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गये थे रोजगार के लिए और आयी मौत की खबर

अरुण गुप्ता बरौली : काश! घर में रोजगार और रोटी का जुगाड़ होती, तो मां का आंचल सूना न होता. जवान बेटा रोजगार की तलाश में परदेस को जाता है़ पेट की आग तो नहीं बुझती है, लेकिन उसकी मौत का पैगाम आ जाता है़ बहुत कुरेदने पर 70 वर्षीय बलिराम सोनी व्यवस्था पर कुठाराघात […]

अरुण गुप्ता
बरौली : काश! घर में रोजगार और रोटी का जुगाड़ होती, तो मां का आंचल सूना न होता. जवान बेटा रोजगार की तलाश में परदेस को जाता है़ पेट की आग तो नहीं बुझती है, लेकिन उसकी मौत का पैगाम आ जाता है़ बहुत कुरेदने पर 70 वर्षीय बलिराम सोनी व्यवस्था पर कुठाराघात करते हुए फफक उठते हैं. वे बताते हैं कि उनके दो बेटे अरेराज में ज्वेलरी के कारोबार करते हैं.
जब गांव और जिले में आनंद को रोजी-रोटी न मिला तो वह दिल्ली के लिए रवाना हो गया़ सगे-संबंधियों के सहयोग से वह दिल्ली में एक छोटी-सी ज्वेलरी की दुकान चलाता था़
कौन जानता था कि रोजी-रोटी के चक्कर में एक दिन पूरी दुनिया ही उजड़ जायेगी़ यह दर्द अकेले बलराम का नहीं है बल्कि अतीत पर नजर दौड़ाएं तो जिले के कई ऐसे परिवार हैं जिनके बेटे और अपने रोजी-रोटी के लिए परदेस गये, लेकिन पैसे तो नसीब नहीं हुए अलबत्ता उनकी मौत की खबर आ गयी. वर्ष 2008 में प्यारेपुर के पाल परिवार के तीन लोगों की उल्फा उग्रवादियों ने असम में हत्या कर दी. यहां ये लोग अपना रोजगार चला कर पेट पाल रहे थे.
वर्ष 2000 में संड़ार के विश्वनाथ सिंह के बेटे की हत्या पंजाब में हो गयी़ बेचारा रोजगार की तलाश में पंजाब गया था. रोजगार के लिए परदेस जानेवाले लोगों की तबाही रेलवे स्टेशन से शुरू होती है तो फिर घर लौटने तक जारी रहती है. कभी ट्रेन में लूट, कभी अपराधियों का शिकार तो कभी कोई हादसा. जिले के एक हजार से अधिक ऐसे मां-बाप हैं जिनके बेटे परिवार को खुशी देने के लिए घर से गये, लेकिन लौट कर न आये़

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