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नहीं मानेंगे हार, जायेंगे कोर्ट

सीतामढ़ीः डीपीओ कामेश्वर गुप्ता की कार्यशैली से क्षुब्ध मध्य विद्यालय, रीगा से सेवानिवृत्त प्रधान शिक्षक शंभू मिश्र अब हाइ कोर्ट में मामला दायर करने का पूरा मूड बना चुके हैं. विभाग से आजिज आकर श्री मिश्र कई अधिकारियों की शरण में गये. कहीं से उन्हें कोई लाभ नहीं मिला. बताते हैं कि न्याय के लिए […]

सीतामढ़ीः डीपीओ कामेश्वर गुप्ता की कार्यशैली से क्षुब्ध मध्य विद्यालय, रीगा से सेवानिवृत्त प्रधान शिक्षक शंभू मिश्र अब हाइ कोर्ट में मामला दायर करने का पूरा मूड बना चुके हैं. विभाग से आजिज आकर श्री मिश्र कई अधिकारियों की शरण में गये. कहीं से उन्हें कोई लाभ नहीं मिला. बताते हैं कि न्याय के लिए डीएम के जनता दरबार में गये थे. लेकिन अब तक कोई फैसला नहीं आया है.

क्या है पूरा मामला

श्री मिश्र सभी सक्षम पदाधिकारियों को आवेदन देकर यह बता चुके हैं कि मध्य विद्यालय, रीगा में दो कमरे के निर्माण के लिए उन्हें 445050 रुपया बतौर अग्रिम मिला था. जबकि विभाग का कहना है कि 450000 रुपये अग्रिम दिया गया था. विभाग यह भी कहा है कि दो नहीं तीन कमरे का निर्माण कराना था. यही कारण है कि डीपीओ व उक्त सेवानिवृत्त प्रधान शिक्षक के बीच मामला फंस गया है. श्री मिश्र को मात्र दो कमरे का ही निर्माण कराना था और इसके लिए उन्हें कुल राशि 673100 के एवज में अग्रिम के रूप में 405050 रुपया मिला था.

डीएम से की थी शिकायत

श्री मिश्र ने डीएम को भी उक्त मामले से अवगत कराया था. बताया था कि मांग पूरा नहीं करने पर द्वितीय किस्त का भुगतान रोक दिया गया और इस बीच जुलाई-11 में वे सेवानिवृत्त हो गये. बताया कि अवैध डिमांड के चलते ही भवन निर्माण के नाम पर शिक्षक घबराते हैं. मवि रीगा में ही 18 लाख रुपये पड़ा हुआ है. प्रधान शिक्षक काम कराने का हिम्मत नहीं कर रहे हैं.

पर्यवेक्षक लिए 30 हजार

डीएम को यह भी बताया कि किवाड़ व खिड़की स्वयं बनाने के लिए तकनीकी पर्यवेक्षक 30 हजार रुपये लिया. यह कह कर कि शिक्षक लोग कमजोर काम कराते हैं. श्री मिश्र ने डीएम से आग्रह किया है कि उनके स्तर से भवन का जितना कार्य कराया गया है उतना का मूल्यांकन कर उनके पेंशन का मार्ग प्रशस्त किया जाये.

डिमांड के सामने कानून फेल

श्री मिश्र ने डीएम को सौंपे आवेदन में यहां तक लिखा कि डीइओ द्वारा पेंशन अदालत लगाया गया. वहां भी गये. कोई लाभ नहीं मिला. कहा है कि डिमांड के सामने सुप्रीम कोर्ट के उक्त आदेश की अवहेलना की जा रही है. यह पूरी तरह गलत है.

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