अपने व्यक्तित्व व उपलब्धियों के कारण
आज भी हैं लोकप्रिय
सुपौल : ”मैं रहूं या ना रहूं, बिहार आगे बढ़ कर रहेगा” ये कथन है भारत सरकार के भूतपूर्व रेल मंत्री व मिथिलांचल के सपूत ललित नारायण मिश्र का. जिन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान एक जन सभा को संबोधित करते हुए उक्त बातें कही थी. कांग्रेस संगठन व सरकार के विभिन्न पदों पर रहते हुए स्व मिश्र ने देश, राज्य व मिथिलांचल के विकास के लिए जो ऐतिहासिक योगदान दिया उसे कदापि भुलाया नहीं जा सकता. विकास पुरुष की उपाधि से अलंकृत श्री मिश्र समरसता व सामाजिक सौहार्द के बड़े हिमायती थे.
उनका जीवन गरीब व पिछड़ों को उनका वाजिब हक दिलाने के प्रति प्रतिबद्ध रहा. यही वजह है कि उनके विचार व कार्य कलाप में गांधी, नेहरू व विनोबा के सिद्धांत परिलक्षित होते रहे. बिहार को पिछड़ापन से उबाड़ने में उन्होंने बड़ी भूमिका निभायी. बिहार का शोक कोसी से पीड़ितों को निजात दिलाने, रेल का जाल बिछाने व कई कल कारखाने की स्थापना के साथ विकास के नये आयाम गढ़ने वाले श्री मिश्र आज भी विशेष कर कोसी व मिथिलांचल वासियों के जेहन में जीवंत हैं.
53 वर्षों तक की देश की सेवा
सुपौल जिले के बलुआ बाजार निवासी श्री मिश्र का जन्म 02 फरवरी 1922 को उनके ननिहाल बाजितपुर (मुजफ्फरपुर) में हुआ था. उन्होंने उच्च विद्यालयी शिक्षा स्थानीय विलियम्स स्कूल, इंटर सीएम कॉलेज दरभंगा व स्नातक की शिक्षा टीएनजे कॉलेज भागलपुर से ग्रहण की थी.
किशोरावस्था से ही रहे राजनीति में सक्रिय. सन् 1937 में महज 15 वर्ष के उम्र में श्री मिश्र ने अखिल भारतीय छात्र परिषद सदस्य के रूप में राजनीतिक जीवन प्रारंभ किया. 1939 में वे कांग्रेस के विद्यार्थी सदस्य बने. स्वाधीनता आंदोलन में भी उन्होंने सक्रिय भूमिका निभायी और जेल भी गये. 1950 में वे कांग्रेस कमेटी के सदस्य चुने गये. 1952 में श्री मिश्र पहली बार संसद सदस्य के रूप में निर्वाचित हुए. तब से लोकसभा व राज्यसभा का उनका सफर 1975 तक जारी रहा.
इस दौरान 1954 में उन्होंने लोक सभा में कोसी का मुद्दा उठाते हुए बांध निर्माण हेतु 150 करोड़ की राशि मंजूर करायी. भारत सेवक समाज संस्था के माध्यम से उन्होंने श्रमदान द्वारा कोसी तटबंध निर्माण कार्य प्रारंभ कराया. 1960 में वे केंद्र सरकार में पहली बार श्रम नियोजन व योजना विभाग में उप मंत्री बने. बाद में उन्होंने वित्त, रक्षा, विदेश व्यापार आदि विभागों के मंत्री पद को सुशोभित किया. सन् 1973 में वे रेल मंत्री बने. तीन जनवरी 1975 को रेल मंत्री के रूप में समस्तीपुर में बड़ी रेल लाइन के उद्घाटन समारोह के दौरान हुए बम विस्फोट में आहत हुए ललित बाबू अमर शहीद हो गये. तबसे उनकी पुण्यतिथि बलिदान दिवस के रूप में हर वर्ष मनायी जाती है. मौके पर उनके पैतृक गांव बलुआ बाजार स्थित उनके समाधि स्थल पर राजकीय समारोह आयोजित किया जाता है.
लंबी है उपलब्धियों की फेहरिस्त
कोसी नदी को नियंत्रित करने, नहरों का निर्माण, मिथिला चित्र कला को देश-विदेश में पहचान, दरभंगा व पुर्णियां में वायु सेना हवाई अड्डा, लखनऊ से आसाम तक लेटरल रोड की मंजूरी, मैथिली को साहित्य अकादमी में स्थान दिलाना, मिथिला विश्व विद्यालय की स्थापना के अलावा रेल मंत्री के रूप में लौकहा-झंझारपुर, भपटियाही-फारबिसगंज, कटिहार से बाराबंकी, कटिहार-जोगबनी, सकरी-हसनपुर, जयनगर-सीतामढ़ी आदि रेल लाइनों का निर्माण व स्वीकृति उनकी उपलब्धियों की सूची में शामिल हैं.
विदेश व्यापार मंत्री के रूप में भी उन्होंने 150 रुग्ण सूती मिलों का अधिग्रहण कर लाखों कामगारों का जीवन सुरक्षित किया. किसानों के लाभ हेतु उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर जूट कॉरपोरेशन की स्थापना की. स्व मिश्र विदेशी पूंजी के उपयोग व विदेशी सामग्री की आयात के विरोधी थे. यही वजह है कि उन्होंने देश में सार्वजनिक क्षेत्र के छोटे-बड़े उद्यमों को विकसित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया. व्यक्तित्व के किस्से व उपलब्धियों की फेहरिस्त काफी लंबी है.