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सीवान में बंध्याकरण करानेवाली महिलाओं को नहीं मिलतीं सुविधाएं
ऑपरेशन के लिए दिन भर खाली पेट रह कर डॉक्टर का करना पड़ता है इंतजार अपने पैसे से खरीदनी पड़ती है दवा और करानी पड़ती है जांच गुरुवार को एक घंटे ओटी टेबल पर सोने के बाद वार्ड में लौटीं महिलाएं सीवान : राष्ट्रीय कार्यक्रम परिवार नियोजन के अंतर्गत महिलाओं के होने वाले बंध्याकरण में […]
ऑपरेशन के लिए दिन भर खाली पेट रह कर डॉक्टर का करना पड़ता है इंतजार
अपने पैसे से खरीदनी पड़ती है दवा और करानी पड़ती है जांच
गुरुवार को एक घंटे ओटी टेबल पर सोने के बाद वार्ड में लौटीं महिलाएं
सीवान : राष्ट्रीय कार्यक्रम परिवार नियोजन के अंतर्गत महिलाओं के होने वाले बंध्याकरण में आवश्यक सुविधाएं नहीं मिलने से महिलाओं को काफी परेशानी होती है. कई सालों से विभाग ने परिवार नियोजन के तहत बंध्याकरण के लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया है. विभाग के हाकिमों के पास बस एक ही रटा-रटाया जवाब होता है कि लोग बंध्याकरण कराना चाहते ही नहीं हैं.
लेकिन सच्चई ठीक इसके विपरीत है. विभाग के कोई भी अधिकारी इस कार्यक्रम को हल्के रूप में लेते हैं. महिलाएं बंध्याकरण कराने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों से आती तो हैं, लेकिन उन्हें ऑपरेशन के लिए बहुत परेशान होना पड़ता है. सुबह जब वे पीएचसी या सदर अस्पताल में बंध्याकरण कराने के लिए पहुंचती हैं, तो डॉक्टर द्वारा जांच करने के बाद उन्हें पैथोलॉजी जांच कराने की एक सूची थमा दी जाती है. इनमें एचआइवी, एचबीएसजी, एचबी, बीटीसीटी तथा शूगर की जांच होती है.
सदर अस्पताल में तो कुछ जांच नि:शुल्क हो जाती है, लेकिन अन्य सरकारी अस्पतालों में तो मरीजों को प्राइवेट में जांच करानी पड़ती है. इसमें उसके एक हजार तक रुपये तक खर्च हो जाते हैं. उसके बाद ऑपरेशन के लिए कैटगेट, बीपी ब्लेड तथा यहां तक कि डिसपोजल सीरिंज भी मरीज को ही खरीदनी पड़ती है. कर्मचारियों का कहना है कि 10 एमएल का सीरिंज की सप्लाइ नहीं है.
ऑपरेशन के बाद अस्पताल में दवा उपलब्ध रही, तो ठीक है, नहीं तो मरीज को दवा की परची थमा दी जाती है. गुरुवार को सदर अस्पताल में पांच महिलाएं सुबह नौ बजे ही खाली पेट बंध्याकरण कराने के लिए आयीं. उनकी सभी जांच होने के बाद कर्मचारियों ने चार महिलाओं को ऑपरेशन करने के लिए ओटी के टेबल पर लिटा दिया. करीब एक घंटे तक जब सजर्न नहीं आए, तो चारों महिलाओं को वार्ड में लाकर सुला दिया गया. करीब तीन बजे के बाद जब सजर्न आये तो एक कंपाउंडर से बेहोश करा कर महिलाओं का बंध्याकरण कराया गया.जब सदर अस्पताल की हालत यह है, तो ग्रामीण क्षेत्रों के सरकारी अस्पतालों की हालत क्या होगी, इससे सहज अंदाज लगाया जा सकता है.
क्या कहते हैं पदाधिकारी
इमरजंसी ड्यूटी वाले डॉ मुकेश कुमार को बंध्याकरण करना था. दो बजे दुर्घटना के दो मरीजों के आ जाने से समय से बंध्याकरण करने नहीं गये. बंध्याकरण कराने वाली महिलाओं का अधिकार है कि उनकी नि:शुल्क जांच हो व दवा मिले. अगर ऐसा नहीं होता है, तो इसके लिए मैं जवाबदेह नहीं हूं. सजर्न की कमी के कारण बंध्याकरण करने में परेशानी हो रही है.
डॉ सूर्यदेव चौधरी, नोडल पदाधिकारी सह एसीएमओ, परिवार नियोजन कार्यक्रम
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