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सबकी दावेदारी, सब के तर्क
सीवान सीवान सीट पर अभी भाजपा का कब्जा है. इसके व्यास देव प्रसाद ने पिछले विधानसभा चुनाव में राजद के अवध बिहारी चौधरी को भारी मतों के अंतर से पराजित किया था. प्रसाद यहां से लगातार दूसरी बार विधायक चुने गये थे, जबकि अवध बिहारी सिंह उनसे पहले पांच बार यहां से विधायक निर्वाचित हुए […]
सीवान
सीवान सीट पर अभी भाजपा का कब्जा है. इसके व्यास देव प्रसाद ने पिछले विधानसभा चुनाव में राजद के अवध बिहारी चौधरी को भारी मतों के अंतर से पराजित किया था. प्रसाद यहां से लगातार दूसरी बार विधायक चुने गये थे, जबकि अवध बिहारी सिंह उनसे पहले पांच बार यहां से विधायक निर्वाचित हुए थे. चौधरी के समर्थक इस बार भी उनका चुनाव लड़ना तय मान रहे हैं. हालांकि भाजपा के और भी संभावित उम्मीदवार हैं.
पिछले विधानसभा चुनाव में यहां से कांग्रेस के उम्मीदवार रहे श्रीकांत लोकसभा चुनाव के वक्त भाजपा में शामिल हो गये थे. नौ माह पहले उनकी हत्या हो गयी. उनकी पत्नी सुनीता देवी को भी भाजपा के दावेदार के रूप में देखा जा रहा है. भाकपा माले से नैमुद्दीन अंसारी की फिर दावेदारी है. पिछले चुनाव में वह 3.47 फीसदी वोट के साथ तीसरे स्थान पर रहे थे. महागंठबंधन की तरफ से कौन दावेदार होगा, यह अभी तय होना बाकी है.
अब तक
अवध बिहारी चौधरी यहां से पांच बार विधायक रहे हैं. बीजेपी तीन बार, आरजेडी दो बार, जेडी व बीजेएस दो-दो बार विजयी रहे.
इन दिनों
जदयू का हर घर दस्तक अभियान चल रहा है. राजद व भाजपा प्रखंड स्तर पर बैठक कर अपनी पैठ जमाने में लगे हैं.
अभी सीट बंटवारे पर नजर
जीरादेई
जीरादेई सीट से वर्तमान में भाजपा की आशा देवी (पाठक) विधायक हैं. पिछले चुनाव में उन्होंने भाकपा माले के अमरजीत कुशवाहा को मतों के बड़े अंतर से हराया था. यहां से अमरजीत की एक बार फिर मजबूत दावेदारी मानी जा रही है. आशा देवी विधायक हैं. लिहाजा भाजपा से उनके फिर चुनाव लड़ने की पूरी संभावना है. उधर, भाजपा के राजीव कुमार सिंह उर्फ बिट्टु सिंह भी क्षेत्र में अपनी पकड़ बनाने में जुटे हैं. पूर्व मंत्री शिवशंकर यादव पिछले चुनाव में यहां राजद के उम्मीदवार थे. उनके निधन के बाद उनके भाई चंद्रिका यादव इस पार्टी से टिकट की दौड़ में शामिल हैं. वह प्रखंड प्रमुख भी हैं. कांग्रेस से चुनाव लड़े डॉ विनय बिहारी सिंह की क्षेत्र में राजनीतिक सक्रियता कम नजर आ रही है. यहां महागंठबंधन से जदयू के प्रमुख दावेदारों पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष रमेश सिंह कुशवाहा का भी नाम लिया जा रहा है.
अब तक
यहां से कांग्रेस पांच बार,आरजेडी व निर्दलीय दो-दो बार, एसडब्ल्यूए, जेडीयू, जेएनपी व बीजेपी एक-एक बार जीते.
इन दिनों
भाजपा अपनी मंडलस्तरीय बैठक कर संगठन को मजबूत बनाने में जुटी है. वहीं, जदयू का घर दस्तक अभियान चला है.
टिकट की दावेदारी में कई नाम
दरौंदा
दरौंदा विधानसभा सीट से पिछली बार जदयू की जगमातो देवी जीती थीं. उन्होंने राजद के विनोद कुमार सिंह को मतों के भारी अंतर से हराया था. यह उनकी ऐतिहासिक जीत थी, जिसमें उन्हें 44.30 प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि सिंह को महज 16.22 फीसदी. यहां कांग्रेस और भाकपा माले ने भी उम्मीदवार दिये थे. कांग्रेस ने पूर्व मंत्री विजय शंकर दूबे एवं भाकपा माले ने जावेद बेग को उम्मीदवार बनाया था. हालांकि के दोनों में से किसी की जमानत तक नहीं बची थी. चुनाव के एक वर्ष बाद जगमातो देवी का निधन हो गया. इसके बाद हुए उपचुनाव में उनकी पुत्रवधु कविता कुमारी जदयू के सिंबल पर चुनाव जीतीं. नये तालमेल में समीकरण बदल गया है. राजग की घटक लोजपा यहां सीट मांग सकती है. पार्टी के जिलाध्यक्ष अभिषेक सिंह खुद भी दावेदार हैं. बीजेपी से जितेंद्र स्वामी भी दावा पेश कर रहे हैं.
अब तक
पिछली बार यहां से निर्वाचित हुई जगमाता देवी की जगह उनकी पुत्रवधु विधायक हैं. लोजपा भी इस सीट पर दावा कर सकती है.
इन दिनों
राजग से भाजपा व लोजपा की दावेदारी है. यहां महागठबंधन व राजग के बीच आमने -सामने की संघर्ष ह7ोगा.
उलट-फेर की चल रही राजनीति
महाराजगंज
महाराजगंज विधानसभा सीट के लिए पांच साल में दो बार चुनाव हुए. 2010 के चुनाव में यहां से जदयू के दामोदर सिंह विधायक चुने गये थे. उन्होंने राजद के मानिकचंद राय को हराया था. तब पूर्व मंत्री अजीत कुमार सिंह कांग्रेस से चुनाव लड़े थे. वह अब राजद में हैं. दामोदार सिंह के निधन होने पर साढ़े तीन साल बाद यहां उपचुनाव कराया गया. तब तक भाजपा-जदयू गंठबंधन टूट चुका था. लिहाजा भाजपा ने डॉ देवरंजन को और जदयू ने दामोदर सिंह की पत्नी सोनमती देवी को चुनाव में उतारा. सोनमती देवी को हार का सामना करना पड़ा. कांग्रेस ने उपचुनाव में कुंतल कृष्ण को उम्मीदवार बनाया था.
वह एक बार फिर टिकट के दावेदार हैं. उधर, जदयू से दामोदर सिंह के भतीजे विश्वंभर सिंह व प्रो अभय सिंह इस सीट के प्रमुख दावेदार माने जा रहे हैं. लोकसभा चुनाव में भाजपा का यहां वोट प्रतिशत बढ़ा. उसे यहां बढ़त भी मिली. राजद का भी वोट प्रतिशत बढ़ा. भले वह दूसरे स्थान पर रहा. जदयू यहां कमजोर हुआ. 2010 के चुनाव में जहां उसे (भाजपा के साथ रहते हुए) 36.12 फीसदी वोट मिले थे, वहीं लोकसभा चुनाव में उसकी झोली में केवल 22.16 फीसदी वोट आये.
अब तक
इस बार दामोदर सिंह के भतीजे विश्वंभर व प्रो अभय सिंह भी टिकट की दौड़ में. पूर्व मंत्री अजीत कुमार सिंह कांग्रेस छोड़ राजद में शामिल.
इन दिनों
जदयू का हर घर दस्तक कार्यक्रम अंतिम चरण में है. भाजपा बूथ स्तर पर बैठक कर चुनावी तैयारी में जुटी हुई है.
सुरक्षित सीटों पर संघर्ष पुराना
दरौली (अजा)
दरौली को 2005 में परिसीमन के तहत अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित किया गया. इससे पहले मैरवा सीट सुरक्षित थी. इस विधानसभा क्षेत्र का सबसे बड़ा मुद्दा बाढ़ की त्रसदी है. इस सीट पर पिछली बार भाजपा को कामयाबी मिली थी. इसके उम्मीदवार रामनारायण मांझी ने भाकपा माले के राजदेव सिंह को हराया था. लोकसभा चुनाव में भी भाजपा पहले और भाकपा (माले) दूसरे नंबर पर रही थीं. इसमें जदयू के अलग होने के बाद भाजपा के वोट प्रतिशत में 1.93 फीसदी की गिरावट आयी, जबकि भाकपा माले को विधानसभा चुनाव के मुकाबले 3.15 प्रतिशम कम वोट मिले. लोकसभा चुनाव में राजद और जदयू दोनों का प्रदर्शन निराशाजनक रहा. इस बार महागंठबंधन में यह सीट किसे मिलती है, अभी यह देखना बाकी है. वहीं, भाकपा माले से पूर्व विधायक सत्यदेव राम यहां से फिर टिकट की दावेदारी पेश कर सकते हैं.
अब तक
लोकसभा चुनाव में भाजपा, भाकपा माले, राजद और जदयू इन सभी पार्टियों के वोट प्रतिशत में गिरावट आयी.
इन दिनों
भाजपा बैठक कर बूथ तक संगठन को मजबूत बनाने में जुटी है. वहीं, जदयू ने हर घर दस्तक अभियान चलाया है.
जोड़-तोड़ में लगे हैं नेता
रघुनाथपुर
रघुनाथपुर विधानसभा क्षेत्र का स्थानीय राजनीतिक समीकरण पांच वर्ष में बदल गया है. पिछले चुनाव में भाजपा के विक्रम कुंअर यहां से विधायक चुने गये थे. उन्होंने भाकपा माले के अमरनाथ यादव को भारी शिकस्त दी थी. कुंवर इस बार भी टिकट के दावेदार हैं. वहीं, राजद के हमीद रजा खां भी दुबारा चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं. लोकसभा चुनाव में राजद ने इस क्षेत्र में भाजपा को कड़ी टक्कर दी थी. दोनों के बीच वोटों का अंतर भी बहुत कम था. लिहाजा राजद की दावेदारी को उसके नेता ज्यादा वजनदार बता रहे हैं. कांग्रेस में भी इस सीट से चुनाव लड़ने की मंशा व्यक्त की जा रही है, जबकि इसके टिकट पर पिछली बार चुनाव लड़ने वाले प्रो चंद्रमा सिंह अब बीजेपी में हैं और वहां टिकट मांग रहे हैं. भाकपा माले से पूर्व विधायक अमरनाथ यादव चुनाव लड़ सकते हैं, लेकिन अभी तसवीर पूरी तरह साफ नहीं है.
अब तक
पिछली बार चुनाव में खड़े प्रो चंद्रमा सिंह कांग्रेस छोड़ भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गये हैं.
इन दिनों
वाम दल केंद्र और राज्य सरकार की नीतियों के खिलाफ जनता को गोलबंद कर रहे हैं. भाजपा -जदयू का संपर्क कार्यक्रम जारी. कर पहुंचने की कोशिश की. भाकपा माले क्षेत्रीय मुद्दे को लेकर संघर्षरत है.
हर दल में लंबी सूची
बड़हरिया
बड़हरिया सीट पर पिछले चुनाव में जदयू को सफलता मिली थी. इसके श्याम बहादुर सिंह ने राजद में मोहम्मद मोबिन को वोटों के बहुत बड़े अंतर से हराया था. उन्हें 46.65 फीसदी वोट मिले थे, जबकि मोबिन को महज 24.83 फीसदी. हालांकि तब भाजपा जदयू के साथ थी. लोकसभा चुनाव में जब दोनों अलग हुए, तो इस क्षेत्र में भाजपा का वोट प्रतिशत विधानसभा चुनाव में गंठबंधन को मिले वोट से 2.31 फीसदी ज्यादा रहा, जबकि जदयू महज 8.05 फीसदी वोट के साथ तीसरे स्थान पर रहा. हालांकि इस बार रालोसपा और हम भी इस सीट की दौड़ में होंगे.
उधर, पिछले विस चुनाव में जदयू ने राजद के जिस मोबिन को हराया था, वह इस बार भी टिकट की दावेदारी पेश कर रहे हैं. कांग्रेस के फजले हक भी इस दौड़ में शामिल हैं. लिहाजा अभी यही देखना दिलचस्प होगा कि महागंठबंधन व राजग में यह सीट किस दल को मिलती है. शामिल किस दल को मिलता है,उसके बाद ही चुनावी तस्वीर साफ होगी.भाकपा माले की मालती राम फिर एक बार चुनाव में ताल ठोक सकती हैं.
अब तक
लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी का वोट प्रतिशत बढ़ा, जबकि जनता दल-यू के वोट प्रतिशत में गिरावट आयी.
इन दिनों
भारतीय जनता पार्टी का महासंपर्क अभियान जारी. जदयू का हर घर दस्तक कार्यक्रम अंतिम चरण में.
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