परेशानी जारी. दूसरे दिन भी पड़ताल में तीन ओपीडी में नहीं मिले कोई डॉक्टर
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भगवान भरोसे है सदर अस्पताल की व्यवस्था
परेशानी जारी. दूसरे दिन भी पड़ताल में तीन ओपीडी में नहीं मिले कोई डॉक्टर सीवान : प्रभात खबर द्वारा मंगलवार को सदर अस्पताल की स्वास्थ्य सेवा की पड़ताल की गयी. पड़ताल के दौरान मरीजों को हो रही परेशानियों व स्वास्थ्य सेवा की लचर व्यवस्था की खबर बुधवार को प्रमुखता से प्रकाशित की गयी. बुधवार को […]
सीवान : प्रभात खबर द्वारा मंगलवार को सदर अस्पताल की स्वास्थ्य सेवा की पड़ताल की गयी. पड़ताल के दौरान मरीजों को हो रही परेशानियों व स्वास्थ्य सेवा की लचर व्यवस्था की खबर बुधवार को प्रमुखता से प्रकाशित की गयी. बुधवार को पुन: प्रभात खबर ने सदर अस्पताल की स्वास्थ्य सेवा का जायजा इस उद्देश्य से किया कि शायद अधिकारियों की नींद खुलेगी, लेकिन ऐसा कुछ विशेष देखने को नहीं मिला.
कुल मिला कर निष्कर्ष यह निकला की विभाग ने सदर अस्पताल की व्यवस्था भगवान भरोसे छोड़ दी है. सदर अस्पताल आनेवाले मरीज चिकित्सकीय व्यवस्था के लिए दर-दर भटकते रहे.
सुबह 11.05 बजे
सदर अस्पताल के महिला ओपीडी कक्ष के बाहर मंगलवार की तुलना में मरीजों की संख्या कुछ कम जरूर थी. कतार में सामान्य मरीजों के साथ आपातकालीन महिला मरीजों को भी कतार में लगना पड़ा था. ऐसे मरीजों के लिए कोई विशेष व्यवस्था नहीं थी. महिला मरीजों को आपात व्यवस्था नहीं होने से उन्हें काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा था. कतार में कुछ ऐसी भी महिला मरीज थीं, जो प्रसव पीड़ा से छटपटा रही थीं. पहले वह महिला वार्ड में गयी थी, लेकिन उन्हें ओपीडी में डॉक्टर से दिखाने की सलाह दी गयी. सामान्य ओपीडी कक्ष के सामने भी महिला मरीजों की एक लंबी कतार लगी थी.
सदर अस्पताल के आपात कक्ष के सभी बेडों पर मरीज भरती थे. मरीजों की संख्या को देखते हुए डॉक्टर व पारा मेडिकल स्टाफ कम पड़ रहे थे. पारा मेडिकल स्टाफ व डॉक्टर कम होने की स्थिति में स्वाभाविक है कि मरीजों के परिजन पहले अपने मरीज का इलाज कराना चाह रहे थे. कुछ सड़क दुर्घटना में घायल मरीज भी आये थे. उनके परिजन नहीं होने के कारण चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी पहले उसे किसी प्रकार कोई स्लाइन लगा देने का प्रयास कर रहे थे. कुछ ऐसे भी मरीज वार्ड में भरती थे, जिन्हें वार्ड में शिफ्ट किया जा सकता था, लेकिन महिला व पुरुष दोनों वार्डों में बेड उपलब्ध नहीं रहने के कारण आपात कक्ष में ही उन्हें रखा गया था. आपात कक्ष को देखने से ऐसा लग रहा था कि वार्ड की समय से सफाई नहीं की गयी हो. ड्रेसिंग रूम से लेकर सभी बेडों के पास गंदगी फैली थी.
सदर अस्पताल का आॅर्थोपेडिक्स, इएनटी और शिशु रोग ओपीडी में न तो कोई डॉक्टर था और न कर्मचारी. कक्ष खुला हुआ था तथा मरीज डॉक्टर के आने के इंतजार में बैठे थे. वैसे इएनटी के डॉक्टर की आज जेनरल ओपीडी में ड्यूटी थी. वहीं, शिशु रोग ओपीडी की महिला डॉक्टर ओपीडी में आयी थीं. लेकिन पता चला की एसएनसीयू में बच्चे को देखने गयी हैं.
एसएनसीयू में मात्र एक बच्चा भरती है, जिसे पीलिया हुआ है. वैसे इसमें उसी लगने के कारण डॉक्टर व कर्मचारी मरीज को देखने के बहाने आराम करने भी चले आते हैं. शिशु रोग ओपीडी के बाहर करीब एक दर्जन महिलाएं अपने बच्चों को दिखाने के लिए काफी समय से डॉक्टर के आने का इंतजार कर रही थीं.
रही बात आंख ओपीडी की, तो पूर्व की तरह अपथेलमिक असिस्टेंट मरीजों को इलाज कर रहा था.
सदर अस्पताल के महिला वार्ड को अधिकारी सूबे का पहला वातानुकूलित वार्ड होने का दावा करते हैं. लेकिन, लगता है कि यह दावा सिर्फ कागजों पर है. इस वार्ड की महिला मरीजों के परिजन पंखा चलने के बावजूद अपने मरीजों को हाथ पंखा से हवा कर रहे थे. पूछने पर मरीजों के परिजनों ने बताया कि एसी कभी नहीं चलता है. वोल्टेज इतना लो है कि पंखे की हवा नहीं लगती है. वार्ड हवादार नहीं होने के कारण महिला मरीज गरमी से बेहाल थीं. कुछ महिला मरीजों के परिजन गरमी से परेशान होकर फर्श पर ही सोये थे. नये महिला वार्ड के भवन में भरती मरीज तो और अधिक परेशान देखे गये. बुधवार को खबर का असर देखने को मिला. आज दोनों दवा काउंटर खुले थे. दोनों दवा काउंटर खुलने के कारण मरीजों को दवा लेने में किसी प्रकार की परेशानी नहीं हुई.
मरीजों ने बड़े आराम से दवा लिया.
सदर अस्पताल का पुरुष वार्ड को देखने से लगता है कि यह कैदी वार्ड है. इसमें करीब चार कैदियों को रखा गया है. इसके कारण वार्ड के करीब आठ से नौ बेडों पर कैदियों, सुरक्षाकर्मियों व परिजनों का कब्जा है. सामान्य पुरुष वार्ड में कैदियों को रखने से सामान्य मरीजों को काफी परेशानी होती है. उसमें भी अगर कोई महत्वपूर्ण कैदी भरती हो गया,
तो मरीज काफी परेशान होते हैं. अस्पताल में पहले कैदी वार्ड था. लेकिन करीब एक साल पहले जिलाधिकारी ने स्वयं कैदी वार्ड का निरीक्षण कर वार्ड को असुरक्षित बताते हुए उसमें मरीजों को नहीं रखने का निर्देश दिया. उसके बाद से अस्पताल में स्थायी कैदी वार्ड की व्यवस्था नहीं हुई.
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