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खुलासा : आमदनी से अधिक बचत करते हैं आइसीडीएस डीपीओ

सुपौल: विगत दो महीनों से लगातार चर्चा में रहे आइसीडीएस विभाग के डीपीओ रमेश कुमार ओझा की मुश्किलें थमने का नाम नहीं ले रही हैं. इस बार विवाद का कारण स्वयं डीपीओ के घोषणा पत्र के रूप में सामने आया है. डीपीओ द्वारा जारी संपत्ति ब्यौरा के अनुसार उनकी सालाना बचत सालाना आय से काफी […]

सुपौल: विगत दो महीनों से लगातार चर्चा में रहे आइसीडीएस विभाग के डीपीओ रमेश कुमार ओझा की मुश्किलें थमने का नाम नहीं ले रही हैं. इस बार विवाद का कारण स्वयं डीपीओ के घोषणा पत्र के रूप में सामने आया है.
डीपीओ द्वारा जारी संपत्ति ब्यौरा के अनुसार उनकी सालाना बचत सालाना आय से काफी अधिक है. लिहाजा सवाल उठना भी लाजिमी है कि आखिर ये पैसे आये कहां से. मामले का खुलासा पब्लिक विजिलेंस कमेटी के सचिव अनिल कुमार सिंह ने किया है. उन्होंने कहा है कि जिले में पदस्थापन के उपरांत डीपीओ की संपत्ति कई गुणा तक बढ़ी है. लेकिन इसके पीछे का कारण सामने नहीं आ सका है. लिहाजा इसकी उच्च स्तरीय जांच की आवश्यकता है.
आय से अधिक बचत की घोषणा
डीपीओ श्री ओझा ने राज्य सरकार द्वारा जारी निर्देश के तहत अपने संपत्ति का ब्यौरा विभाग को समर्पित किया है. जिसमें वर्ष 2014-15 में उनके खाते में 04 लाख 22 हजार तथा उनकी पत्नी सुमित्र देवी के खाते की राशि व जेवरात मिलाकर 21 लाख रुपये दर्शाये गये हैं. जबकि ऐसेट व लेविलिटी प्रपत्र में वर्ष 2013-14 में एक पुत्री को दर्शाया तक नहीं गया है. इसका मतलब है कि डीपीओ श्री ओझा ने वर्ष 2014-15 में परिवार के लिए महज 58 हजार रुपये ही खर्च किये. मालूम हो कि डीपीओ श्री ओझा का सालाना वेतन 4.80 लाख रुपये है तथा उनकी पत्नी एक गृहिणी है. डीपीओ श्री ओझा जिला मुख्यालय में एक निजी आवास में किराये पर रहते हैं. बावजूद उनके द्वारा इस वर्ष 14 लाख रुपये की बचत की गयी.
बिना एलआइसी ले लिया ऋण
घोषणा पत्र के अनुसार डीपीओ श्री ओझा ने सरकारी बीमा कंपनी एलआइसी से 01 लाख 17 हजार रुपये का ऋण लिया है. लेकिन हैरत की बात है कि उनके नाम कोई भी एलआइसी की बीमा का जिक्र नहीं किया गया है. ऐसे में बिना बीमा के एलआइसी ने यह कर्ज कैसे दिये इसका जवाब स्वयं डीपीओ या फिर एलआइसी ही दे सकती है.
जांच की मांग
मामले का खुलासा करने वाले पब्लिक विजिलेंस कमेटी के सचिव अनिल कुमार सिंह ने मामले की निगरानी अन्वेशन ब्यूरो तथा आयकर विभाग से जांच कराने की मांग की है. उन्होंने कहा है कि डीपीओ द्वारा घोषित संपत्ति के अनुसार उसमें तीन गुणा से अधिक का इजाफा हुआ है. जबकि सच्चई इससे भी अधिक अवैध संपत्ति अजर्न की हो सकती है. निगरानी जांच के उपरांत ही खुलासा हो सकता है.
पति-पत्नी लखपती, बेटे-बेटी ठन-ठन गोपाल
जिले में स्थापना के वक्त डीपीओ श्री ओझा व उनकी पत्नी हजारी क्लब में शामिल थे और अब लखपती क्लब में शामिल हैं. उनका एक बेटा व दो बेटी हैं, लेकिन हैरत की बात है कि इनमें से किसी के भी नाम एक रुपये तक जमा नहीं है. ना बैंक खाता, ना एक रुपये की आमदनी और ना ही एक रुपये का खर्च. हैरत की बात है कि वर्ष 2013-14 में एक पुत्री का नाम भी घोषणा-पत्र से नदारद था. परिवार के किसी सदस्य के पास वाहन के नाम पर एक बाइक तक नहीं है.
गृहिणी पत्नी ने डीपीओ को पछाड़ा
संपत्ति अजिर्त करने के मामले में डीपीओ श्री ओझा की पत्नी ने उन्हें काफी पीछे छोड़ दिया है. वर्ष 2011-12 में जहां उनके पास 02 लाख 35 हजार रुपये नगदी व जेवर थे, वह 2012-13 में बढ़ कर 02 लाख 85 हजार रुपये हो गये. जबकि 2013-14 में यह आंकड़ा 04 लाख 10 हजार रुपये तक पहुंच गया. वर्ष 2014-15 में बैंक खाते की राशि व जेवरात की कीमत 16 लाख 80 हजार रुपये की छलांग के साथ 21 लाख पर पहुंच गयी.

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