलिया को भी अपने साथ बहा ले गयीं. हजारों एकड़ उपजाऊ भूमि बालू के ढेर में तब्दील हो गयी. कोसी की इस विभीषिका को राष्ट्रीय आपदा घोषित किया गया.
पर, नतीजा सिफर ही रहा. इलाके के लोग आज भी उस दृश्य को याद कर सिहर उठते हैं. त्रसदी के दौरान तबाह व बरबाद हुए लोगों को अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कोसी यात्र से उम्मीद बंधी है. वर्ष 2008 की तुलना में कोसी की स्थिति भले ही बेहतर हुई है. पर, लोगों के लिए कुसहा त्रसदी के जख्मों को भूल पाना मुश्किल है.
राज्य सरकार द्वारा पहले से बेहतर कोसी निर्माण के वादे किये गये, कई योजनाएं चलायी गयीं, विश्व बैंक की मदद से कई सड़कों का निर्माण कराया गया, करोड़ों रुपये की लागत से क्षतिग्रस्त सड़क, पुल-पुलियों की मरम्मत शुरू की गयी. सड़क, पुल-पुलियों की स्थिति तो पहले से बेहतर हुई, लेकिन त्रसदी के दौरान ध्वस्त नहरों के माध्यम से आज भी किसानों के खेतों तक पानी नहीं पहुंचाया जा सका है.
नमो से है उम्मीद
कुसहा त्रसदी जैसी विपदा को ङोल चुके कोसी वासियों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सहरसा आगमन से उम्मीद की किरण नजर आ रही है. लोगों का मानना है कि बाढ़ के दौरान जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तो उन्होंने प्रभावित परिवारों के लिए पर्याप्त मात्र में राहत सामग्री व राशि भेजी थी. इससे यह जाहिर होता है कि उनके मन में कोसी वासियों के प्रति स्नेह है.
इसी लिए लोग उनसे उम्मीद लगाये बैठे हैं. वहीं पूर्वी व पश्चिमी कोसी तटबंध के अंदर बसे लोगों को भी आशा है कि इतने वर्षो से कोसी की विभीषिका ङोल रहे लोगों के कल्याण के लिए प्रधानमंत्री कुछ घोषणा कर सकते हैं. अब देखना यह होगा कि प्रधानमंत्री परिवर्तन यात्र के दौरान आर्थिक रूप से पिछड़े इस इलाके के लोगों को क्या सौगात देते हैं.