सीतामढ़ीः राज्य सरकार जिला को सूखाग्रस्त घोषित कर चुकी है, लेकिन इस घोषणा का किसानों को विशेष लाभ नहीं मिल रहा है. बता दें कि बारिश के अभाव में किसानों की धान की फसल मारी गयी थी. सुखी-संपन्न किसान पंप सेट से पटवन कर धान की हरियाली बचाये रखने में कामयाब रहे थे तो इनमें से भी सैकड़ों किसानों के धान की बाली में दाना नहीं लगा. वहीं मध्यम वर्ग के व उसके नीचे के स्तर के किसान पटवन नहीं कर सके और अपनी आंखों के सामने धान को बरबाद होते देखते रहे. धान को बचाने का उनके पास कोई साधन नहीं था.
जब तक कृषि विभाग के स्तर से धान के पटवन के लिए डीजल अनुदान दिया जाता तब तक धान बरबाद हो चुका था. सुखाड़ से धान व अन्य फसल को बरबाद होते देख किसानों का मानो कलेजा फट गया था. जिला को सूखाग्रस्त घोषित करने के लिए हर दलों की ओर से आवाज उठायी गयी थी. आखिरकार यह आवाज सरकार की कानों तक पहुंची और सरकार की अनुशंसा पर केंद्रीय टीम बिहार पहुंच रैंडम आधार पर कुछ जिलों का मुआयना किया और बाद में जिन जिलों को सूखाग्रस्त घोषित किया गया, उसमें सीतामढ़ी जिला को शामिल किया गया. सरकार के स्तर से तीन-चार माह पूर्व जिला प्रशासन के पास एक चिट्ठी आयी थी, जिसमें किसानों के हितों की बातों का उल्लेख किया गया था.
किसानों को मिलना था लाभ
पत्र में कहा गया था कि किसानों के हित में विभिन्न विभागों से विभिन्न योजनाओं का संचालन कराया जाये, ताकि किसानों को सूखा पड़ने का कम एहसास हो. उस दौरान किसानों को लगा था कि देर से ही सही सरकार उनलोगों के लिए कुछ कर रही है. परंतु ज्यों-ज्यों दिन बीतते गये और कोई लाभ नहीं मिला तो किसान अपने को एक बार फिर ठगा महसूस करने लगे. बता दें कि सरकार ने अन्नपूर्णा व अंत्योदय योजनाओं के खाद्यान्न की उपलब्धता व इसके उठाव का गहन अनुश्रवण कराने को कहा था. हकीकत से हर कोई वाकिफ है. जिले के सभी पंचायतों में शताब्दी अन्न कलश योजना के तहत डीलरों के यहां एक-एक क्विंटल खाद्यान्न सुरक्षित रखना था ताकि भूख से प्रभावित व्यक्तियों को मुफ्त खाद्यान्न उपलब्ध कराया जा सके.
इस योजना का भी बूरा हाल है. बंद नलकूपों को चालू करा किसानों के खेतों तक पानी की व्यवस्था कराने को कहा गया था. बता दें कि इतना सब होने के बाद भी जिले में दर्जनों नलकूप ठप पड़े हैं. मनरेगा के तहत योजनाओं का तेजी से कार्यान्वयन कराया जाना था ताकि लोगों को रोजगार मिले और उनको बाहर नहीं जाना पड़े. इस योजना का तो और बूरा हाल है. बता दें कि गत माह मनरेगा की समीक्षा बैठक में डीएम डॉ प्रतिमा को यह कहना पड़ा था कि सभी कार्यक्रम पदाधिकारी गलत रिपोर्ट देते हैं. मनरेगा का हाल यह है कि मजूदरों के बजाय जेसीबी व ट्रैक्टर से काम लिया जा रहा है. वह भी अधिकारियों की मौजूदगी में. हाल में बथनाहा प्रखंड के दर्जनों मजदूरों जेसीबी व ट्रैक्टर से काम लिये जाने के विरोध में सड़क जाम कर प्रदर्शन किया था. थे. अन्य प्रखंडों में भी यही हाल है.